यदि उत्तरप्रदेश में आज ही चुनाव हो जाए तो...
उत्तर प्रदेश की राजनीति नई करवट लेने जा रही है. समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच सियासी गठबंधन होना लगभग तय है. इसकी घोषणा कभी भी हो सकती है.
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चुनाव आयोग ने अपने निर्णय में समाजवादी पार्टी की साइकिल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नाम कर दी है. हाल के पूरे पारिवारिक विवाद में अखिलेश विजय साबित हुए हैं. अब सही में लग रहा है कि समाजवादी पार्टी का अखिलेश युग शुरू हो गया है. अब साइकिल भी उनकी और पार्टी भी. सभी नेता अब अखिलेश के पीछे खड़े हैं. इन सब घटनाक्रम के बाद एक चीज तो साफ है कि वो अपनी छवि को मतदाताओं के सामने रखने में सफल हो पाए हैं कि वो पांच साल तक लाचार सीएम होने के विपक्ष के ताने झेलने वाले अखिलेश यादव नहीं रहे, बल्कि वो निर्णय ले सकते हैं वो भी ठोस निर्णय जिससे समाजवादी पार्टी आने वाले चुनाव में विजयी बन सके.
साइकिल भी अख्लेश की और पार्टी भी |
अखिलेश यादव को साइकिल सिंबल मिलने से पहले जो भी ओपिनियन पोल आये थे उसमे समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश जीतते हुए नहीं दिखाया गया था. इंडिया टुडे के ओपिनियन पोल ने तो समाजवादी पार्टी को मात्र 92-97 सीट जीतते हुए ही दिखाया है. जबकि बीजेपी को 206-216 सीट जीतकर विजयी होने का अनुमान लगाया गया है. अब सवाल ये है कि पिछले कुछ दिनों में जो घटनाक्रम हुए हैं इससे क्या नहीं लगता है कि चुनावी लहर धीरे-धीरे अखिलेश के पक्ष में होती जा रही है, और आने वाले चुनाव में वो बीजेपी को पटखनी देने में सफल साबित हो सकती है.
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अब जो स्थिति बनती जा रही है उससे लग रहा है कि आने वाले चुनाव में अखिलेश की सीधी टक्कर बीजेपी से ही है. बीजेपी ने पहले भी कहा है कि उसकी लड़ाई समाजवादी पार्टी से ही है. समाजवादी पार्टी के अंदरूनी उठापटक के बीच बीएसपी ने उत्तर प्रदेश में अपनी जगह बनाने की पूरी कोशिश की थी. लेकिन अब बदले हुए माहौल में उत्तर प्रदेश की लड़ाई एक बार फिर से समाजवादी पार्टी और बीजेपी के बीच होती जा रही है.
उत्तर प्रदेश की राजनीति नई करवट लेने जा रही है. समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच सियासी गठबंधन होना लगभग तय है. इसकी घोषणा कभी भी हो सकती है. अखिलेश यादव की तैयारी बिलकुल साफ है, कांग्रेस और आरएलडी के साथ गठबंधन करके उनका मुख्य मकसद यही है कि बीजेपी को प्रदेश में सत्ता बनाने से रोका जा सके. कुछ समीक्षक भी अब मानने लगे हैं कि पूरे प्रकरण में अखिलेश यादव की छवि एक मजबूत नेता के रूप में उभरकर सामने आई है. उन्हें मालूम है कि इस समय समाजवादी पार्टी अकेले दम पर विधान सभा चुनाव नहीं जीत सकती है और ऐसे में गठबंधन ही एकमात्र विकल्प है जिससे वोटों का बटवारा होने से रोका जा सके और 2014 लोकसभा चुनाव के जो नतीजे बीजेपी के पक्ष में गए थे वैसा बिलकुल न हो. गठबंधन के पक्षधर अखिलेश यादव ये जानते हैं कि यही एक तरीका है जिससे मुस्लिम-यादव मतदाता पूरी तरह उनके पक्ष में आ सकते हैं. जो मुस्लिम कुछ दिन पहले तक बसपा के तरफ झुक रहे थे वो अब समाजवादी पार्टी को अपना मत दे सकते हैं.
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अखिलेश यादव की नजर इस चुनाव में युवाओं पर है. पिछले 5 सालों में समाजवादी पार्टी को अखिलेश यादव ने आधुनिक लुक देने में कामयाबी हासिल की है. पार्टी को युवाओं से जोड़ने में भी वह काफी हद तक कामयाब रहे हैं. इस चुनाव में अखिलेश की नजर इन युवाओं पर ही है. वे अपने कार्यकाल की विकासवादी छवि को भुनाने में भी कोई कसर छोड़ना नहीं चाह रहे हैं. वे अपनी पार्टी में अपराधी ताकतों को भी कोई जगह देने के पक्ष में नहीं है.
समाजवादी दंगल से उभर कर अखिलेश यादव ने अब अपना पूरा जोर इस चुनाव में झोक दिया है. पूरे प्रकरण में अखिलेश यादव बिलकुल विजयी साबित हुए हैं. अब ऐसा लग रहा है कि ओपीनियन पोल के रिजल्ट के विपरीत नतीजे हमें देखने को मिल सकते हैं. समाजवादी पार्टी पूर्ण बहुमत नहीं ले पायी तो कम से कम सबसे ज्यादा सीटें लाने में कामयाबी जरूर हासिल करेगी.
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