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Updated: 13 दिसम्बर, 2018 06:34 PM
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जिस दिन पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे आये, ठीक साल भर पहले 11 दिसंबर को ही राहुल गांधी की ताजपोशी हुई थी. तीन राज्यों में कांग्रेस की जीत इस हिसाब से देखें तो राहुल गांधी को एनिवर्सरी गिफ्ट भी है.

शुरू से ही राहुल गांधी का सिस्टम बदलने या कहें कि उसे दुरूस्त करने पर जोर रहा है, ये बात अलग है कि सिस्टम के चलते खुद ही बदलना पड़ जाता है. यूपीए शासन के दौरान राहुल गांधी ऐसी बातें अक्सर किया करते रहे. वो सरेआम मानते थे कि प्रधानमंत्री बनने के लिए उनके पक्ष में विशेष परिस्थितियां हैं, लेकिन उनका राजनीतिक मकसद बिलकुल अलग है.

राहुल का ये निश्चय तब ज्यादा मजबूत लगा जब कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए वो मौका मिलने पर प्रधानमंत्री बनने की बात करने लगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी रैलियों में इसे राहुल गांधी का अहंकार बताया - और संसद में समझाया कि राहुल गांधी उनकी कुर्सी तक पहुंचने की हड़बड़ी में हैं.

अगर राहुल गांधी चाहते तो कांग्रेस की ओर से एक प्रेस रिलीज जारी किया जाता और वो कांग्रेस अध्यक्ष बन चुके होते. सब कुछ तय होने के बावजूद राहुल गांधी के लिए रस्में सारी निभायी गयीं - फिलहाल मुख्यमंत्रियों के बारे में भी राय विधायकों की ली जा रही है, लेकिन फाइनल का फैसला आलाकमान ही करेंगे.

मुख्यमंत्रियों की चयन प्रक्रिया

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने किसी भी नेता को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनाया था. हालांकि, हिमाचल प्रदेश में राहुल गांधी ने वीरभद्र सिंह और पंजाब में कैप्टन अमरिंदर के नामों की सार्वजनिक घोषणा की थी. वैसे उन चुनावों की परिस्थितिया भी काफी अलग थीं.

sachin pilot, gehlotचुनावों में तो राहुल गांधी ने गुटबाजी पर काबू पा लिया - लेकिन आगे?

फिलहाल तो कांग्रेस में वही हो रहा है जैसा सारे नेता चुनाव प्रक्रिया शुरू होने से लेकर हाल तक कहते आये हैं - विधायकों की राय से ही नेता चुना जाएगा. खुद राहुल गांधी ने इसे दोहराया भी, 'हम पार्टी में अलग-अलग लोगों की राय जान रहे हैं. आप मुख्यमंत्री का नाम जल्द ही जान जाएंगे.'

तीनों राज्यों में सबसे पहले और स्पष्ट नतीजे छत्तीसगढ़ से ही आये जहां कांग्रेस को 90 में से 68 सीटें मिलीं, लेकिन मुख्यमंत्री का चुनाव वहीं सबसे मुश्किल लग रहा है. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड्गे ने विधायकों से बारी बारी मुलाकात की - और रिपोर्ट राहुल गांधी को दे दी.

तीनों राज्यों में मुख्यमंत्रियों के नाम पर जहां तक आखिरी मुहर की बात है, मध्य प्रदेश और राजस्थान में तो दो-दो दावेदार ही हैं - छत्तीगढ़ में तो चार-चार चेहरे हैं.

kamal nath, scindiaमध्य प्रदेश में तो कमल ही खिलाता है!

मध्य प्रदेश के मुकाबले राजस्थान में पर्यवेक्षकों के लिए भी कोई एक नाम तय करना कठिन हो गया तो विधायकों से अशोक गहलोत और सचिन पायलट के नाम की पर्चियां भी ली गईं. इसी तरह विधायकों से मुख्यमंत्री के पसंदीदा नेता को लेकर ऑडियो क्लिप भी मंगायी गयी - और ये सब हुआ कांग्रेस के शक्ति ऐप के जरिये. बीजेपी के नमो ऐप जैसा ही कांग्रेस का शक्ति ऐप है.

मध्य प्रदेश में तस्वीर कुछ ज्यादा साफ मानी जा रही है जहां प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ही सीएम की कुर्सी पर बैठते लग रहे हैं. विधायकों की बैठक में प्रस्ताव और प्रस्ताव पेश करने वाले का नाम इसमें बहुत मायने रखता है. मध्य प्रदेश के विधायकों की बैठक में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कमलनाथ के नाम का प्रस्ताव रखा. इसी तरह खबर आयी थी कि राजस्थान में अशोक गहलोत ने सचिन पायलट के नाम का प्रस्ताव रखा था. वैसे भी जिस तरह राजस्थान में सचिन पायलट ने पांच साल तक कड़ी मेहनत की है, कमलनाथ ने भी मध्य प्रदेश में बेहतरीन चुनाव प्रबंधन किया है. मामला पेंचीदा होते देख कांग्रेस डिप्टी सीएम पर भी विचार कर रही है - और राहुल को इस मुश्किल से उबारने में प्रियंका वाड्रा भी मदद कर रही हैं.

ऐसे हुई थी राहुल गांधी की ताजपोशी

राहुल गांधी का दृढ़ निश्चय था कि अध्यक्ष की कुर्सी पर उनका बैठना भले ही तय हो, लेकिन चयन प्रक्रिया पूरी तरह लोकतांत्रिक होनी चाहिये - सब कुछ कांग्रेस के संविधान के मुताबिक होना चाहिये. तभी तो सारे तरीके अपनाये गये. जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं के बीच चर्चा हुई. प्रस्ताव पारित हुए और अगले स्तर पर चर्चा के लिए भेजे गये. फिर राज्यों से प्रस्ताव पहुंचे. आखिर में पूरे विधि विधान से एक भव्य समारोह में युवराज कुर्सी पर बैठ भी गये.

rahul gandhiएक लोकतांत्रिक ताजपोशी!

राहुल गांधी को चुनाव प्रक्रिया में तो कोई चुनौती नहीं मिली, लेकिन कोई सवाल भी नहीं उठा हो ऐसा नहीं हुआ. महाराष्ट्र कांग्रेस के युवा नेता शहजाद पूनावाला का उस दौरान बागी तेवर देखा गया था. शहजाद पूनावाला ने प्रक्रिया पर भी सवाल उठाये थे और फेमिली बिजनेस तक कह डाला था. शहजाद पूनावाला ने राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने की इच्छा भी जतायी थी.

राहुल गांधी तो तकनीकी रूप से निर्विरोध चुन लिये गये, लेकिन सोनिया गांधी को चुनाव लड़ना पड़ा था जिसमें जितेंद्र प्रसाद हार गये थे. नयी व्यवस्था में जितेंद्र प्रसाद के बेटे जितिन प्रसाद भी ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट, गौरव गोगोई की तरह टीम राहुल में बने हुए हैं.

राहुल गांधी के सामने बड़ा चैलेंज

2019 के चुनावों से पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के सामने मुख्यमंत्री चुनने की चुनौती फिलहाल सबसे बड़ी है. राहुल गांधी को कोई ऐसा रास्ता अख्तियार करना होगा जिससे अगले आम चुनाव में कोई नयी मुश्किल न खड़ी हो जाये.

सच तो ये है कि राहुल गांधी को सिर्फ ऐसा मुख्यमंत्री नहीं चुनना है जो चुनावी वादे ठीक से पूरा कर सके. कांग्रेस की गुटबाजी ही वो फैक्टर है जिस पर राहुल गांधी को वैसे ही काबू पाना है जैसे वो चुनावों के दौरान कंट्रोल करने में कामयाब रहे. जरा भी सावधानी हटी, समझो 2019 में दुर्घटना घटी. जिसने सूबे में कांग्रेस को खड़ा करने में सबसे ज्यादा मेहनत की या जो चुनाव प्रबंधन में कुशल रहा, इस आधार पर मुख्यमंत्री का नाम तय करने से ज्यादा जरूरी है - ऐसा नेता जो कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जीत का यही जज्बा अगले छह महीनों तक कायम रख पाने में सक्षम हो - और 2014 के बीजेपी जैसा भले न सही, लेकिन तीनों राज्यों में रिजल्ट उसके आस पास जरूर ला सके.

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