तू ना सही, तेरी तस्वीर ही सही
क्या सच में दाऊद को बस उसके ताज़ा चेहरे, नए पते, बीवी माहज़बीन के टेलीफोन बिल और सरकारी डोजियर के सहारे हम हिंदुस्तानी कानून की चौखट पर ले आएंगे?
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सोचा था खुल कर लिखूंगा. पर लिखना शुरू किया तो अचानक ख्याल आया कि आखिर मैं क्यों लिखूं..और आप क्यों पढ़ें? जबकि मैं जानता हूं कि ना मेरे लिखने से कुछ फर्क पड़ने वाला है और ना आपके पढ़ने से. टेक्नोलॉजी के इस दौर में ना लिख रहा होता, तो लिखता कि मैं स्याही बर्बाद कर रहा हूं और आप बस पलटने के लिए पन्ने पलटते जाइए. पर अब तो कमबख्त स्याही भी खर्च नहीं होती और माउस तो पन्ने को पलटने भी नहीं देता. बस क्लिक कीजिए, स्याही गायब और हर्फ़ आंखों से ओझल.
बात शुक्रवार रात की है. अचानक खबर आई कि भारत-पाकिस्तान के बीच एनएसए की बातचीत से ऐन पहले दाऊद इब्राहीम के पाकिस्तान में नए ठिकाने और उसकी सबसे ताजा तस्वीर लीक हो गई है. ये तस्वीर और ठिकाने उस डोज़ियर का हिस्सा थे जो 24 अगस्त को दिल्ली में होने वाली एनएसए की मीटिंग में पाकिस्तान को सौंपे जाने थे. पर उससे पहले ही इसे एक अंग्रेजी अखबार को लीक करा दिया गया.
हमारे पास बस रात के कुछ घंटे थे. अखबार में छपने से पहले किसी तरह दाऊद का सबसे ताज़ा चेहरा हमें चाहिए था. सो सारे घोड़े खोल डाले. पूरी टीम जुट गई. क्या दिल्ली पुलिस, क्या मुंबई पुलिस, क्या आईबी, क्या गृह मंत्रालय सबको जगा दिया.
दाउद की ताजा तस्वीर, और एक वो जिसे हम पिछले 22 साल से देखते आ रहे हैं. |
हद तो तब हो गई जब आधी रात के करीब सीधे प्रधानमंत्री दफ्तर का भी फोन खड़का डाला. फोन उठाने वाले भले इंसान थे. नाम बताया तो पहचान गए. पर काम बताया तो वहां से भी वही जवाब. 'अच्छा? ऐसी कोई तस्वीर आ रही है? पता करता हूं. जैसे ही मिलेगी जरूर बताऊंगा."
खैर. कोशिश जारी थी. तभी अपने बेहद पुराने सोर्स जो अभी आईबी में ऊंचे पद पर हैं से बात होती है. सारी बातचीत के बाद उनकी बस आखिरी लाइन फोन रखने के बाद भी कानों में काफी देर तक गूंजती रही....'क्या यार! हिंदुस्तान तस्वीरें दिखा-दिखा कर खुश हो जाता है और पाकिस्तान दाऊद को देख-देख कर खुश होता है. तुम भी देख-दिखा लो... क्या फर्क पड़ता है. दाऊद किसी डोजियर या तस्वीर से हिंदुस्तान आएगा क्या?'
22 साल पहले... यानी 1993 में पहली बार आरडीएक्स की शक्ल में आतंकवाद तैरता हुआ मुंबई में आया था... तब से लेकर आजतक न जाने कितने धमाकों और हमलों को झेला है इस देश ने. इन 23 सालों में शायद ही कोई साल बिना दाऊद के नाम के गुजरा हो. इन 23 सालों में हम ना जाने कितनी बार दाऊद का पाकिस्तानी पता और ठिकाना खोज-खोज कर खुद ही खुश होते रहे. दाऊद दे दो... दाऊद दे दो, कितनी ही बार पाकिस्तान के आगे झोली फैलाते रहे.
पर क्या सच में दाऊद को बस उसके ताज़ा चेहरे, नए पते, बीवी माहज़बीन के टेलीफोन बिल और सरकारी डोजियर के सहारे हम हिंदुस्तानी कानून की चौखट पर ले आएंगे? ताकि उसे उसके गुनाहों की सज़ा दे सकें. 23 लंबे साल तो इस उम्मीद में गुजर गए. सब्र है तो और इंतज़ार कीजिए. दाऊद ना सही, उसकी कुछ और नई तस्वीरें तो हम ले ही आएगे. क्यों?
पता नहीं ये लिखते-लिखते अचानक मुझे अमेरिका, ओसामा और एबटाबाद क्यों याद आ रहा है?
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