Delhi results 2020: शाहीन बाग वाली ओखला सीट पर मुद्दा बीजेपी का, फायदा अमानतुल्ला का
शाहीन बाग (Shaheen Bagh) वाली ओखला विधानसभा सीट (Okhla Constituency seat result) के नतीजे बता रहे हैं कि मुस्लिम वोटर एकजुट होकर अमानतुल्ला खान के पक्ष में चले गए, जबकि हिंदू वोट आप और बीजेपी के बीच बंट गए.
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शाहीन बाग (Shaheen Bagh) वाली ओखला विधानसभा सीट के चुनाव नतीजे (Okhla Constituency seat result) ने दिल्ली चुनाव (Okhla Constituency seat result) के सबसे चर्चित मुद्दे को लेकर दूध का दूध, पानी का पानी कर दिया है. नागरिकता संशोधन कानून (CAA protest) को लेकर शाहीन बाग में चल रहे विरोध-प्रदर्शन को निशाना बनाते हुए अमित शाह (Amit Shah) ने आह्वान किया था कि वोटिंग मशीन में ऐसा बटन दबाना कि शाहीन बाग तक उसका करंट पहुंचे. हालांकि, हुआ इसका उलटा ही. आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार अमानतुल्ला खान (Amanatullah Khan) इस सीट से न सिर्फ एकतरफा सीट दर्ज कर रहे हैं, बल्कि पिछले चुनाव के मुकाबले अधिक मतों के अंतर से बीजेपी उम्मीदवार को हरा रहे हैं.
अमानतुल्ला खान शुरूआती मतगणना में तो पिछड़े मगर बाद में उन्होंने स्थिति संभाल ली और इतिहास रच दिया
मंगलवार को हुई मतगणना में ओखला विधानसभा सीट के शुरुआती दो राउंड चौंकाने वाले थे. दोनों में अमानतुल्ला खान के मुकाबले बीजेपी उम्मीदवार ब्रह्म सिंह को ज्यादा वोट मिले. ऐसा लगा मानो कि शाहीन बाग को लेकर हुआ ध्रुवीकरण असर दिखा रहा है (पहला राउंड: आप-3075, बीजेपी- 3269, दूसरा राउंड: आप -2399, बीजेपी- 3838). लेकिन अगले राउंड के नतीजे जैसे ही आने शुरू हुए, बीजेपी को संभलने का मौका नहीं मिला. उसे बमुश्किल सौ-दो सौ वोट मिले, जबकि आप के अमानतुल्ला औसत सात-आठ हजार वोट हर राउंड में अर्जित करते रहे. बीजेपी के ब्रह्म सिंह को 17वें से 25वें राउंड तक अमानतुल्ला खान से ज्यादा वोट मिले, लेकिन इन राउंड भी आप को हजार-दो हजार वोट मिलते रहे. यानी बीजेपी की वापसी तो हुई, लेकिन नाकाफी रफ्तार से.
आखिर में अमानतुल्ला खान ने इस सीट से 1 लाख 30 हजार वोट हासिल किए. जबकि बीजेपी उम्मीदवार ब्रह्म सिंह को करीब 60 हजार ही वोट मिले. यानी जीत का मार्जिन 70 हजार वोट का रहा. अब आइए, इस जीत का मिलान पिछले चुनाव नतीजों से करते हैं, और समझते हैं कि 2020 के चुनाव नतीजे ओखला विधानसभा सीट की नजर से क्यों खास हैं.
2015 में पहली चुनाव मैदान में उतरे अमानतुल्ला खान आम आदमी पार्टी की आंधी में जबर्दस्त जीत दर्ज करने वाले नेता बनकर उभरे. उन्हें 1,04,271 वोट मिले थे. लेकिन इस बार उन्होंने अपनी लोकप्रियता का नया रिकॉर्ड कायम किया. और कांग्रेस उम्मीदवार आसिफ मोहम्मद खान को 20 हजार वोट मिले थे. इस बार ओखला विधानसभा सीट पर बीजेपी का ग्राफ तो गिरा ही, कांग्रेस समेत दीगर पार्टियों को तो वोटरों ने देखा तक नहीं. पिछली बार 40 हजार वोट पाने वाले बीजेपी के ब्रह्म सिंह इस बार 15 हजार वोट भी नहीं ले पाए. वहीं इस बार जमानत जब्त करा बैठी कांग्रेस को पिछली बार 20 हजार वोट मिले थे.
विवादित-लड़ाका, लेकिन केजरीवाल के भरोसेमंद हैं अमानतुल्ला
2016 में अमानतुल्ला खान को एक महिला को धमकी देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया, और फिर जमानत पर रिहा किया गया.
अमानतुल्ला खान पर उनकी साली ने यौन प्रताड़ना का आरोप लगाकर उनके खिलाफ केस दर्ज कराया. अमानतुल्ला ने इस पर पार्टी से इस्तीफे की पेशकश की, जिसे पारिवारिक मामला मानकर अस्वीकार कर दिया गया.
2017 के नगरीय निकाय चुनाव के दौरान कांग्रेस समर्थकों से झड़प है. उन्होंने गाली-बारी का आरोप लगाया.
2017 में ही कुमार विश्वास से हुई झड़प के कारण आप नेतृत्व ने अमानतुल्ला से पार्टी की पोलिटिकल अफेयर्स कमेटी से इस्तीफा देने को कहा. लेकिन कुमार विश्वास को दिल्ली की राजनीति से निकालकर राजस्थान भेज दिया गया.
2018 में अमानतुल्ला खान पर चीफ सेक्रेटरी अंशु प्रकाश पर हमला करने का दर्ज किया गया.
दिल्ली के सिग्नेचर ब्रिज के उद्धाटन समारोह में उन पर बीजेपी सांसद मनोज तिवारी पर हमला करने का आरोप लगा.
हाल ही, नागरिकता संशोधन कानून के दौरान उन पर सांप्रदायिक बयानबाजी करने का आरोप लगा.
शाहीन बाग का मुद्दा क्या अमानतुल्ला के लिए मददगार साबित हुआ?
ओखला विधानसभा सीट के नतीजे बता रहे हैं कि बीजेपी ने जिस मुद्दे को केंद्र में रखकर दिल्ली का चुनाव लड़ा, वह अमानतुल्ला खान के लिए बड़े काम का साबित हुआ. नागरिकता संशोधन कानून के पास होने के बाद से ही वे इसके विरोध की सक्रिय राजनीति में जुट गए. शुरुआत में उन्हें जामिया प्रोटेस्ट में देखा गया, जहां वे भीड़ के बीच भड़काऊ भाषण दे रहे थे. फिर उन्हें शाहीन बाग प्रोटेस्ट में भी पर्दे के आगे और पीछे सक्रिय रूप से देखा गया.
शाहीनबाग में नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ धरने पर बैठी महिलाएं
यानी शाहीन बाग, जामिया, बाटला हाउस वाले मुस्लिम बहुल इलाके में अमानतुल्ला खान की ख्याति एक ऐसे नेता के रूप में स्थापित हुई, जो CAA protest में पूरी ताकत के साथ आंदोलनकारियों के पीछे खड़ा है. हालांकि, इस सीट पर कांग्रेस के परवेज हाशमी और तस्लीम अहमद रहमानी भी राजनीतिक रसूख वाले उम्मीदवार के तौर पर मैदान में थे, लेकिन मुस्लिम वोटरों ने इन्हें वोट कटुवा की नजर से ही देखा. और एकतरफा मतदान अमानतुल्ला खान के फेवर में किया. यानी ध्रुवीकरण तो हुआ लेकिन अमानतुल्ला के पक्ष में.
अब बात उन इलाकों की, जहां बहुतायत में हिंदू बहुल आबादी थी. जिन पांच राउंड में बीजेपी उम्मीदवार ठीक-ठाक वोट पाने में सफल हुए हैं, वहां भी मामला बंटा-बंटा सा ही रहा. यानी जिन्हें शाहीन बाग प्रोटेस्ट से गुस्सा या तकलीफ थी, उन्होंने बीजेपी को वोट दिया. लेकिन ऐसे पोलिंग बूथ पर आम आदमी पार्टी की बिजली, पानी वाली योजनाएं वोटरों को अच्छी खासी संख्या में अपनी ओर आकर्षित करने में कामयाब रही. इसका निष्कर्ष ये है, लेकिन मुस्लिम एकजुट होकर अमानतुल्ला खान के पक्ष में चले गए, जबकि हिंदू वोट आप और बीजेपी के बीच बंट गए.
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