ट्रंप के जीतने बाद भी क्या आत्ममंथन नहीं करेगा मुस्लिम समुदाय ?
ट्रंप को भला-बुरा कहने और अमेरिकी जनमानस को मूर्ख बताने की बजाय मुस्लिम समुदाय इस बात पर आत्ममंथन करे कि उनको गाली देकर एक व्यक्ति अमेरिका जैसे शिक्षित देश का राष्ट्रपति कैसे बन जाता है ?
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अट्ठारह महीने पहले अमेरिकी राजनीति में आने वाले डोनाल्ड ट्रंप आज दुनिया के सर्वशक्तिमान राष्ट्र के प्रमुख बन चुके हैं. उनके सामने अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पत्नी और भूतपूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन थीं. हिलेरी के 229 मतों के मुकाबले ट्रंप को 273 मत मिले. ट्रंप के जीत के साथ ही अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी की सत्ता वापसी भी हुई है.
खैर, अमेरिका के एक बिज़नसमैन से लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति तक ट्रंप का ये सफर जितना चमत्कारिक है, उतना ही विवादास्पद भी है. मुसलमानों से लेकर महिलाओं तक ट्रंप के विचार बेहद विवादास्पद हैं. ये वही ट्रंप हैं, जिन्होंने महिलाओं के विषय में कहा था कि उन्हें देखते ही वे उनके स्तनों आदि पर झपट पड़ते हैं. अनेक मॉडल्स और पोर्न स्टार्स ने ट्रंप पर तमाम आरोप भी लगाए. मुस्लिम समुदाय के प्रति भी ट्रंप ने बेहद कठोर बयान दिए, जिसके लिए कई दफे उन्हीं की रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से भी उन्हें आलोचना झेलनी पड़ी. दुनिया भर में मुस्लिमों द्वारा ट्रंप का खुला विरोध किया गया, लेकिन इन सबके बावजूद अपने सामने मौजूद उदारवादी विचारों की समर्थक और अनुभवी नेत्री हिलेरी क्लिंटन को बड़े अंतर से हराकर ट्रंप वाइट हाउस में पहुंच गए.
मुस्लिम समुदाय के प्रति ट्रंप ने बेहद कठोर बयान दिए थे |
अमेरिकी जनता ने हर तरफ से दुत्कार सहने वाले ट्रंप को हिलेरी जैसी नेत्री के आगे तवज्जो दी. कहा जा रहा है कि अमेरिका ने गलती की है, लेकिन ऐसा कहने का आधार क्या है और क्या ये कहने का अधिकार किसी को क्यों है ? प्रगति के नए आयाम गढ़ने वाले महाशक्ति राष्ट्र की आवाम के चयन पर कोई प्रश्नचिन्ह खड़ा करने के लिए क्या किसी के पास कोई ठोस आधार है ? अमेरिका ने ट्रंप को चुना है, तो इसके पीछे उसकी अपनी वजहें हैं. उनमें से ही एक प्रमुख वजह मुस्लिम समुदाय के प्रति ट्रंप का आक्रामक रुख है.
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ट्रंप ने अपने प्रचार के दौरान विश्व के लिए बहुत बड़े संकट का रूप ले चुके आतंकवाद को आधार बनाते हुए खुलकर बिना किसी लाग-लपेट के मुस्लिमों को निशाने पर लिया. उन्होंने खुलकर इस्लामिक आतंकवाद की बात की और इस भ्रममूलक अवधारणा को अस्वीकार किया कि आतंकवाद किसी मजहब से नहीं जुड़ा. यह सही है कि 9/11 के बाद अमेरिका में सीधे-सीधे कोई आतंकी हमला नहीं झेलना पड़ा, मगर उसके बाद आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में जितने अमेरिकी सैनिक शहीद हुए हैं और जितनी अमेरिकी संपत्ति गई है, उनकी संख्या बहुत अधिक है. इस बात का आभास और किसी देश के नागरिक को नहीं हो सकता, इसे सिर्फ अमेरिकी लोग ही महसूस कर सकते हैं. अमेरिकी लोगों को आतंक के खिलाफ युद्ध में अपने देश की इस भारी क्षति का अनुमान होगा और वे यह भी समझते होंगे कि जिस आतंकवाद के खिलाफ लड़ते हुए उनके जवान मर रहे हैं, उसका सर्वाधिक हिस्सा इस्लामिक है.
उस समुदाय विशेष से जुड़े आतंकवाद के विरुद्ध अमेरिकी आवाम में ठहरे आक्रोश की अभिव्यक्ति भी आतकवाद के खिलाफ ढुलमुल रवैये वाली हिलेरी पर आक्रामक ट्रंप की जीत के रूप में हुई है. हिलेरी को उनके विदेश मंत्रित्व के दौर में देखा जा चुका है कि कैसे एक तरफ वे आतंक से लड़ने की बात करतीं और दूसरी तरफ आतंक के प्रायोजक पाकिस्तान को दुलारती भी रहतीं. आतंक के खिलाफ हिलेरी क्लिंटन का ये रीढ़विहीन रुख अमेरिका भूला नहीं होगा, इसलिए उसने लाख बुराइयों के बावजूद इस्लामिक आतंकवाद खिलाफ खुलकर ललकार भरने वाले ट्रंप को चुना.
इसलिए ट्रंप का चुना जाना अमेरिकी मतदाताओं की भूल है या नहीं, ये चर्चा का विषय नहीं होना चाहिए, क्योंकि अमेरिका अपना नेता चुन चुका है. उसका सही-गलत वो भुगतेगा. दुनिया के लिए अब चर्चा का विषय ये होना चाहिए कि आखिर क्या कारण है कि मुसलमानों को भर-भर पेट बुरा कहके एक विवादास्पद व्यक्ति अमेरिका का राष्ट्रपति बन गया ? उचित होगा कि ट्रंप को भला-बुरा कहने और अमेरिकी जनमानस को मूर्ख बताने की बजाय मुस्लिम समुदाय इस बात पर आत्ममंथन करे कि उनको गाली देकर एक व्यक्ति अमेरिका जैसे शिक्षित देश का राष्ट्रपति कैसे बन जाता है ? उनके प्रति दुनिया में इतनी नफरत क्यों पैदा हो रही है ?
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दरअसल मूल कारण आतंकवाद ही है, जो आज इस्लाम की बड़ी समस्या बन चुका है. लेकिन, उससे बड़ी समस्या ये है कि मुस्लिम समुदाय इस सच्चाई को दृढ़ता से स्वीकार नहीं रहा और इस यथार्थहीन अवधारणा को अपनाए है कि आतंकवाद का किसी मजहब से कोई सम्बन्ध नहीं है. उन्हें स्वीकारना होगा कि आतंकवाद उनके मजहब की समस्या है. जब वे इस समस्या को स्वीकारेंगे, समाधान तभी कर पाएंगे. जबतक वे इसे नजरंदाज करते रहेंगे तो उनके मजहब का दुनिया भर में ऐसे ही छीछालेदर होता रहेगा.
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