'4 लाख करोड़ के लोन' की देनदारी वाले प्रत्याशी को आखिर टिकट कैसे मिल गया?
लोकसभा चुनाव 2019 की तैयारियों के बीच भारतीय चुनाव आयोग की एक ऐसी गड़बड़ी सामने आई है जो इस संस्था के कामकाज पर सवाल खड़े कर सकती है.
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भारत में चुनाव आयोग को बेहद भरोसेमंद संस्था माना जाता है. चुनाव आयोग के फैसलों का सम्मान किया जाता है और अगर इस संस्था को कोई बुरा भला कहे तो दुख होता है. हाल ही में प्रकाश अंबेडकर इलेक्शन कमीशन को लेकर दिए गए अपने बयान के कारण विवादों के घेरे में आ गए हैं. प्रकाश अंबेडकर ने इलेक्शन कमीशन को ही जेल भेजने की बात कर दी है.
उनके बयान की कड़ी आलोचना हो रही है और उनके खिलाफ एफआईआर भी हो गई है. उन्होंने बयान दिया था कि, 'हमने अपने 40 जवान खो दिए (पुलवामा हमले में) लेकिन फिर भी चुप हैं. हमें कहा गया है कि पुलवामा हमले पर बात ना की जाए. चुनाव आयोग हमें चुप कैसे करा सकता है? हमारे संविधान में हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गई है. मैं भाजपाई नहीं हूं. अगर मैं सत्ता में आया तो चुनाव आयोग को दो दिन के लिए जेल भेजूंगा.’
तीन बार सांसद रह चुके ‘वंचित बहुजन आघाडी’ (वीबीए) के अध्यक्ष और डॉक्टर भीम राव अंबेडकर के पोते प्रकाश अंबेडकर से इस तरह की बातों की उम्मीद नहीं की जा सकती है. चुनाव आयोग के बारे में ये सुनने से यकीनन भारतीयों को बुरा लग सकता है, लेकिन हम जिस तरह की इज्जत चुनाव आयोग को देते हैं, क्या चुनाव आयोग काम भी उसी हिसाब का करता है?
हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने चुनाव आयोग के कामकाज पर सवाल खड़े कर दिए हैं. इस संस्था से गलती की उम्मीद नहीं की जा सकती, लेकिन चुनाव आयोग ने इस बार एक बहुत बड़ी गलती कर दी है.
4 लाख करोड़ का लोन लेने वाले कैंडिडेट को चुनाव लड़ने की अनुमति!
ये देखकर शायद कई लोग चौंक जाएं, लेकिन ये सच है. मौजूदा नियमों के अनुसार अगर कोई प्रत्याशी चुनाव लड़ना चाहता है तो उसे चुनाव आयोग के सामने लिखित तौर पर अपनी संपत्ति और लिए गए कर्ज का लेखाजोखा एक घोषणापत्र में देना होगा. ये एक आधिकारिक दस्तावेज के तौर पर रिकॉर्ड किया जाता है पर अभी तक ऐसा कोई भी कानून या नियम नहीं है कि चुनाव आयोग इसकी जांच करे. जो भी प्रत्याशी कहता है उसे चुनाव आयोग आंख बंद कर मान लेता है.
मोहनराज इस तरह का घोषणापत्र पहले भी चुनाव आयोग को दे चुके हैं.
चुनाव आयोग की इसी खामी को सामने लाने के लिए तमिलनाडु के एक प्रत्याशी ने ऐसा घोषणापत्र दिया जिसमें उसने अपनी संपत्ती 1.76 लाख करोड़ रुपए बताई है और साथ ही वर्ल्ड बैंक का 4 लाख करोड़ रुपए कर्ज भी बताया है. जेबामनी मोहनराज जो खुद को जेबामनी जनता पार्टी का एक प्रत्याशी बताते हैं उन्होंने पेरम्बुर असेंब्ली बायपोल के लिए अपना घोषणापत्र पेश किया है.
मोहनराज एंटी करप्शन मुहिम चलाते हैं और इस बार चुनाव आयोग में होने वाली गड़बड़ियों को लेकर खुलासा किया है. सबसे चौंकाने वाली बात ये थी कि चुनाव आयोग ने इस प्रत्याशी की बात मान ली और बिना किसी जांच के इसे हरी मिर्च का चुनाव चिन्ह भी दे दिया.
न सिर्फ 4 लाख करोड़ का लोन और 1.76 लाख की संपत्ती, चुनाव आयोग ने तो ये भी नहीं देखा कि आखिरी बार इस संपत्ती के साथ टैक्स रिटर्न कब भरा गया था
मोहनराज का कहना है कि एफिडेविट में कोई भी प्रत्याशी कुछ भी घोषणा कर सकता है और चुनाव आयोग उसे जांचेगा भी नहीं.
1.76 लाख करोड़ ही क्यों?
अब एक सवाल इस आंकड़े से जुड़ा हुआ. अगर आपको लग रहा है कि 1.76 लाख करोड़ कोई जानी पहचानी रकम है तो मैं आपको बता दूं कि ये रकम 2G स्पेक्ट्रम घोटाले की रकम है. इतना ही अमूमन घाटा 2G स्कैम से हुआ था.
ये पहली बार नहीं है जब मोहनराज ने इस तरह का कोई घोषणापत्र इलेक्शन कमीशन को दिया है. 2009 लोकसभा इलेक्शन के दौरान मोहनलाल ने 1977 करोड़ की संपत्ती दिखाई थी. 2016 विधानसभा चुनावों के दौरान 1.76 लाख करोड़ की संपत्ती दिखाई थी और 1500 करोड़ की प्रॉपर्टी की घोषणा की थी.
पर बार-बार चुनाव आयोग को गलत साबित करके क्या होगा?
चुनाव आयोग को गलत साबित करना नहीं बल्कि मोहनराज का असली मकसद तो लोगों में जागरुकता पैदा करना है और उन्हें इस बात का अहसास करवाना है कि कैसे अमीर नेता सिस्टम में खामियों का फायदा उठाकर बिना अपनी संपत्ती की जानकारी दिए लोगों को और देश को ठगते हैं. मौजूदा समय में ऐसा कोई नियम नहीं है जिससे चुनाव आयोग प्रत्याशियों की गलती की जांच कर सके, लेकिन इसका प्रस्ताव चुनाव आयोग द्वारा जरूर दिया गया है. मामला जो भी हो पर इस तरह के मामले ने एक सवाल जरूर खड़ा कर दिया है कि देश की सबसे सराहनीय संस्थाओं में से एक में अगर इस तरह घांघली की जा सकती है तो क्या वाकई चुनावों की विश्वसनीयता है?
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