धर्मशाला में क्रिकेट मैच तो रिटायर्ड फौजियों के बीच होना चाहिए
रिटायर्ड सैनिक विवाद और राजनीति की नेट प्रैक्टिस अपने OROP आंदोलन से कर चुके हैं. फिर जेएनयू के देशद्रोह विवाद में कन्हैया ने रिटायर्ड सैनिकों पर आरोप मढ़कर एक बार फिर मैदान में उतरने के लिए उन्हें उकसाने का काम किया है.
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भारत-पाक क्रिकेट मैच कहीं भी हो – विवाद, मैच फिक्सिंग और राजनीति में से कोई न कोई बीच में आना तय है. दोनों देशों को कूटनीतिक मामलों पर बातचीत शुरू करनी है तो क्रिकेट मैच कराना जरूरी हो जाता है. चल रही बातचीत को रोकना हो तो क्रिकेट मैच को रोकना बेहद अहम होता है. बीते हफ्ते टी-20 क्रिकेट वर्ल्ड कप का प्रोग्राम आते ही एक बार फिर दोनों देशों के बीच क्रिकेट के खेल को लेकर जंग शुरू हो गई है.
इस बार देश के पूर्व-सैनिकों ने सबसे शांतप्रिय समझे जाने वाले राज्य हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में होने वाले भारत-पाक मैच के विरोध में दंभ भरा है. पूर्व सैनिकों का कहना है कि सीमा पार से आतंकवाद फैलाने में पाकिस्तान की भूमिका के बाद वह दोनों देशों के बीच होने वाले इस मैच का विरोध करते हैं. इन आतंकी गतिविधियों में देश और खासतौर पर हाल के पठानकोट आतंकी हमले में हिमाचल से शहीद हुए जवानों के परिवार के साथ खड़े रहते हुए पूर्व सैनिक इस मैच को नहीं होने देंगे. कह सकते हैं इसी विरोध का हवाला देते हुए खुद प्रदेश के मुख्यमंत्री इशारा कर रहे हैं कि पाकिस्तान की क्रिकेट टीम को सुरक्षा की गारंटी नहीं दी जा सकती है.
वहीं सीमा पार से सुरक्षा का जायजा लेने के लिए आई एक विशेष टीम दिल्ली और हिमाचल प्रदेश का दौरा कर इस्लामाबाद में सीधे प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को रिपोर्ट सौंपती है कि टीम की सुरक्षा के लिहाज से धर्मशाला में मैच कराना खतरे से खाली नहीं है. क्रिकेट से रिटायर हो राजनीति कर रहे इमरान खान ने भी दावा किया है कि इन हालात में धर्मशाला में टीम को भेजने का जोखिम नहीं उठाया जा सकता है. लिहाजा, घोषणा की जा चुकी है कि धर्मशाला में प्रस्तावित भारत और पाकिस्तान के बीच टी-20 विश्वकप मुकाबले की तीनों विकेट चटक चुके हैं और अब इसे कोलकाता शिफ्ट करने पर आईसीसी ने फैसला कर लिया है.
अब सवाल यह है कि क्या भारत-पाकिस्तान के कूटनीतिक रिश्तों में क्रिकेट वाकई इतनी अहमियत रखता है? क्रिकेट महज खेल न होकर क्या दो देशों के बीच रिश्तों को बनाने-बिगाड़ने का साधन है? इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत और पाकिस्तान में क्रिकेट की खासी अहमियत है. इन दोनों देशों के बीच क्रिकेट पर विवाद की तुलना इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच एशेज सीरीज से की जा सकती है. लेकिन एक सच्चाई को नकारा भी नहीं जा सकता कि दोनों देशों में आम आदमी हो या खास, वह क्रिकेट को जारी रखना चाहते हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी क्रिकेट का ग्लैमर भारत और पाकिस्तान के बीच मुकाबले से ही बनता है. इसके बावजूद क्यों इस खेल पर कोहराम मचा है?
मौजदा समय में क्रिकेट और उस पर टी-20 मुकाबला, किसी पैसों की बारिश से कम नहीं है. कमाई और रसूख के लिहाज दुनियाभर के सभी क्रिकेट बोर्डों में बीसीसीआई शीर्ष पर बैठा है. हकीकत यह है कि पाकिस्तान का क्रिकेटर हो या क्रिकेट के इर्द-गिर्द रिटायर्ड क्रिकेटर, मोटी कमाई करनी है तो भारत के साथ क्रिकेट का खेल जारी रखने में ही भलाई है. वहीं देश में बीसीसीआई की कमान बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर के हाथ में है. मार्च 17 से शुरू होने वाले इस टी-20 मुकाबले में उनकी कोशिश पैसों की जमकर बारिश कराने की है. लेकिन उन्हीं के गृह राज्य हिमाचल प्रदेश में उनके राजनीतिक विरोधियों ने राष्ट्रवाद की गुगली डाल दी है. प्रदेश के रिटायर्ड सैनिक राष्ट्रवाद के मुद्दे पर ब्लैकमेल करने में कामयाब हो गए हैं.
गौरतलब है कि देश में रिटायर्ड सैनिक बीते दिनों में विवाद और राजनीति की नेट प्रैक्टिस अपने OROP आंदोलन से कर चुके हैं. इसके बाद जेएनयू के देशद्रोह विवाद में कन्हैया कुमार ने रिटायर्ड सैनिकों पर आरोप मढ़कर एक बार फिर मैदान में उतरने के लिए उन्हें उकसाने का काम किया है. इसके अलावा भारत और पाकिस्तान के काफी रिटायर्ड सैनिकों को अरनब गोस्वामी के कमेंट्री बॉक्स में बैठकर प्रेस कांफ्रेंस करने का भी भरपूर अभ्यास हो चुका है. ऐसे में यह कहना कि भारत-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट की तीनों विकटों में रिटायर्ड सैनिकों की पूरी दक्षता है कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. जहां तक सवाल राष्ट्रवाद का है, तो धर्मशाला के मैच को कोलकाता भेजवाकर उन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया है कि जहां वह रहते हैं वहां राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के लिए कोई जगह नहीं है. अब धर्मशाला में बना खूबसूरत क्रिकेट स्टेडियम बिना मैच के रहे तो यह भी ठीक नही, लिहाजा यहां इन दोनों देशों के रिटायर्ड सैनिकों का क्रिकेट मैच राजनीति, कूटनीति और मैच फिक्सिंग का माकूल जवाब होगा.
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