जानिए, देश के सबसे चर्चित 'टैंकर घोटाले' की ABCD
टैंकर स्कैम की रिपोर्ट तो पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ थी. सिफारिश भी उनके और दिल्ली जलबोर्ड के अफसरों पर FIR दर्ज कराने की थी, लेकिन अब केजरीवाल पर भी इस घोटाले को दबाने और रिपोर्ट को उजागर नहीं करने के आरोप लग रहे हैं.
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देश में अभी जिस घोटाले की सबसे ज्यादा चर्चा है, दिल्ली का टैंकर घोटाला. ज्यादातर लोगों को इस घोटाले का सच नहीं पता. आइए, जानते हैं इस घोटाले की ABCD, और ये भी कि इसमें शीला दीक्षित का रोल क्या रहा है और अब केजरीवाल का घेराव क्यों किया जा रहा है?
टैंकर स्कैम की रिपोर्ट तो पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ थी. सिफारिश भी उनके और दिल्ली जलबोर्ड के अफसरों पर FIR दर्ज कराने की थी, लेकिन अब केजरीवाल पर भी इस घोटाले को दबाने और रिपोर्ट को उजागर नहीं करने के आरोप लग रहे हैं.
क्या थी टैंकर सप्लाई योजना?
दिल्ली के कई इलाको में अभी तक पीने के पानी की पाइप लाइन नहीं पहुंची है. ऐसे इलाकों में पानी सप्लाई के लिए सरकार ने वाटर टैंकर डिस्ट्रीब्यूशन एंड मैनेजमेंट सिस्टम नाम से एक योजना बनाई थी. 2011 की इस योजना में टैंकरों के ज़रिए अनॉथराइज़्ड कालोनियों में पानी पहुंचाया जाना था. इस योजना के मुताबिक स्टैनलेस स्टील के टैंकर मंगाए जाने थे, जो जीपीएस से लैस होने थे और इसके ज़रिए हर गली के लिए एक निश्चत अंतराल में टैंकर पहुंचाने की योजना थी.
कैसे हुआ घोटाला?
गड़बड़ी के आरोप दो स्तरों पर लगाए गए- पहला योजना तैयार करने के लिए कसंल्टेंट की नियुक्ति में और डिस्ट्रीब्यूशन के लिए टैंकर मुहैया कराने वाली कंपनियों को कॉन्ट्रेक्ट देने में.
दिल्ली सरकार की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक
- वाटर टैंकर डिस्ट्रीब्यूशन एंड मैनेजमेंट सिस्टम के लिए NSIG यानि नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्मार्ट गवर्नमेंट और दिल्ली इंटीग्रेटेड मल्टीमॉडल ट्रांजिट सर्विसेस यानी DIMTS नाम की दो कंपनियों को कंसल्टेंट नियुक्त किया गया. आरोप है कि इसके लिए किसी तरह की बिडिंग नहीं की गई और नॉमिनेशन के आधार पर ही इनकी नियुक्ति कर दी गई. ऐसा करना CVC और CAG की गाईडलाइन का उल्लंघन है.
- फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट के मुताबिक जल बोर्ड के अफसरों ने दलील दी थी कि NSIG एक सरकारी कंपनी है, लेकिन जांच के बाद पाया गया कि ये कंपनी एक्ट के मुताबिक एक निजी कंपनी थी.
- फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि एक अन्य कंपनी SPML का टेंडर इसलिए रिजेक्ट कर दिया गया, क्योंकि योजना के लिए इकलौता टेंडर इसी कंपनी का आया था. हालांकि ये कंपनी तय दरों से लगभग 50 फीसदी के रेट पर काम करने के लिए तैयार थी.
- बाद में SPML कंपनी को री-टेंडरिंग की प्रक्रिया में हिस्सा लेने से ही बैन कर दिया गया.
- रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली जल बोर्ड के सदस्यों और उसकी अध्यक्ष जो तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित थीं, उन्होने ज़ोन-2 के लिए सिटी लाइफ लाइन ट्रैवल्स और ज़ोन -8 के लिए रामकी एन्वायरो इंजीनियर्स लिमिटेड के इकलौते टेंडरों को मंजूर कर लिया. जांच में ये भी पता चला कि ये टेंडर कहीं ऊचे रेट पर मंजूर किए गए.
- फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने पाया कि दिल्ली जल बोर्ड के फैसलों की वजह से सरकार को आर्थिक नुकसान हुआ. जिस कंपनी SPML का टेंडर निरस्त किया गया, उसके बदले ऊंचे दामों पर दूसरी कंपनियों को टेंडर देने से जल बोर्ड को करीब 323 करोड का नुकसान हुआ.
- दस साल के लिए इन कंपनियों से करार किया गया, जिसकी वजह से नुकसान का आंकड़ा 360 करोड़ तक पहुंच गया.
- यही नहीं सामान्य तौर पर जल बोर्ड में जिस तरह के टैंकर किराए पर लिए जाते हैं, उनकी तुलना में भी नए टैंकरों को लाने से भी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा.
- 3 किलोलीटर के टैंकर पर करीब 87 रुपए प्रति प्रति किलोमीटर और 9 किलोलीटर के टैंकर पर करीब 119 रुपए प्रति किलोमीटर का नुकसान हुआ.
इस मामले में जून 2015 में दिल्ली सरकार ने फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बनायी थी, इस कमेटी की रिपोर्ट जुलाई 2015 में तैयार भी हो गई थी. अगस्त 2015 को पूर्व मुख्यमंत्री और अन्य लोगों के खिलाफ एफआईआर की सिफारिश करते हुए दिल्ली सरकार के मौजूदा मंत्री कपिल मिश्रा ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को एक चिठ्ठी भी लिखी थी. लेकिन अगस्त के बाद इस रिपोर्ट पर न तो कोई एक्शन उन कंपनियों पर लिया गया, जिन्हें गलत तरीके से टैंकर डिस्ट्रीब्यूशन का कॉन्ट्रेक्ट दिया गया था और न ही आरोपियों पर कोई FIR दर्ज करायी गई.
पानी के बहाने मलाई किसने खाई... |
13 जून को करीब दस महीने बाद विपक्ष के हंगामे के बाद केजरीवाल सरकार ने विधानसभा में टैंकर घोटाले की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट को सार्वजनिक किया गया और एलजी के पास एसीबी से जांच कराने के लिए फाइल को भेज दिया गया.
केजरीवाल का इस घोटाले से कनेक्शन?
जब केजरीवाल सरकार की तरफ से घोटाले में FIR दर्ज कराने के लिए फाइल एलजी के पास भेजी गई, तो तुरंत विपक्ष के नेता ने भी एलजी को एक चिठ्ठी लिख दी. इस चिट्ठी में आरोप लगाया गया कि 10 महीने तक सीएम केजरीवाल ने उस फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट को दबाए रखा, जिसमें जल बोर्ड में घोटाला साबित हो चुका था.
मुख्यमंत्री ने रिपोर्ट के आधार पर न तो आरोपियों पर कार्रवाई ही की और न ही उन कंपनियों का कांन्ट्रेक्ट ही रद्द किया, जिन पर गलत तरीक से टैडर हासिल करने का आरोप था.
बीजेपी विधायक विजेंद्र गुप्ता के आरोपों के मुताबिक रिपोर्ट से तय हो गया था कि अलग अलग जोन में कॉन्ट्रक्ट हासिल करने वाली कंपनियों वीएसके टेक्नोलॉजीज़, आरके मोबाइल प्राइवेट लिमिटेड, प्रोफेशनल आटोमोटिव, सिटी लाइफ लाइन ट्रेवल्स प्राइवेट लिमिटेड, और रामकी एन्वायरो इंजीनियर्स लिमिटेड ने कार्टेल बनाकर टेंडर हासिल किये हैं. इस वजह से टेंडर न सिर्फ हाईरेट पर उठाए गए, बल्कि काम्पीटीशन को भी खत्म कर दिया.
विजेंद्र गुप्ता ने एलजी से मांग की थी कि सबकुछ जानते हुए भी मौजूदा मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कंपनियों के कॉन्ट्रेक्ट को जारी रखा. इसलिए उनकी भूमिका भी जांच की जानी चाहिए. अब एसीबी में शीला दीक्षित के साथ केजरीवाल पर आरोपों वाली शिकायत भी एलजी की तरफ से भेज दी गई है.
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