केजरीवाल चाहें तो भी साझा विपक्ष में उनके लिए 'नो एंट्री' का बोर्ड लग चुका है
आम आदमी पार्टी (AAP) के संयोजक अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने दिल्ली और पंजाब में सरकार बनाने से इतर गोवा जैसे राज्यों में सीधे तौर पर कांग्रेस (Congress) को ही कमजोर किया है. तो, कांग्रेस शायद ही कभी चाहेगी कि केजरीवाल साझा विपक्ष (United Oppostion) के इस खेमे का हिस्सा हों. क्योंकि, आम आदमी पार्टी की राजनीति भाजपा (BJP) विरोध से ज्यादा कांग्रेस विरोध पर टिकी है.
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आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने गुजरात विधानसभा चुनाव में 'रेवड़ी कल्चर' की बाढ़ ला दी है. आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने तो गुजरात के लोगों को 30 हजार रुपये प्रति महीना की 'केजरीवाल की सौगात' भी गिना डाली है. वैसे, ये तमाम कवायदे गुजरात विधानसभा चुनाव के जरिये आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी बनाने के लिए की जा रही हैं. लेकिन, अगर आम आदमी पार्टी को किसी तरह राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल भी जाता है. तो, इतना तय है कि साझा विपक्ष के कैंप में उनके लिए 'नो एंट्री' का बोर्ड लग चुका है. ऐसा कहने की एक बड़ी वजह है.
दरअसल, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अरविंद केजरीवाल के रेवड़ी कल्चर पर सवाल खड़े कर दिए हैं. ये पहला ऐसा मौका है. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ साझा विपक्ष बनाने की कोशिश कर रहे नीतीश कुमार ने परोक्ष रूप से आम आदमी पार्टी पर निशाना साधा हो. एक कार्यक्रम के दौरान नीतीश कुमार ने कहा कि 'कुछ लोग फ्री वाली सियासत करते हैं. ये गलत है.' वैसे, भाजपा विरोधी सभी राजनीतिक दलों को एकसाथ लाने की मुहिम में जुटे नीतीश कुमार का अरविंद केजरीवाल पर ये सियासी हमला बहुत कुछ कहता है.
कांग्रेस को दरकिनार कर बनाए जाने वाले किसी भी तीसरे मोर्चे का चुनावों में भाजपा के सामने खड़े रह पाना नामुमकिन है.
अगर गुजरात विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी कोई कमाल नहीं कर पाती है. तो, शायद ही विपक्ष का कोई ऐसा दल होगा. जो भाजपा की जीत के लिए अरविंद केजरीवाल से ज्यादा किसी को दोषी ठहराएगा. मुस्लिम राजनीति करने वाले एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी सरीखे नेता ने तो केजरीवाल को आरएसएस का छोटा रिचार्ज तक घोषित कर दिया है. आसान शब्दों में कहें, तो गुजरात मे हार का ठीकरा अरविंद केजरीवाल पर फूटने से जनता में भी केजरीवाल के खिलाफ माहौल बनने की भरपूर संभावना है. क्योंकि, आम आदमी पार्टी की सियासत से फायदा भाजपा को ही हो रहा है.
इस बात में शायद ही कोई दो राय होगी कि कांग्रेस को दरकिनार कर बनाए जाने वाले किसी भी तीसरे मोर्चे का चुनावों में भाजपा के सामने खड़े रह पाना नामुमकिन है. और, अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली और पंजाब में सरकार बनाने से इतर गोवा जैसे राज्यों में सीधे तौर पर कांग्रेस को ही कमजोर किया है. तो, कांग्रेस शायद ही कभी चाहेगी कि अरविंद केजरीवाल साझा विपक्ष के इस खेमे का हिस्सा हों. क्योंकि, आम आदमी पार्टी की राजनीति भाजपा विरोध से ज्यादा कांग्रेस विरोध पर टिकी है.
वैसे, 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले आंकड़े भी अरविंद केजरीवाल के समर्थन में नजर नहीं आते हैं. भले ही दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार हो. लेकिन, इन दोनों ही राज्यों में अरविंद केजरीवाल के खाते में कोई भी लोकसभा सीट नहीं है. दिल्ली में तो आम आदमी पार्टी तीसरे पायदान पर कांग्रेस के बाद रहती है. वहीं, पंजाब की इकलौती लोकसभा सीट से भी उपचुनाव में हाथ धो बैठी है. वहीं, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड जैसे राज्यों में तो आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों के लिए जमानत तक बचाना मुश्किल होता है.
खैर, अरविंद केजरीवाल पहले से ही 'एकला चलो' की नीति पर आगे बढ़ने का ऐलान कर चुके हैं. अरविंद केजरीवाल का कहना है कि वो भाजपा विरोधी किसी भी खेमे का हिस्सा नहीं होंगे. दरअसल, अरविंद केजरीवाल 2024 के लोकसभा चुनाव में खुद को पीएम नरेंद्र मोदी के विकल्प के तौर पर देख रहे हैं. और, गुजरात विधानसभा चुनाव में अगर केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को थोड़ी सी कामयाबी भी मिल जाती है. तो, वो आम आदमी पार्टी को सबसे बड़ा विपक्षी दल बताने से नहीं चूकेंगे. लेकिन, इसकी वजह से साझा विपक्ष में आम आदमी पार्टी की एंट्री मुश्किल हो जाएगी. वैसे भी हमारे यहां कहावत है कि 'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता.'
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