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Updated: 10 सितम्बर, 2021 12:35 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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बीजेपी ने लगता है ऐसी कैंपेन टीम बनायी है कि योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के जिम्मे यूपी में कोई काम ही न रह जाये - फिर तो बीजेपी बड़े आराम से हमेशा की तरह योगी आदित्यनाथ को उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर तक भेज सकती है. ब्रेक के दौरान यूपी की चुनाव मुहिम का विकल्प तो खुला ही रहेगा.

मोदी सरकार के ओबीसी बिल, ओबीसी कैबिनेट और अब अपने मजबूत ओबीसी चेहरे के साथ बीजेपी यूपी विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) की मुहिम शुरू करने जा रही है - और साथ में ऑल-इन-वन पैकेज भी तैयार है.

यूपी चुनाव कैंपेन के लिए बीजेपी ने जो टीम बनायी है वो उम्मीदवारों की लिस्ट का प्रतिबिम्ब लगती है, जिसमें हर वोट बैंक को आकर्षित करने के लिए पूरा स्कोप हो - एक ऐसी कैंपेन टीम जो ओबीसी वोट अपनी तरफ खींचने की कोशिश तो करे ही बीजेपी के राष्ट्रवाद और दलित एजेंडे के साथ साथ श्मशान-कब्रिस्तान की बहस को भी सफलतापूर्वक आगे बढ़ा सके.

केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान (Dharmendra Pradhan) जिस टीम को लेकर यूपी चुनाव में अपना जाल बिछाने वाले हैं उसमें उनके कैबिनेट साथियों के साथ ऐसे नेता भी हैं जो जातीय राजनीतिक समीकरणों में आसानी से फिट हो जाते हैं - ठाकुरों के लिए अनुराग सिंह ठाकुर, दलित वोट के लिए अर्जुन राम मेघवाल, सवर्ण वोट के लिए शोभा करंदलाजे, यादव वोट के लिए अन्नपूर्णा देवी, ब्राह्मण वोट के लिए सरोज पांडे, जाट वोट बैंक के लिए कैप्टन अभिमन्यु और भूमिहार वोट बैंक को रिझाने के लिए विवेक ठाकुर. धर्मेंद्र प्रधान बीजेपी के चुनाव प्रभारी हैं, जबकि ये सभी सह-प्रभारी बनाये गये हैं.

टीम को काम करने में आसानी हो, इसलिए उत्तर प्रदेश में क्षेत्रवार छह संगठन प्रभारियों की भी नियुक्ति हुई है - पश्चिम यूपी के लिए लोक सभा सांसद संजय भाटिया, बृज क्षेत्र के लिए बिहार के विधायक संजीव चौरसिया, अवध क्षेत्र के लिए बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव सत्या कुमार, कानपुर क्षेत्र के लिए राष्ट्रीय सह कोषाध्यक्ष सुधीर गुप्ता, गोरखपुर क्षेत्र के लिए राष्ट्रीय सचिव अरविंद मेनन और काशी क्षेत्र की जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश के ही सुनील ओझा को दी गई है.

बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने यूपी के लिए जो टीम तैयार की है, देख कर लगता है कि बीजेपी नेतृत्व को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की तरफ से योगी आदित्यनाथ तो कोविड 19 काल में कामकाज के लिए मिली क्लीन चिट और कानून-व्यवस्था के मामले में मिले बेस्ट परफॉर्मर के सर्टिफिकेट से संतोष नहीं हो पा रहा है. वैसे भी बीजेपी की बैठकों में जेपी नड्डा याद दिलाना नहीं भूलते कि यूपी चुनाव महज एक राज्य में सत्ता में वापसी की लड़ाई नहीं है, बल्कि 2024 के आम चुनाव के लिए लॉन्च पैड बनाये रखने के हिसाब से भी बेहद जरूरी है.

धर्मेंद्र प्रधान की टीम का मिजाज तो ऐसा ही लग रहा है जैसे बीजेपी को मुस्लिम वोट बैंक की जरा भी फिक्र नहीं है. हो सकता है बीजेपी नेतृत्व ये मान कर चल रहा हो कि वो तो संघ प्रमुख मोहन भागवत के स्तर पर ही ठीक से मैनेज करने की कोशिश अच्छी है, लेकिन ये भी साफ साफ समझ में आ रहा है कि जैसे आम चुनाव में बीजेपी के निशाने पर कांग्रेस रही है - यूपी विधानसभा चुनाव में मायावती की बीएसपी और अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी को लेकर बीजेपी की मंशा बिलकुल वैसी ही है. जैसे कांग्रेस मुक्त भारत, ठीक वैसे ही ही सपा-बसपा मुक्त उत्तर प्रदेश.

ब्राह्मण और भूमिहार वोट बैंक

बेशक ओबीसी वोट बैंक पर बीजेपी की नजर टिकी हुई है, लेकिन ब्राह्मण वोट को लेकर मायावती और अखिलेश यादव की हद से ज्यादा सक्रियता भी बीजेपी नेतृत्व की आंख में बुरी तरह चुभ रही है - और जुलाई में हुए मोदी कैबिनेट विस्तार में यूपी से एक और ब्राह्मण चेहरा शामिल करने के बाद भी धर्मेंद्र प्रधान की टीम में छत्तीसगढ़ से आने वाली सरोज पांडेय को शामिल किया गया है.

बीजेपी ने 2009 में सरोज पांडेय के महापौर रहते हुए आम चुनाव में विधायक और दुर्ग सीट से लोक सभा उम्मीदवार बनाया था - और एक साथ मेयर, विधायक और सांसद होने के लिए उनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में शामिल किया जा चुका है, जिसे वो अपना ट्विटर प्रोफाइल भी सजाती हैं. सरोज पांडेय फिलहाल राज्य सभा सांसद हैं, हालांकि, 2014 में मोदी लहर के बावजूद छत्तीसगढ़ से वो अकेली उम्मीदवार रहीं जिसे हार का मुंह देखना पड़ा था.

वैसे सरोज पांडे के आने से पहले से ही यूपी में डॉक्टर महेंद्र नाथ पांडेय और कलराज मिश्रा जैसे नेताओं को बीजेपी ने प्रोजेक्ट करना शुरू कर दिया है. महेंद्र नाथ पांडेय को 2019 के आम चुनाव से पहले यूपी बीजेपी की कमान सौंपी गयी थी, लेकिन बाद में केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया.

yogi adityanath, dharmendra pradhanधर्मेंद्र प्रधान को यूपी चुनाव का प्रभारी बना कर बीजेपी नेतृत्व ने इतना तो कर ही दिया है कि योगी आदित्यनाथ को कोई टेंशन न हो!

यूपी बीजेपी उपाध्यक्ष अरविंद शर्मा को जिस मकसद से स्थापित करने की कोशिश हुई वो योगी आदित्यनाथ की कैबिनेट में शामिल न करने की जिद के चलते पूरी नहीं हो पायी, लिहाजा बिहार के सीनियर बीजेपी नेता सीपी ठाकुर के बेटे और राज्य सभा सांसद विवेक ठाकुर को मोर्चे पर भेजा गया है.

यूपी से बडे़ भूमिहार नेता मनोज सिन्हा को जम्मू-कश्मीर का लेफ्टिनेंट गवर्नर बना दिये जाने के बाद बीजेपी विधायक अलका राय कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा से मुख्तार अंसारी को लेकर लोहा लेती रहती हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के साथ साथ गाजीपुर, बलिया, मऊ, आजमगढ़ और जौनपुर में भी अच्छा खासा भूमिहार वोट है जो आमतौर पर बीजेपी के साथ ही रहता है, देखना है अरविंद शर्मा को लेकर योगी आदित्यनाथ के स्टैंड से नाराजगी कोई असर डालती है या नहीं.

मायावती के मजबूत साथी बीएसपी महासचिव फिलहाल पूरे परिवार के साथ यूपी में घूम घूम कर ब्राह्मण सम्मेलन कर रहे हैं - लेकिन तकनीकी वजहों से उसे प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन नाम दिया जा रहा है. मायावती की ही तरह अखिलेश यादव भी प्रबुद्ध सम्मेलन के जरिये ब्राह्मण वोट को लुभाने में जुटे हैं

ओबीसी और दलित वोट बैंक

10 अगस्त 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश भर में उज्ज्वला 2.0 की शुरुआत की थी - और उसके कुछ ही दिन बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यूपी में भी जोर शोर से स्कीम को आगे बढ़ाया. यूपी सरकार की कोशिश है कि दूसरे चरण में उज्ज्वला योजना का फायदा 20 लाख परिवारों तक पहुंच सके और उसी हिसाब से इसे प्रचारित भी किया जा रहा है.

यूपी के चुनाव प्रभारी बनाये गये धर्मेंद्र प्रधान को बीजेपी में पेट्रोलियम मंत्री रहते देश भर में उज्ज्वला योजना को सफलतापूर्वक लागू करने का क्रेडिट दिया जाता है. 2017 में शुरू हुई इस योजना के बारे में माना जाता है कि 2019 के आम चुनाव में बीजेपी को काफी फायदा मिला.

ओडिशा से आने वाले धर्मेंद्र प्रधान को भी असम के सर्बानंद सोनवाल की तरह अनौपचारिक रूप से 2019 के राज्य विधानसभा चुनावों में सक्रिय किया गया था, लेकिन बीजेडी नेता नवीन पटनायक के आगे बीजेपी की दाल नहीं गल पायी - और बैरंग लौटना पड़ा था.

जेपी नड्डा के साथ धर्मेंद्र प्रधान 2017 के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी का अभियान तो संभाले ही सत्ता तक पहुंचाने में भी सफल रहे. उत्तराखंड के अलावा धर्मेंद्र प्रधान बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में भी अपनी काबिलियत का लोहा मनवा चुके हैं - लेकिन 2022 का यूपी विधानसभा चुनाव उनके लिए अग्नि परीक्षा साबित होने वाला है.

धर्मेंद्र प्रधान हाल के वर्षों में बीजेपी का मजबूत ओबीसी चेहरा तो बने ही हैं - और गैर-यादव ओबीसी वोट को बीजेपी के खाते में डलवाने की जिम्मेदारी उन पर ही रहेगी, यादव वोटों के लिए बीजेपी ने उनकी मदद में झारखंड से सांसद और केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी मोर्चे पर तैनात किया है. बीजेपी में आने के बाद अन्नपूर्णा देवी के कद में लगातार इजाफा देखा गया है - और संभव है बीजेपी अगले झारखंड चुनाव में सीएम कैंडिडेट के तौर पर भी अन्नपूर्णा देवी के नाम पर भी विचार करे.

यूपी बीजेपी कैंपेन टीम की घोषणा से पहले ही उत्तराखंड के राज्यपाल रहते बेबी रानी मौर्य की अमित शाह से मुलाकात के बाद चुनावों में बड़ी भूमिका देने की चर्चा शुरू हो गयी थी. देर भी नहीं लगी और बेबी रानी मौर्य ने राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा भी सौंप दिया.

गैर यादव ओबीसी की ही तरह बीजेपी की नजर गैर जाटव दलित वोट बैंक पर रही है, राजस्थान से आने वाले दलित नेता अर्जुन मेघवाल को भी यही सोच कर धर्मेंद्र प्रधान की टीम में शामिल किया गया है.

1995-2000 में आगरा की मेयर रह चुकीं बेबी रानी मौर्य के नये रोल में आगरा और आसपास के इलाकों में मायावती के वोट बैंक में सेंध लगा कर बीजेपी के पक्ष में दलित वोट इकट्ठा करने का जिम्मा होगा. आगरा के साथ साथ सीमावर्ती इलाकों अलीगढ़ और फिरोजाबाद में भी दलितों की अच्छी भली आबादी है.

चुनावों के दौरान मायावती के लिए आगरा बड़ा लॉन्च पैड होता है और बीएसपी के पक्ष में बिगुल फूंकने की कोशिश भी उनकी ताज क्षेत्र से ही होती है. तब भी जबकि ताज कॉरिडोर उनके लिए लंबे अरसे तक मुश्किलों का सबब बना रहा.

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मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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