ये चुनाव कंगाल न कर दे डोनाल्ड ट्रंप को
अमेरिका का राष्ट्रपति पद का चुनाव दुनिया का सबसे महंगा चुनाव माना जाता है. इसीलिए चुनाव के पहले ही सभी अहम उम्मीदवार बड़े-बड़े देसी और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी राय बेबाकी के साथ रखते हैं जिससे उन्हें चुनाव खर्च के लिए चंदा बटोरने में आसानी हो.
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डोनाल्ड ट्रंप का दावा है कि उनकी कुल हैसियत (नेट वर्थ) 10 बिलियन डॉलर है. लेकिन प्रमुख बिजनेस मैगजीन फोर्ब्स उनकी नेट वर्थ महज 4.5 बिलियन डॉलर आंकती है. जून 2015 में राष्ट्रपति पद के लिए रिपब्लिकन पार्टी की प्राइमरी में कूदे डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि अपने चुनाव में वह किसी तरह के चंदे का सहारा नहीं लेंगे और चुनाव का पूरा खर्च वह अपनी मोटी जेब से उठाएंगे.
प्राइमरी की दौड़ शुरू करते ही ट्रंप ने किया भी कुछ यूं ही. प्राइमरी के दौरान प्रचार और अन्य चुनाव खर्च के लिए उन्होंने अपनी कारोबारी जेब से 50 मिलियन डॉलर निकालकर अपनी दूसरी जेब में डाल दिया. या फिर कहें कि डोनाल्ड ट्रंप कारोबारी ने डोनाल्ड ट्रंप प्रत्याशी को 50 मिलियन डॉलर का लोन दे दिया. जानकारों का मानना है कि ट्रंप ने ऐसा महज प्राइमरी में रिपब्लिकन पार्टी के अन्य प्रत्याशियों से आगे निकलने के लिए किया.
इतना ही नहीं, ट्रंप ने रिपब्लिकन पार्टी से चुनाव खर्च न लेने की दलील भी सामने रखी. इसके साथ ही उन्होंने दोनों रिप्ब्लिकन और डेमोक्रैट प्रत्याशियों को यह कहकर लताड़ा भी कि वह पार्टी और भीख के पैसे से दुनिया के सबसे ताकतवर देश की सत्ता अपने हाथ में करना चाहते हैं.
गौरतलब है कि अमेरिका में आम जनता, बिजनेसमैन और किसी सपोर्टर से चुनाव लड़ने के लिए चंदा मांगने का सिस्टम है. इस सिस्टम में चंदा देने वाले आमतौर पर चेक पेमेंट के जरिए अपने प्रत्याशियों को पैसे देते हैं. इसका पूरा लेखा-जोखा चुनाव आयोग रखता है और चंदे में किसी भी प्रत्याशी को मिलने वाला पैसे की कोई गोपनीयता नहीं रखी जाती. राष्ट्रपति चुनाव में खासतौर पर माना जाता है कि सबसे अधिक चंदा एकत्रित करने वाला प्रत्याशी राष्ट्रपति पद का प्रबल दावेदार होता है.
डोनाल्ड ट्रंप |
आज डोनाल्ड ट्रंप रिपब्लिकन पार्टी और हिलेरी क्लिंटन डेमोक्रैट पार्टी से राष्ट्रपति पद की दौड़ में हैं. अमेरिका का राष्ट्रपति पद का चुनाव दुनिया का सबसे महंगा चुनाव माना जाता है. इसीलिए चुनाव के पहले ही सभी अहम उम्मीदवार बड़े-बड़े देसी और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी राय बेबाकी के साथ रखते हैं जिससे उन्हें चुनाव खर्च के लिए चंदा बटोरने में आसानी हो. अमेरिकी चुनाव आयोग के नवीनतम आंकड़े बता रहे हैं कि डोनाल्ड ट्रंप के पास चुनाव फंड में फिलहाल 1-2 मिलियन डॉलर बचे हैं वहीं हिलेरी क्लिंटन के फंड में इसका चालीस गुना (43 मिलियन डॉलर) हैं.
प्राइमरी का दौर लगभग खत्म हो चुका है और अब बारी राष्ट्रव्यापी चुनाव प्रचार चलाने की है. इसके लिए बड़े फंड की जरूरत है. फिलहाल इस स्थिति में हिलेरी क्लिंटन ने डोनाल्ड ट्रंप से फंड के मामले में बड़ी बढ़त बना रखी है. हिलेरी के फंड पर भले ट्रंप पहले कई तरह की टिप्पणी कर चुके हैं लेकिन अब उन्हें चुनाव खर्च की चिंता सताने लगी है. इसीलिए वह पार्टी से फंड न लेने और समर्थकों से चंदे की भीख न लेने की अपनी कसम तोड़ चुके हैं और बड़ा अभियान चलाकर चंदा बटोरने की कवायद कर रहे हैं. साथ ही वह रिपब्लिकन पार्टी से भी गुहार लगा रहे हैं कि पार्टी जल्द से जल्द उनके प्रचार को तेज करने के लिए अपना फंड उन्हें मुहैया करा दे.
इस बीच, खबरें यह भी आ रही हैं कि ट्रंप इस कोशिश में हैं कि समर्थकों से मिलने वाले चंदे से वह 50 मिलियन डॉलर के उस लोन की भरपाई भी कर दें जो उन्होंने खुद को दिया था. इसके साथ ही उनके विरोधी यह आरोप भी लगा रहे हैं कि ट्रंप ने चुनाव प्रचार के दौरान अपनी कंपनी की सेवाओं का इस्तेमाल करते हुए उसी फंड से अपनी ही कंपनियों को भुगतान किया है. गौरतलब है कि अमेरिका के कई प्रमुख शहरों में ट्रंप का होटल, रेस्टोरेंट और ट्रैवल जैसा कारोबार है और वह इनका इस्तेमाल अपने चुनाव फंड से पैसे देकर कर रहे हैं. यानी एक बार फिर ट्रंप अपनी चुनावी जेब से पैसे निकालकर कारोबारी जेब में डाल रहे हैं.
बहरहाल, अभी तो ये अंगड़ाई है. प्राइमरी के स्टेज को पार करते करते उनके चुनाव फंड में महज 1-2 मिलियन डॉलर बचे हैं. उन्हें दरकार है कि जल्द से जल्द उनके फंड में मोटा डॉलर चेक गिरना शुरू हो और वह चुनाव प्रचार में डेमोक्रैट उम्मीदवार को पछाड़ने की तैयारी में जुट जाएं. अब यहां अगर उनके पुराने बयानों को समर्थक और रिपब्लिकन पार्टी थोड़ा सीरियसली ले लें तो शायद उन्हें मजबूर होकर अपने 4.5 बिलियन डॉलर के नेटवर्थ का इस्तेमाल करना पड़ सकता है जिसमें से लगभग आधा बिलियन डॉलर तो वह पहले ही स्वाहा कर चुके हैं. अब चुनाव के नतीजे तो किसी के भी पक्ष में बैठ सकते हैं. ट्रंप को अगर अपने पैसे पर इस दांव को खेलने की मजबूरी आई तो वह राष्ट्रपति बने न बने, कंगाल जरूर बन जाएंगे.
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