तब्लीग़ी जमात के 36 विदेशी जमातियों के बरी होने के बाद एक नयी डिबेट को पंख मिल गए हैं!
दिल्ली की अदालत (Delhi Court) ने तब्लीग़ी जमात (Tablighi Jamaat) 36 विदेशी जमातियों पर कोविड - 19 फैलाने के दिल्ली पुलिस (Delhi Police) के आरोपों को ख़ारिज करते हुए उन्हें बरी कर दिया है. कोर्ट से आए इस फैसले ने नफरत की आग में हवा का काम कर सोशल मीडिया पर एक नई बहस का आगाज़ कर दिया है.
-
Total Shares
यूं तो भारत में कोरोना वायरस की शुरुआत जनवरी में केरल में हुई. लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (US President Donald Trump) के भारत आगमन के बाद सरकार चेती और इस महामारी का संज्ञान लिया. मार्च 2020 में सरकार ने बीमारी के मद्देनजर कठोर कदम उठाए और पहले जनता कर्फ्यू (Janata Curfew) फिर लॉक डाउन लगाया. भारत में कोरोना का आगमन भले ही आज भी एक पहेली की तरह देखा जा रहा हो लेकिन उस दौर में जिस पर इस बीमारी को भारत भर में फैलाने के आरोप लगे और तमाम तरह की लानत मलामत हुई वो राजधानी दिल्ली का निज़ामुद्दीन मरकज़ (Nizamuddin Markaz) और तब्लीगी जमात (Tablighi Jamaat) था. चूंकि मरकज़ में कुछ जमाती संक्रमित पाए गए थे तो कहा यही गया था कि अगर देश में लोग इस जानलेवा बीमारी की चपेट में आए हैं तो उसकी एकमात्र वजह रोक के बावजूद निज़ामुद्दीन मरकज़ में हुआ तब्लीगियों का प्रोग्राम था. मामला काफी दिन तक सुर्खियों में रहा और आज भी इस मरकज का मुखिया मौलाना साद (Maulana Saad) पुलिस की पहुंच से कोसों दूर है. सवाल होगा कि एक ऐसे वक्त में जब चीजें ठीक हो रही हों और सम्पूर्ण देश ने कोरोना वायरस के साथ खुद को 'एडजस्ट' कर लिया हो आखिर क्यों तब्लीगी जमात और दिल्ली स्थित निज़ामुद्दीन मरकज पर बात हो रही है? कारण है चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अरुण कुमार की अदालत. जिसने कोरोना फैलाने के आरोपों का सामना कर रहे 36 विदेशी नागरिकों को न केवल बरी किया बल्कि दिल्ली पुलिस की भी जमकर क्लास लगाई.
दिल्ली की अदालत ने तब्लीगी जमात और निजामुद्दीन मरकज को बड़ी राहत दी है
दिल्ली पुलिस को लताड़ लगाते हुए कोर्ट ने कहा कि यह समझ से परे है कि आरोपियों की पहचान के लिए कोई टेस्ट आइडेंटिटी परेड (TIP) नहीं कराई गई बल्कि होम मिनिस्ट्री द्वारा दी गई लिस्ट का इस्तेमाल किया गया.मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से कहा कि अभियोजन पक्ष निजामुद्दीन स्थित मरकज परिसर में किसी भी आरोपी की मौजूदगी साबित करने में नाकाम रहा.
वही कोर्ट को मामले में गवाह बनाए गए लोगों के बयानों में भी गहरा विरोधाभास दिखा जिसे अदालत ने एक बड़े मुद्दे की तरह लिया. बताते चलें कि जब भारत में कोरोना के मामले बढ़े और केंद्र सरकार समेत राज्य सरकारों के भी हाथ पांव फूले तो निज़ामुद्दीन मरकज में आए जमातियों को भारत में कोरोना के फैलने का जिम्मेदार माना गया और उन्हें सुपर स्प्रेडर की संज्ञा दी गयी.
जमातियों पर दिल्ली पुलिस से लेकर अलग- अलग राज्य सरकारों ने तमाम तरह के गंभीर आरोप लगाए और कहा गया कि तब्लीग के लोगों ने अपने कृत्य से न केवल अपनी बल्कि दूसरों की जान को भी जोखिम में डाला. तब आईपीसी की धारा 188 (सरकारी सेवक द्वारा लागू आदेश का पालन नहीं करना), 269 (संक्रमण फैलाने के लिए लापरवाही भरा कृत्य करना) और महामारी कानून की धारा तीन (नियमों को नहीं मानना) और आपदा प्रबंधन कानून, 2005 की धारा 51 के तहत भी विदेश से निज़ामुद्दीन मरकज में आयोजित कार्यक्रम के सिलसिले में दिल्ली पहुंचे जमातियों के खिलाफ आरोप तय किए गए थे.
मामले की सुनवाई के दौरान चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अरुण कुमार गर्ग ने हजरत निजामुद्दीन के स्टेशन हाउस ऑफिसर जोकि मामले में शिकायतकर्ता थे और जांच में शामिल अफसरों को आरोपियों की पहचान न कर पाने के लिए तलब किया. अदालत ने गवाहों के बयानों में विरोधाभास का जिक्र भी किया और मामले में दोषी बनाए गए कुछ अभियुक्तों द्वारा पेश की गई दलीलों को स्वीकार करते हुए कहा कि ‘उस अवधि के दौरान उनमें से कोई भी मरकज में मौजूद नहीं था और उन्हें अलग-अलग स्थानों से उठाया गया.
सुनवाई में कोर्ट ने गृह मंत्रालय का भी जिक्र किया और कहा कि पुलिस द्वारा अभियुक्तों को गृह मंत्रालय के निर्देश पर इसलिए उठाया गया ताकि दुर्भावना के तहत उनपर मुकदमा चलाया जा सके.’ अदालत ने मामले के आईओ के ऊपर भी जबरदस्त तंज कसते हुए कहा कि, 'यह समझ से परे है कि कैसे IO ने 2,343 व्यक्तियों में से 952 विदेशी नागरिकों की पहचान कर ली.
ध्यान रहे कि जमातियों के मद्देनजर निज़ामुद्दीन थाने के एसएचओ की तरफ से तक दिया गया था कि मरकज के सभी जमाती कोरोनावायरस गाइडलाइंस की धज्जियां उड़ाते हुए पाए गए थे. साथ ही उन्होंने कोर्ट को ये भी बताया था कि कोई टेस्ट आइडेंटिटी परेड (TIP) नहीं कराई गई बल्कि गृह मंत्रालय द्वारा दी गई लिस्ट का इस्तेमाल किया गया.
अब जबकि कोर्ट ने सभी 36 विदेशी जमातियों को बरी कर दिया है. मामला एक बार फिर सोशल मीडिया पर आ गया है. और भारत में कोरोना के फैलने में जमातियों की भूमिका पर तब शुरू हुई डिबेट को नए आयाम मिल गए हैं. कोर्ट से आए फैसले के बाद मामले ने दिलचस्प रंग ले लिया है.
वो लोग जो तब से लेकर आज तक जमातियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे उनका यही कहना है कि सरकार और दिल्ली पुलिस ने मुसलमानों को नीचा दिखाने के लिए जमातियों को चुना लेकिन चूंकि सच ज्यादा दिनों तक छिप नहीं सकता, अदालत में जज के सामने वो बाहर आ ही गया.
The court rules that there was no case against the Tablighi Jamaat. Incoherent witnesses and a false investigation, aided by TV channels demonizing a community. https://t.co/HfMUFf9SRB
— Saikat Datta (@saikatd) December 16, 2020
सोशल मीडिया पर तब्लीग समर्थक लोगों का ये भी कहना है कि कोरोना मामले में मुसलमानों को घसीटकर सरकार ने केवल और केवल अपनी नाकामी दिखाई और जो सच था उसपर पर्दा डालने का काम किया.
Tablighi case: All foreigners freed, court slams police, says no proofMedia targeted #TablighiJamaat to hide the Failure of Gov Arvind kejrival and Godi Media Should Apologize to #TablighiJamaat for calling them Super Spreader pic.twitter.com/rN9OlM385f
— faizan (@faizan0008) December 16, 2020
अब जबकि मामले पर कोर्ट अपना फैसला सुना चुका है तमाम लोग ऐसे भी हैं जो सरकार पर कटाक्ष कर रहे हैं.
Tablighi Jamaat matter:5 writs, 955 plea bargains, 955 bails, 80 revisions, 29 quashing petitions, 44 discharge applications, 15 dates before Supreme Court and then of course the trial.End result: NOT GUILTY!!!Corona jihad much?
— Ashima Mandla (@AshimaMandla) December 15, 2020
सोशल मीडिया पर यूजर्स इस बात को भी दोहरा रहे हैं कि जब भारत में कोरोना के मामले बढ़े सरकार को कोई न कोई ऐसा चाहिए था जिसके कंधे पर बंदूक रखकर वो गोली चला सके और क्योंकि तब जमाती पुलिस के हत्थे चढ़ चुके थे उन्हें ये मौका मिला और उन्होंने इसका भरपूर फायदा उठाया.
Definitely a burn for a section of people. Who needed someone to blame for the mismanagement by the government #TablighiJamaat Just media trials https://t.co/hPvtEZW06t
— Abhilash (@knowabhilash) December 16, 2020
वो तमाम लोग जो सरकार के साथ है वो आज भी अपनी बातों पर अड़े हैं और दिल्ली पुलिस और गृह मंत्रालय के एक्शन को सही ठहरा रहे हैं.
Too Much Democracy when it comes to Minority(Tablighi Jamaat/ Sikh Farmer Protest/Shaheen Bagh) pic.twitter.com/ouFWf7w9cQ
— Pramendra Gupta (@PramendraGupta1) December 10, 2020
फैसले ने समर्थकों को बल दिया है वो ये भी कह रहे हैं अब वो वक़्त आ गया है जब तब्लीग और जमात से जुड़े लोगों को मीडिया पर उनकी छवि ख़राब करने के लिए केस करना चाहिए.
Tablighi jamaat should slap defamation suit against all the news channels and print media houses in any respectable high court or in international Court of justice https://t.co/82IyxHNMFF
— mukarram (@mukarram3) December 15, 2020
बहरहाल जैसा कि हम बता चुके हैं फैसले ने एक बार फिर हिंदू मुस्लिम डिबेट की शक्ल ले ली है इसलिए जो प्रतिक्रियाएं इस मामले पर आ रही है वो साफ़ तौर पर नफरत की आग में हवा का काम करती नजर आ रही हैं. डिबेट आगे कहां तक खींची जाती है इसका फैसला तो वक़्त करेगा लेकिन जो वर्तमान है उसे देखकर और साथ ही 36 जमातियों को बरी किये जाने को देखकर इस बात को कहने में संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है कि, दिल्ली पुलिस और गृह मंत्रालय की मामले के मद्देनजर जबरदस्त किरकिरी हुई है.
ये भी पढ़ें -
'साम्प्रदायिक सद्भाव' की खबरें दंगा करने वाले नहीं पढ़ते!
आपकी राय