Surgical Strike: दिग्विजय सिंह से किनारा क्यों नहीं करते राहुल गांधी?
कांग्रेस का उद्धेश्य यदि चुनावों में सफलता प्राप्त करना है तो 'चुनाव देवता' बलि की मांग कर रहे हैं. इस वक्त आदर्श स्थिति बनी है कि जनाधार खो चुकी कांग्रेस पार्टी दिग्विजय सिंह की बलि दे दे. इसके बाद दिग्विजय सिंह को भी संतोष करना चाहिए, क्योंकि उनकी बलि के बाद कहा जाएगा जिंदा हाथी लाख का मरा सवा लाख का.
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दिग्विजय सिंह सठिया तो वे बहुत पहले गए थे, अब भीतरघाती सिद्ध हो रहे हैं. यात्रा के अंतिम पड़ाव में उनके बयान ने जोड़ने की प्रक्रिया को तोड़ने में जो बदल दिया है. औरों की तो क्या बात करें, पार्टी का हर नेता हर कार्यकर्ता हतप्रभ है कि वो जिसे वरिष्ठ नेता मानते हैं, जो भारत जोड़ो यात्रा के संयोजक भी हैं, कैसे आज इस पल जब यात्रा कश्मीर में हैं, 'स्ट्राइक निंदा पुराण' पुनः कर सकते हैं? विघटन किया है या संयोजन किया है जनाब ने. फिर जब तक पार्टी उनके बयान को व्यक्तिगत विचार बताकर पल्ला झाड़े तब तक भिन्न भिन्न पार्टी प्रवक्ता भिन्न भिन्न उन्हीं चैनलों पर, जिन्हें वे गोदी मीडिया निरूपित करते अघाते नहीं, उनके बयान को सही बताने के लिए उलजुलूल बातें कर आग में घी भी डाल चुके हैं.
डैमेज इतना तगड़ा हुआ है कि करीब तीन महीने में 10 राज्यों के 52 जिलों से होकर जम्मू कश्मीर पहुंची यात्रा के मकसद पर पानी फिर गया है. अब भरपाई करनी है तो दिग्विजय सिंह से ही किनारा करना होगा. वैसे भी वे जनता की नजरों से कब के गिर चुके हैं. फिर जब आप दिग्विजय सिंह के बयान को उनका व्यक्तिगत विचार बताकर पल्ला झाड़ते हैं तो "कंडीशंस अप्लाई" कर देते हैं. लाइटर नोट पर कहें तो पल्ला झाड़ते नहीं, बल्कि सिर्फ झटक भर देते हैं. आपकी क्या मजबूरी है, आप ही जानें. जैसे पार्टी के एक दूसरे वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा, "आज वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह द्वारा व्यक्त किए गए विचार कांग्रेस पार्टी के नहीं, उनके व्यक्तिगत विचार हैं. 2014 से पहले यूपीए सरकार ने भी सर्जिकल स्ट्राइक की थी. राष्ट्रहित में सभी सैन्य कार्रवाइयों का कांग्रेस ने समर्थन किया है और आगे भी समर्थन करेगी."
आपकी सफाई तुलनात्मक क्यों है? यदि राष्ट्रहित सर्वोपरि है, राष्ट्रहित में सभी सैन्य कार्यवाहियों को आपका समर्थन है तो टोकरी में एक सड़े आम को क्यों रहने दिया जाए? फिर कयास तो लगेंगे ही, फ्रीडम सब की है. दरअसल जनता के सरोकार के मुद्दों पर सत्ता को घेरने का मादा कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में रहा ही नहीं. महंगाई हो या बेरोजगारी हो, कांग्रेस तार्किक रह ही नहीं गई है. वजह है नेताओं का कमतर और आधा अधूरा ज्ञान और फिर वे अपने आप को अपडेट भी नहीं करते चूंकि बुद्धि जो लगानी पड़ेगी. नतीजन जाने अनजाने विरोध के लिए विरोध करने के वश दीगर भावनात्मक मुद्दे मसलन धर्म, आस्था, राष्ट्र प्रेम के विमर्श में वे उलझ जाते हैं जो उनकी "कप ऑफ़ टी" है ही नहीं.
ठंडा पड़ जाना भावनाओं की हमेशा से नियति रही है. इसे कांग्रेस से बेहतर कौन समझ सकता है? जनता ने इमरजेंसी भुलाई, सिखों ने चौरासी भुलाया. तो फिर सर्जिकल स्ट्राइक के मुद्दे को क्यों छेड़ा गया दिग्गी राजा द्वारा? दरअसल नेता अतिरंजना में आकर उक चूक बोल जाते हैं, विचारों में गंभीरता और गहराई रख ही नहीं पाते. यह रोग कांग्रेस पर भारी पड़ रहा हैं. और जब दिग्विजय सिंह सरीखा कथित वरिष्ठ नेता भूल जाए कि पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकियों के लॉन्च पैड पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक के मुख्य रणनीतिकार लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) डी एस हुड्डा से 2019 में तब अध्यक्ष राहुल गांधी ने राष्ट्रीय सुरक्षा पर रिपोर्ट तैयार करवाई थी और उनकी भूरि भूरि प्रशंसा की थी.
दिग्विजय सिंह को यदि सर्जिकल स्ट्राइक की बात उठानी ही थी तो हुड्डा साहब की बात भर दोहरा देते, माइलेज उन्हें भी मिलता और पार्टी को तो मिलता ही. आखिरकार उन्हें भी यही कहना था, चूंकि स्क्रिप्ट यही थी जो स्पष्ट भी है उनके पूरे भाषण से. परंतु बोलबचन में दिल की बात जुबां पर आ गई. पहली बार नहीं, वे सीरियल ऑफेंडर हैं इस मामले में. अलंकृत फौजी अफसर ने सर्जिकल स्ट्राइक के ज्यादा प्रचार पर कड़ी आलोचना की थी. उन्होंने कहा था कि सर्जिकल स्ट्राइक जरूरी था और हम लोगों ने इसे किया. मुझे नहीं लगता कि इसका ज्यादा प्रचार होना चाहिए. सर्जिकल स्ट्राइक से यह समझना कि अब आतंक खत्म हो गया या पाकिस्तान बाज आ जाएगा, यह गलत है. और देर सबेर कांग्रेस पार्टी ने भी यही ऑफिसियल लाइन अडॉप्ट की थी.
हालांकि एहसास हुआ दिग्विजय सिंह को तब जब कांग्रेस ने खुद को उनके बयान से अलग किया वरना तो बीजेपी के हमलों से उन्हें एक प्रकार की संतुष्टि हो रही थी. उन्हें 'अखबार में नाम' हो रहा सरीखा लग रहा था. अब उनके भी सुर बदले हुए नजर आ रहे हैं. भारत जोड़ो यात्रा के दौरान अब वे कह रहे हैं कि "हम सुरक्षाबलों का काफी सम्मान करते हैं और उनको सर्वोच्च स्थान देते हैं." कहने को 'देर आयद दुरुस्त आयद' उनके लिए कहकर मन को बहलाया जा सकता है, लेकिन कांग्रेस पार्टी की अब तक की सबसे महत्वाकांक्षी यात्रा को डेंट तो लगा ही दिया है और वह भी प्री चुनावी साल में.
कांग्रेस के लिए दिग्विजय का बयान कितना बड़ा ख़तरा बन सकता है, इसका एहसास है तभी तो राहुल गांधी ने स्वयं कह दिया है कि वे सर्जिकल स्ट्राइक पर दिग्विजय के बयान से सहमत नहीं है और देश की सेना जो भी ऑपरेशन करें, उसका सबूत देने की ज़रूरत नहीं है. वरना तो वे अमूमन चुप ही रह जाते हैं. अपनी पार्टी के नेताओं के अनर्गल प्रलाप पर. लेकिन इस बार उन्होंने ख़तरा उठाया है. असहमति जताकर जबकि उन्हें पता है इसे भी बीजेपी भुनायेगी. परंतु उद्धेश्य यदि चुनाव में सफलता प्राप्त करना है तो बलि की मांग है चुनाव देवता की. आदर्श स्थिति बनी है कि जनाधार खो चुके दिग्विजय सिंह की बलि दे दी जाए और वे भी संतोष करें कि उनके लिए कहा जाएगा जिंदा हाथी लाख का मरा सवा लाख का. लगे हाथों यदि कांग्रेस पार्टी इस समय, जैसा राहुल गांधी के गुलाम नवी आजाद से माफी मांगने से हिंट भी मिलता है, आजाद को कांग्रेस में वापसी के लिए रजामंद कर लें.
ये मास्टर स्ट्रोक होगा पार्टी का. इस तरह 'दिग्विजय आउट आजाद इन'. एक बात और, राहुल ने अप्रत्याशित रूप से स्टैंड क्या लिया, 24 घंटों में ही कांग्रेस के प्रवक्ताओं ने दिग्विजय सिंह के बयान को देश विरोधी बताना शुरू कर दिया है. तो फिर देश विरोधी बयान देने वाला देशद्रोही ही कहलायेगा ना. देश द्रोही है तो कांग्रेस में है ही क्यों? हैं तभी तो शीर्षस्थ नेताओं द्वारा असहमति जताये जाने के बावजूद वे सर्जिकल स्ट्राइक पर उठाये गए सवाल पर कायम हैं. जब सबूत देने की जरुरत ही नहीं हैं, जैसा राहुल गांधी ने स्पष्ट कहा, तो दिग्विजय सिंह कैसे सबूत मांग सकते हैं भले ही "सरकार से" ही क्यों न हों?
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