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Updated: 11 अक्टूबर, 2019 05:33 PM
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बतौर दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष शीला दीक्षित का नाम मील के पत्थर जैसा हो गया है. पहले 15 साल तक लगातार शासन और फिर 2013 में सत्ता से बेदखल हो जाने के बाद से कांग्रेस को दोबारा शीला दीक्षित और की काबिलियत पर ही यकीन हुआ - और गांधी परिवार की करीबी नेता ने खुद को आखिरी दम तक सही साबित भी किया.

ये भी सही है कि शीला दीक्षित कांग्रेस को दिल्ली में लोक सभा की एक भी सीट नहीं दिला सकीं. औरों की कौन कहे, खुद की ही सीट भी नहीं निकाल सकीं. फिर भी शीला दीक्षित का नाम दिल्ली कांग्रेस के लिए वैसे ही लिया जाता रहा है जैसे बरसों तक मिल्खा सिंह और पीटी ऊषा का नाम लिया जाता रहा.

2019 की मोदी लहर में ये क्या कम रहा कि कांग्रेस ने सत्ताधारी पार्टी आप को ज्यादातर इलाकों में तीसरे पोजीशन पर धकेल दिया. वो भी तमाम राजनीतिक चुनौतियों के बावजूद. हालांकि, वे चुनौतियां अब नये शक्ल में सामने आ रही हैं. शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित दिल्ली कांग्रेस के प्रभारी महासचिव पीसी चाको पर खुला इल्जाम लगाया है, जिस पर नये सिरे से विवाद खड़ा हो गया है.

कहने को तो संदीप दीक्षित भी दिल्ली PCC अध्यक्ष पद के दावेदारों में माने जा रहे हैं, लेकिन नवजोत सिद्धू से शुरू हुई इस चर्चा में सबसे आगे कीर्ति आजाद बताये जा रहे हैं. कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी इस मामले में विशेष रुचि ले रही हैं.

जहां तक दिल्ली कांग्रेस के नये अध्यक्ष के सामने चुनौतियों का सवाल है तो वो सरकार बना लेना या गुटबाजी खत्म करना नहीं - जैसे भी संभव हो दिल्ली में कांग्रेस को नंबर 2 की पोजीशन पर कायम रखना ही नये PCC अध्यक्ष के लिए पहला लक्ष्य होगा.

ऐन मौके पर विवाद क्यों?

बड़ी मुश्किल से तो कांग्रेस को एक अंतरिम अध्यक्ष मिल पाया है. कांग्रेस का तात्कालिक नेतृत्व सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रह चुकीं सोनिया गांधी कर रही हैं. सोनिया को भी इसके लिए मजबूरी में तब आगे आना पड़ा जब लगा कि कांग्रेस की कमान गांधी परिवार के हाथ से फिसल न जाये. क्योंकि राहुल गांधी न खुद इस्तीफा वापस लेने के लिए तैयार हुए न प्रियंका गांधी वाड्रा को मौका दिया गया.

राष्ट्रीय स्तर पर तो कांग्रेस को एक अंतरिम अध्यक्ष मिल गया है लेकिन राज्यों में भारी गुटबाजी के चलते ये फैसला हो ही नहीं पा रहा है. हरियाणा में चुनाव के चलते सोनिया गांधी ने अशोक तंवर को हटाकर कुमारी शैलजा को अध्यक्ष बना दिया और भूपिंदर सिंह हुड्डा को एक तरीके से मुख्यमंत्री का चेहरे बनाकर नेतृत्व सौंप दिया. नतीजा ये हुआ कि अशोक तंवर ने पार्टी ही छोड़ दी. दूसरे चुनावी राज्य महाराष्ट्र में भी तकरीबन ऐसी ही चुनौतियां हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया के भी लगातार उखड़े होने की वजह भी मध्य प्रदेश कांग्रेस की कुर्सी को लेकर लड़ाई है - और कर्जमाफी को लेकर सिंधिया के कमलनाथ सरकार पर ताजा हमले के पीछे भी एकमात्र यही वजह है.

sheila dikshitदिल्ली कांग्रेस में शीला दीक्षित की विरासत कौन संभाले?

दिल्ली में 2020 के शुरू में विधानसभा के चुनाव होने हैं और कांग्रेस नेतृत्व अभी तक अध्यक्ष नहीं खोज पाया है. बताते हैं कि सोनिया गांधी नये अध्यक्ष की नियुक्ति में खास दिलचस्पी ले रही हैं - और सिर्फ आखिरी फैसला लेना बाकी है.

ताज्जुब की बात ये है कि दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष की नियुक्ति से पहले ही एक नया विवाद खड़ा हो गया है. दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित की मौत के लिए उनके बेटे संदीप दीक्षित का कांग्रेस प्रभारी पीसी चाको को जिम्मेदार ठहराया जाना है.

कुछ मीडिया रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि संदीप दीक्षित इस सिलसिले में पीसी चाको को कानूनी नोटिस भी भेज चुके हैं. पूर्व कांग्रेस सांसद संदीप दीक्षित ने आरोप लगाया है कि पीसी चाको के मानसिक उत्पीड़न से उनकी मां की मौत हुई है.

वैसे तो सोनिया गांधी को भेजे गयी गयी शीला दीक्षित की एक चिट्ठी की भी चर्चा रही है, लेकिन अब तक वो चिट्ठी सामने नहीं आई है. कहते हैं कि शीला दीक्षित ने उन राजनीतिक दुश्वारियों का जिक्र किया था जिनसे वो उस वक्त लगातार जूझ रही थीं. खबर तो एक ये भी आयी थी कि किस तरह पीसी चाको ने शीला दीक्षित के फैसले बदल दिये थे जब वो अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती थीं.

इंडिया टुडे के अनुसार संदीप दीक्षित ने कानूनी नोटिस नहीं बल्कि सीधे संबोधित करते हुए पीसी चाको को पत्र लिखा है. पीसी चाको ने वो पत्र सोनिया गांधी को भेज दिया है. चिट्ठी में क्या लिखा है ये न तो चाको बता रहे हैं और न ही संदीप दीक्षित लेकिन उनका इतना जरूर कहना है कि इस मामले में सोनिया गांधी को शामिल करने का कोई मतलब नहीं है.

दूसरी तरफ, चर्चा ये भी है कि नोटिस के जरिये संदीप दीक्षित ने मांग की है कि शीला के मानसिक उत्पीड़न के लिए पीसी चाको माफी मांगें या फिर कानूनी कार्रवाई के लिए तैयार रहें. ऐसे राजनीतिक नोटिसों में माफी मांग लेने का एक प्रावधान होता है - लेकिन क्या मानसिक उत्पीड़न से किसी की मौत के लिए जिम्मेदार व्यक्ति माफी मांग कर अपराध मुक्त हो सकता है?

ये तो महज एक राजनीतिक चाल लगती है. अगर संदीप दीक्षित को ऐसा लगा था तो पीसी चाको के खिलाफ शीला दीक्षित के निधन के फौरन बाद पुलिस में शिकायत दर्ज करानी चाहिये थी. अगर पुलिस तैयार न होती तो कोर्ट जा सकते थे - और फिर जरूरत के हिसाब से अदालत की कार्यवाही आगे बढ़ी होती.

ऐसे समय जब दिल्ली कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष की नियुक्ति होने की खबर आ रही है, संदीप दीक्षित का पूरी तरह राजनीति से प्रेरित लगता है, न कि कुछ और.

नाम में क्या रखा है - काम तो कांग्रेस को 'आप' से आगे रखना है

पांच साल बाद भी दोबारा दिल्ली के लोगों ने कांग्रेस को एक भी सीट के काबिल नहीं समझा, लेकिन आम चुनाव के नतीजों से ये जरूर साफ हो गया कि लोग बीजेपी के बाद आम आदमी पार्टी नहीं बल्कि कांग्रेस को फिर से तरजीह देने लगे हैं - और इसका पूरा श्रेय शीला दीक्षित को मिला. साथ में, शीला दीक्षित के अरविंद केजरीवाल की पार्टी से गठबंधन न करने की जिद पर अड़े रहने के फैसले को भी.

सुना गया है कि दिल्ली प्रभारी पीसी चाको ने संभावित उम्मीवारों की एक सूची सोनिया गांधी को पहले ही सौंप दी थी. वैसे ऐसी एक सूची तो मध्य प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया ने भी कुछ दिन पहले सौंपी थी. मालूम हुआ था कि उसमें सबसे ऊपर के नामों में ज्योतिरादित्य सिंधिया भी शामिल हैं - लेकिन वो मामला इसलिए भी लटका हु्आ है क्योंकि वहां दिल्ली की तरह सिर पर चुनाव का तनाव नहीं मंडरा रहा है. शायद यही वजह है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कमलनाथ सरकार पर ताजातरीन हमला बोला है. सिंधिया का कहना है कि कांग्रेस सरकार का किया हुआ कर्जमाफी का वादा पूर्णतया पूरा नहीं हुआ है. गौर करने वाली बात ये है कि दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह ने भी ऐसा ही आरोप लगाते हुए राहुल गांधी को किसानों से माफी मांगने की सलाह दी थी. ज्योतिरादित्य सिंधिया खुद को महाराष्ट्र भेजे जाने से खासे खफा हैं और हाल के सलमान खुर्शीद के बयान का सपोर्ट करते हुए कहा था कि कांग्रेस में आत्मावलोकन की जरूरत आ पड़ी है.

बहरहाल, दिल्ली की सूची के बाद की प्रोग्रेस ये है कि दिल्ली में अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर सोनिया गांधी ने करीब 50 नेताओं से सलाह-मशविरा भी कर लिया है - और इसमें सबसे लंबी बातचीत कीर्ति आजाद से हुई बतायी जा रही है. जब तक फाइनल नाम नहीं आ जाता दिल्ली कांग्रेस के तीन कार्यकारी देवेंद्र यादव, राजेश लिलोठिया और हारून यूसुफ को भी रेस से बाहर नहीं समझा जा रहा है. हां, नवजोत सिंह सिद्धू की अब कहीं कोई चर्चा नहीं हो रही है.

अंदरूनी गुटबाजी तो राजनीतिक दलों की आवश्यक बुराई का रूप ले चुकी है, ऐसे में नया अध्यक्ष कोई भी बने ऐसी उम्मीद तो बेमानी ही होगी. हां, नये अध्यक्ष की पहली चुनौती यही होगी कि वो भी शीला दीक्षित की तरह अपने राजनीतिक विरोधियों से बहादुरी के साथ दो-दो हाथ करते हुए आगे बढ़े - और दिल्ली में सरकार बनाने के चक्कर न पड़ते हुए जैसे भी संभव को कांग्रेस को नंबर 2 की पोजीशन पर बनाये रखे.

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