Delhi riots: बेगुनाहों की बलि देकर ही बनते हैं बड़े नेता!
भाजपा के कपिल मिश्रा (Kapil Mishra, BJP) और एआईएमआईएम के वारिस पठान (Waris Pathan, AIMIM) जैसों की हेट स्पीच को देखकर पहले ही लग रहा था कि किन्हीं ताकतों के इशारों पर ये सुनियोजत साजिश रच रहे हैं.
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कुछ भव्य फिल्में बड़ी स्टार कास्ट वाली नहीं होती. बड़ा निर्देशक पर्दे के पीछे होता है और छोटे कलाकार सधे हुए परिपक्व निर्देशन में बेहतर फरफार्म करते हैं. निर्देशक प्रधान फिल्मों में नवोदित और सस्ती प्रतिभाओं को मौका मिल जाये तो वो स्टार बनने के लिए जी जान लगा देते हैं. दिल्ली दंगों (Delhi riots) की फिल्म स्क्रिप्ट और निदेशन की ज़िम्मेदारी भले ही नामचीन लोगों ने तैयार की हो लेकिन पर्दे पर छुटभैय्ये ही नजर आये. इन छुटभैय्यों के खिलाफ कोई कार्यवाही ना होना शंका पैदा करती है कि इनको निर्देशित करने वाले कहीं बड़े सियासतदां तो नहीं. भाजपा के कपिल मिश्रा (Kapil Mishra, BJP) और एआईएमआईएम के वारिस पठान (Waris Pathan, AIMIM) जैसों की हेट स्पीच को देखकर पहले ही लग रहा था कि किन्हीं ताकतों के इशारों पर ये सुनियोजत साजिश रच रहे हैं.
इसी तरह दिल्ली के दंगों की पूर्व संध्या पर एक जाहिल क़िस्म की महिला ने सड़क पर उतर कर और सोशल मीडिया की मदद से दंगे भड़काने की हर संभव कोशिश की थी. कानून व्यवस्था को चुनौती देने और साम्प्रदायिक उनमाद फैलाने वाले उसके वीडियो गवाह हैं. ये वीडियो फेक नहीं है इस बात की भी तस्दीक हो गई है. दिल्ली दंगों के बाद इस विवादित महिला की साजिशों के वीडियो राष्ट्रीय न्यूज चैनलों पर आये. और फिर रातों रात ये महिला कट्टर धर्मवादी नेत्री के तौर पर चर्चा मे आ गयी. प्राइम टाइम में घंटों ये महिला राष्ट्रीय चैनलों पर छायी रही. एक रिपोर्टर ने इससे CAA का फुल फॉर्म पूछा तो सही नहीं बता पायी. जिससे अंदाजा हुआ कि ये पढ़ी लिखी नहीं है.
दिल्ली दंगों में 47 लोगों की जान चली गई, लेकिन क्या इससे उन लोगों को फर्क पड़ा जिन्होंने नफरत फैलाई?
इस महिला के पुष्ट वीडियो देख कर कोई भी कह सकता है कि दिल्ली का दंगा भड़कने में वो भी जिम्मेदार हो सकती है. फिर भी राजधानी की तेजतर्रार पुलिस ने अभी तक इसके खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं की. हां वो राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने और राजनीति में जगह बनाने की मंशा में सफल होती ज़रूर नज़र आयी. यदि इसी तरह नफरत की सियासत पर काबू नहीं पाया गया तो देश की राजनीति ख़ूनी बन जायेगी. राजनीति की नर्सरी में दाखिल नवोदित नेताओं को लगने लगेगा कि जनसेवा से कुछ नहीं होने वाला. सत्ता की कुर्सी और हुकुमत की सेज बेगुनाह आम देशवासियों की लाशों पर ही सजायी जा सकती है.
सियासत के पेशे में भाग्य आजमाने वालों में ये धारणा पैदा होती दिख रही है कि साम्प्रदायिक दंगों का आरोप छुटभैय्ये को भी राष्ट्रीय, लोकप्रिय और स्थापित नेता बना देता है. इसीलिए छुटभैय्ये नेता दंगे कराने की मंशा में आग उगलने के लिए प्रेरित होते हैं, ताकि वो समाज को बांटने.. दंगे कराने के बाद बड़े नेता के तौर पर स्थापित हों.
नफरत की राजनीति से उभरे राजनेताओं के इतिहास पर नजर डालिये तो नजर आयेगा कि एक समय बाद बड़े पदों पर पंहुचने के बाद खुल कर निगेटिव किरदार निभाना छोड़ देते है. अपनी सियासत की चमक जारी रखने के लिए देश में आग लगाने वाली वास्तविक फिल्मों को पर्दे के पीछे रहकर निर्देशित करने का काम करते हैं. वो चाहते हैं कि उनके निर्देशन में कपिल और पठान जैसे उनकी मंशा भी पूरी कर दें और ये छुटभैया खुद भी कभी बड़े नेता बनने की राह तय करें.
उपरोक्त बातें शायद इस सवाल का जवाब स्पष्ट कर देंगी कि दंगों की जमीन तैयार करने वाले कपिल मिश्रा और वारिस पठान के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं हुई!
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