कश्मीर में भले अलगाववाद की लहर हो, लेकिन सियासत पूरी हिंदुस्तानी है
जम्मू कश्मीर में जो कुछ हुआ है उसमें बीजेपी ने पाकिस्तान का नाम घसीटा है. थोड़ा गौर से देखें तो ये आर्दश हिंदुस्तानी राजनीतिक का प्रत्यक्ष उदाहरण है, जिसमें सारे किरदार साफ नजर आ रहे हैं - लीड रोल में सूबे के महामहिम भी.
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राजभवन के दरवाजे हमेशा खुले होते हैं. फिर भी कई बार, विशेष राजनीतिक परिस्थितियों में अपरिहार्य कारणों से मैन्युअल ताले भी ऑटोलॉक का रोल निभाने लगते हैं. ताजा वाकया जम्मू कश्मीर के राजभवन का है जहां किसी स्वतःस्फूर्त स्वचालित व्यवस्था की तरह फैक्स मशीन ऐन वक्त पर जाम हो गयी. किसी रिवर्स यू टर्न पर लगे ट्रैफिक जाम की तरह.
पूरे एपिसोड में निशाने पर आये जम्मू कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक भी ऐसे लग रहे हैं जैसे स्वयं ही उन्होंने खुद को रोमेश भंडारी जैसे कथित निष्ठावान राज्यपालों की स्वर्णिम सूची में शुमार कर ही लिया हो.
कुछ कुछ ऐसा तब भी देखने को मिला था जब बिहार में नीतीश कुमार ने महागठबंधन छोड़ने के साथ ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. मालूम हुआ महामहिम की तबीयत अचानक खराब हो गयी - और सेहत सुदृढ़ होने की खबर तब तक नहीं आई जब तक नीतीश दोबारा शपथ लेकर कुर्सी पर ठीक से बैठ नहीं गये. कर्नाटक का किस्सा भी ज्यादा पुराना नहीं है. गोवा और मणिपुर तो याद ही होंगे, लेकिन जम्मू कश्मीर के राजभवन की फैक्स मशीन भी ऐन वक्त पर ही खराब होगी - भला कौन सोच सकता था. मगर, हुआ सब कुछ वैसे ही जैसे जैसे फिल्म की स्क्रिप्ट के साथ भी छेड़छाड़ करने को कोई तैयार न हो. इंटरवल तो पहले ही हो चुका था, बाद में तो पूरे दो घंटे का क्लाइमेक्स रहा. बाद में जो भी हो रहा है उसकी तो बात ही और है.
दो घंटे का प्राइम टाइम और नए गठबंधन की नौटंकी
घाटी में सियासी गतिविधियों की सुगबुगाहट तो दोपहर में ही शुरू हो चुकी थी. दिल्ली में जब गृह मंत्री राजनाथ सिंह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से चर्चा शुरू किये तो शाम के सात बजे थे. मध्य प्रदेश के चुनाव प्रचार से लौटते ही राजनाथ सिंह अपनी सरकारी जिम्मेदारियों के निर्वहन में जुट गये. तब तक ये बात चारों ओर फैल चुकी थी कि कल तक बीजेपी के साथ रही पीडीपी अपनी कट्टर विरोधी नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के साथ हाथ मिलाकर सरकार बनाने का दावा पेश करने वाली है.
आगे क्या?
घंटे भर बाद करीब सवा आठ बजे पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती की ओर से आधिकारिक सूचना भी ट्विटर पर आ गयी. महबूबा ने बताया कि सरकार बनाने के दावे से जुड़ा पत्र वो राजभवन भेजना चाह रही हैं लेकिन फैक्स रिसीव नहीं हो रहा है. महबूबा ने बताया कि महामहिम फोन पर भी उपलब्ध नहीं हैं. मकसद साफ था - 'आप सब देख ही रहे हैं...'
Sending the letter also by mail https://t.co/116mpfOrpo
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) November 21, 2018
थोड़ी ही देर बाद पीपल्स कांफ्रेंस के नेता सज्जाद लोन भी ट्वीटर पर प्रकट हुए - और कंफर्म किया कि राजभवन का फैक्स काम नहीं कर रहा. महबूबा मुफ्ती की तरह सज्जाद लोन सरकारी प्रक्रिया के चक्कर में नहीं पड़े और अपनी ओर से सरकार बनाने के दावे वाला लेटर राज्यपाल के पीए को व्हाट्सऐप कर दिये. सज्जाद लोन ने भी ट्विटर पर इसकी पूरी जानकारी दी.
— Sajad Lone (@sajadlone) November 21, 2018
करीब दो घंटे बीत चुके थे. नौ बजे तक राजभवन की ओर से भी औपचारिक जानकारी आ ही गयी - राज्यपाल ने विधानसभा भंग कर दी है.
महबूबा ने सरकार बनाने का दावा पेश करते हुए जो पत्र लिखा है, काफी दिलचस्प है. महबूबा को उम्मीद है कि गवर्नर साहब मीडिया रिपोर्ट से तो वाकिफ होंगे ही और इस बारे में तो सिर्फ इत्तला ही काफी होगा. ऐसा लगता है जैसे महबूबा को सरकार बनाने की नहीं बल्कि गवर्नर हाउस को फैक्स भेजने की जल्दबाजी ज्यादा है. महबूबा नेशनल कांफ्रेंस या कांग्रेस के सपोर्ट का कोई सबूत पेश करने की बजाय मान कर चल रही हैं कि महामहिम को ये तो पता ही होगा कि हमारी सरकार बनाने की तैयारी चल रही है. ऊपर से उमर अब्दुल्ला ने भी उसी अंदाज में ट्वीट किया है जैसे घाटी में राजनीति करने नहीं, बल्कि तफरीह पर निकले हों और बात बात पर मस्ती सूझ रही हो.
JKNC has been pressing for assembly dissolution for 5 months now. It can’t be a coincidence that within minutes of Mehbooba Mufti Sahiba letter staking claim the order to dissolve the assembly suddenly appears.
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) November 21, 2018
उमर अब्दुल्ला के ट्वीट से भी ये नहीं लगता कि सरकार बनाने को लेकर तीनों पार्टियों में बैठ कर कोई गंभीर बातचीत हुई हो. उमर अब्दुल्ला ने तो बस याद दिलाया है कि जो महबूबा कह रही हैं वो तो ये बात पिछले पांच महीने से कह रहे हैं.
And I never thought I’d be retweeting anything you said while agreeing with you. Politics truly is a strange world. Good luck for the battle ahead. Once again the wisdom of the people will prevail. https://t.co/OcN9uRje1s
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) November 21, 2018
निशाने पर गवर्नर और बीजेपी का बचाव
राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने विधानसभा भंग करने की जो वजहें बतायीं उनमें प्रमुख थी - बड़े पैमाने पर विधायकों के खरीद-फरोख्त की आशंका. राज्यपाल की ओर से कहा गया कि विरोधी राजनीतिक विचारधारा की पार्टियों के साथ मिल कर स्थायी सरकार दे पाना नामुमकिन है.
सही बात है. आखिर गवर्नर मलिक ने भी तो बीजेपी और पीडीपी गठबंधन का हाल देखा ही होगा. बल्कि बाकियों के मुकाबले बेहद करीब से देखा होगा. एक नहीं बल्कि दो-दो पारी देखी थी. जब सरकार चल रही थी तब भी उस पर ऐतराज जताने वाले हुआ करते रहे और उनके लिए जवाब था कि दो विपरीत ध्रुवों के मिलने की बेमिसाल मिसाल है बीजेपी और पीडीपी का गठबंधन. ये गठबंधन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुफ्ती मोहम्मद सईद के बीच हुआ था - दूसरी पारी में महबूबा तो जल्दी कुर्सी पर बैठने को तैयार ही नहीं लग रही थीं. पिता का फैसला गलत साबित न हो इसलिए काफी सोच समझ कर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने को तैयार भी हुईं और तब तक बैठी रहीं जब तक कि बीजेपी ने सपोर्ट वापस नहीं ले लिया. ये भी तब की बात है जब वो किसी मीटिंग में थीं. सरकार के दौरान महबूबा मुफ्ती बार बार अटल बिहारी वाजपेयी के 'जम्हूरियत, कश्मीरियत और इंसानियत' की दुहाई देती रहीं - और एक बार तो यहां तक कह दिया कि सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही ऐसी शख्सियत हैं जो जम्मू-कश्मीर की समस्या को सुलझा सकते हैं. बहरहाल ये बातें भी इतिहास के पन्नों या किसी डायरी का हिस्सा होकर रह गये.
गवर्नर मलिक को भी मालूम ही होगा कि बचाव में कोई न कोई मोर्चा तो संभालेगा ही. बीजेपी की ओर से जम्मू कश्मीर में सरकार बनवाने से लेकर गिराने तक मुख्य किरदार निभा चुके राम माधव ने मोर्चा संभाला. राम माधव को आशंका है कि नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी को पाकिस्तान से सरकार बनाने के निर्देश मिले थे.
#WATCH: BJP national general secretary Ram Madhav says on dissolution of J&K assembly, "PDP & NC boycotted local body polls last month because they had instructions from across the border. Probably they had fresh instructions from across the border to come together & form govt." pic.twitter.com/wNjGSFmJbc
— ANI (@ANI) November 22, 2018
बीजेपी नेता राम माधव की बात पर आग बबूला हुए उमर अब्दुल्ला अब कह रहे हैं - लाओ सबूत दो. बाद में राम माधव ने भी ट्वीट कर कहा कि ये उनकी राजनीतिक टिप्पणी है और निजी तौर पर न ली जाये.
No, misplaced attempts at humour won’t work. You HAVE claimed my party has been acting at the behest of Pakistan. I dare you to prove it! Place the evidence of your allegation of NC boycott of ULB polls at Pak behest in public domain. It’s an open challenge to you & your Govt. https://t.co/7cumKwKxuM
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) November 22, 2018
Just landed@Aizawl n saw this. Now tht u deny any external pressure I take back my comment, bt, now tht u proved it ws genuine love btw NC n PDP tht prompted a failed govt formation attempt,u shud fight nxt elections 2gether. ????Mind u it’s pol comnt,not personal https://t.co/DsOYiwwXmo
— Ram Madhav (@rammadhavbjp) November 22, 2018
क्या गवर्नर और बीजेपी विपक्ष की चाल में फंस गये?
जम्मू कश्मीर में जो होना था वो तो हो ही चुका - अब दावों और प्रतिदावों के दौर चल रहे हैं. सूत्रों की मदद से दोनों तरफ से खबरें लीक करायी जा रही हैं. वैसे खबर तो खबर है अगर सूत्र वाकई सही हैं.
बीजेपी और पीडीपी की साझा सरकार गिरने के बाद एक बड़े अंतराल पर दो तरह की खबरें आयी थीं. पहले ये खबर आयी कि पर्दे के पीछे जम्मू कश्मीर में फिर से कोई साझा सरकार बनाने की कोशिश हो रही है. तब भी नेतृत्व के नाम पर सज्जाद लोन का नाम उछला था. बात आई गयी हो गयी. फिर कुछ दिन बाद सत्यपाल मलिक का एक बयान आया कि उन्हें नहीं लगता मौजूदा सदन में कोई लोकप्रिय सरकार बन सकती है. इसके साथ ही कयास लगाये जाने लगे कि 2019 में लोक सभा के साथ ही जम्मू कश्मीर विधानसभा के भी चुनाव कराये जा सकते हैं. वैसे जम्मू कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल छह साल होने के कारण उसका टर्म 2020 में पूरा हो रहा है.
घाटी की राजनीति की समझ रखने वालों और सूत्रों के हवाले से ऐसी बातें भी चल रही हैं कि विपक्षी दलों द्वारा सरकार बनाने का दावा दरअसल एक सियासी चाल थी. पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस और सूबे की कांग्रेस का ऐसा सब करने का मकसद वास्तव में विधानसभा भंग कराना ही था. तो क्या तीन दलों की एक संयुक्त राजनीतिक चाल में बीजेपी धोखा खा बैठी? क्या राज्यपाल सत्यपाल मलिक भी तीनों दलों के झांसे में आ गये - और विधानसभा भंग करने का ऐलान कर डाला. ठीक वही कर डाला जो वे वाकई चाहते थे? वैसे महबूबा मुफ्ती के पत्र को ध्यान से पढ़ा जाये और उमर अब्दुल्ला के ट्वीट को देखा जाये तो तस्वीर काफी हद तक साफ ही है. उमर अब्दुल्ला लगातार तफरीह वाले अंदाज में हैं और अगर गंभीर होते हैं तो तब जब बीजेपी इन गतिविधियों के तार पाकिस्तान से जोड़ देती है. दूसरी तरफ, केंद्र सरकार की ओर से अलग दावा किया जा रहा है. जो कुछ हुआ नजर आ रहा है वो न तो कोई रणनीतिक और सियासी चाल थी न कुछ और - बल्कि, महज संयोग जैसा था. इस दावे के अनुसार राज्यपाल पहले ही फैसला कर चुके थे.
आज तक की रिपोर्ट के मुताबिक जम्मू कश्मीर पर फैसला तो पहले ही हो चुका था और उसकी घोषणा उस वक्त हुई जब बीजेपी के विरोधी दलों ने सक्रियता दिखानी शुरू कर दी. गृह मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से आई रिपोर्ट बता रही है कि राज्यपाल द्वारा जम्मू-कश्मीर विधानसभा को भंग करने का फैसला ये सब होने के एक दिन पहले ही लिया जा चुका था. एक औपचारिक प्रक्रिया के बाद बस इसका ऐलान कर दिया गया.
असल बात जो भी हो वैसे लगता है गवर्नर मलिक को भी महबूबा मुफ्ती की बातों में वैसे ही दम नजर नहीं आया होगा जैसे कर्नाटक में महामहिम को पहले एचडी कुमारस्वामी के दावे बेदम लगे होंगे. खैर, इस बार तो न तो कोई येद्दियुरप्पा जैसा नेता बचा था और न ही उसे न्योता देने का मौका. पीडीपी के साथ बीजेपी की गठबंधन सरकार की उम्र तो पहले ही पूरी हो चुकी थी. आखिरी तारीख थी 19 जून, 2018.
कर्नाटक के प्रसंग में देश भर में विरोधी पक्षों ने जो दावेदारी पेश की थी वो भी भूला नहीं होगा. गोवा और मणिपुर में क्या नंबर दो की पार्टी सरकार बना पाती अगर केंद्र की सत्ता से उसकी डोर नहीं जुड़ी होती. उत्तराखंड में तो हाई कोर्ट की दखल के बाद हरीश रावत राहत की सांस ले पाये - और भौंहें तरेरने वाले जज साहब तो काफी दिनों तक इंसाफ की कीमत भी चुकाते रहे. हरीश रावत भी तोताराम के फेर में लंबा फंसे. वैसे अब तो तोताराम फिर से पिंजरे से निकल कर सुप्रीम कोर्ट के पास सफाई पर सफाई दिये जा रहे हैं.
आखिर ये हिंदुस्तानी राजनीति का चरित्र नहीं है तो और क्या है? जब तक पीडीपी सत्ता में बीजेपी के साथ साझीदार थी वो राष्ट्रवाद की लक्ष्मण रेखा के दायरे में हुआ करती रही. अब वो देशद्रोही हो चुकी है. नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस तो बीजेपी की नजर में पहले से ही एक ही टापू पर खड़े थे, अब पीडीपी भी उन्हीं के पाले में जा मिली - और पाकिस्तान से निर्देश लेने लगी. गजब. साथ में हैं तो राष्ट्रवादी और अलग हुए तो राष्ट्रद्रोही. कौन कहता है कि ये असहिष्णुता है - ये तो शुद्ध देशी सियासत है. पूरी तरह हिंदुस्तानी सियासत. बेचारे इमरान खान का नाम तो यूं ही इसमें घसीटा जा रहा है. वो फौज के फरमान से ही बेहाल हैं और डोनॉल्ड ट्रंप से जैसे तैसे दो-दो हाथ करने को मजबूर हैं. क्रिकेट में तो खुल कर शॉट्स भी खेल लेते थे अब तो जबान पर भी लगाम है और ट्विटर पर सेंसर भी.
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