NEET Counselling: रेजिडेंट डॉक्टर्स की मांग क्यों जायज लगती है...
दिल्ली में रेजिडेंट डॉक्टरों द्वारा नीट-पीजी काउंसलिग जल्द कराने की मांग (Expedite NEET Counseling) को लेकर की जा रही हड़ताल फिलहाल खत्म हो गई है. लेकिन, 6 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में होने वाली सुनवाई के बाद क्या ऐसा फैसला आएगा कि हड़ताल फिर से नहीं होगी?
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दिल्ली में रेजिडेंट डॉक्टरों द्वारा नीट-पीजी काउंसलिग जल्द कराने की मांग (Expedite NEET Counseling demand) को लेकर की जा रही हड़ताल फिलहाल खत्म हो गई है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया की ओर से कहा गया है कि केंद्र सरकार अपनी रिपोर्ट 6 जनवरी से पहले सुप्रीम कोर्ट में सौंप देगी. मनसुख मांडविया ने उम्मीद जताई है कि जल्द ही काउंसलिंग प्रक्रिया शुरू हो जाएगी. कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन वेरिएंट के खतरे के बीच डॉक्टरों की हड़ताल खत्म होना एक राहत भरी खबर है. खैर, यहां सवाल उठना लाजिमी है कि कोरोना महामारी के दौरान जिन डॉक्टरों के ऊपर फूल बरसाए गए थे, जिन्हें कोरोना वॉरियर्स समेत न जानें कितनी उपमाओं से नवाजा गया था, उनकी मांगों को लेकर केंद्र सरकार क्यों बेखबर है? सवाल ये भी उठता है कि रेजिडेंट डॉक्टर्स की मांग कितनी जायज है? जबकि, नीट-पीजी काउंसलिंग का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन हैं.
अगर NEET PG 2021 की काउंसलिंग जल्द शुरू नहीं होती है, तो इसकी वजह से एक शैक्षणिक वर्ष बर्बाद हो जाएगा.
क्या मद्रास हाईकोर्ट के फैसले से लटकी काउंसलिंग?
केंद्र सरकार ने इसी साल 29 जुलाई को नीट परीक्षा में आरक्षण को लेकर घोषणा की थी कि अंडर ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट के सभी मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में ऑल इंडिया कोटा के तहत ओबीसी (OBC) के 27 फीसदी और ईडब्ल्यूएस (EWS) के 10 फीसदी छात्रों को आरक्षण मिलेगा. वहीं, मद्रास हाईकोर्ट ने इसी साल अगस्त में अपने एक आदेश में नीट (NEET) के ऑल इंडिया कोटा (AIQ) में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग यानी ईडब्ल्यूएस के 10 फीसदी आरक्षण पर रोक लगा दी थी. इस आदेश से इतर बड़ी बात ये भी है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के आरक्षण पर किए गए संविधान संशोधन पर पहले से ही सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ में सुनवाई चल रही है. दरअसल, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10 फीसदी आरक्षण के लागू होने के बाद से ही इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल कर दी गई थीं. जिस पर सुनवाई टलती जा रही थी.
तकनीकी रूप से देखा जाए, तो लगता है कि मद्रास हाईकोर्ट के आदेश की वजह से नीट काउंसलिंग पर रोक लगी है. लेकिन, मद्रास हाईकोर्ट ने भी इंदिरा साहनी के मामले को आधार बनाते हुए ही अपना आदेश पारित किया है, जो साफ कहता है कि किसी भी हाल में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नही हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट में नीट काउंसलिंग मामले की सुनवाई 6 जनवरी को होनी है. और, ईडब्ल्यूएस आरक्षण मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर उसका जवाब मांगा है. खैर, सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार का क्या जवाब रहेगा? इससे इतर ये महत्वपूर्ण है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने आश्वासन दिया है कि इस मामले पर सरकार की ओर से रिपोर्ट समय से पहले दाखिल कर दी जाएगी. अगर ऐसा होता है, तो सुप्रीम कोर्ट पर भी दबाव होगा कि इस मामले पर कोई फैसला दिया जाए या फिर मद्रास हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई जाए. क्योंकि, ऐसा नहीं हुआ, तो आने वाले समय में केवल डॉक्टर ही नहीं अन्य क्षेत्रों के छात्र भी हड़ताल जैसे तरीकों को अपनाएंगे.
क्या सुप्रीम कोर्ट में हो रही देरी?
नीट के ऑल इंडिया कोटा में ओबीसी को 27 फीसदी और ईडब्ल्यूएस छात्रों को 10 फीसदी आरक्षण प्रदान करने की केंद्र और चिकित्सा परामर्श समिति (एमसीसी) की अधिसूचना को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. इसकी सुनवाई के दौरान केंद्र ने पिछली सुनवाई में कहा था कि नीट-पीजी काउंसलिंग तब तक शुरू नहीं हो सकती, जब तक सुप्रीम कोर्ट की ओर से ओबीसी और ईडब्ल्यूएस के लिए आरक्षण की वैधता का फैसला नहीं लिया जाता है. अगर NEET PG 2021 की काउंसलिंग जल्द शुरू नहीं होती है, तो इसकी वजह से एक शैक्षणिक वर्ष बर्बाद हो जाएगा. वहीं, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बीवी नागरत्न की बेंच ने कहा था कि अगर कोर्ट के फैसले से पहले काउंसलिंग होती है, तो छात्रों को एक गंभीर समस्या होगी. खैर, ईडब्ल्यूएस आरक्षण की न्यायिक समीक्षा करने का सुप्रीम कोर्ट को पूरा अधिकार है. लेकिन, सवाल ये है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में तेजी से सुनवाई क्यों नहीं कर रहा है? अगर केंद्र सरकार की ओर से देरी की जा रही है, तो सुप्रीम कोर्ट के जज एक बार फिर से सरकार के खिलाफ 'ओपन प्रेस कॉन्फ्रेंस' क्यों नहीं कर रहे हैं?
नुकसान सिर्फ छात्रों और मरीजों का
आसान शब्दों में कहा जाए, तो न्यायिक प्रक्रिया में फंसे ईडब्ल्यूएस आरक्षण की वजह से नुकसान सिर्फ छात्रों और उन मरीजों का हो रहा है, जो हड़ताल की वजह से अस्पतालों में इलाज की राह ताक रहे हैं. देश में एक बार फिर से कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन वेरिएंट का खतरा मंडरा रहा है. इस स्थिति में आखिर ऐसे जरूरी मामलों को लटकाए जाने की जरूरत ही क्या है? केंद्र सरकार की ओर से संसद में पहले ही कहा जा चुका है कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण की पात्रता के लिए यूपीए सरकार के दौरान बनाए गए सिन्हो कमीशन की रिपोर्ट को आधार बनाया गया है. ईडब्ल्यूएस आरक्षण को लेकर जब स्थितियां इतनी हद तक साफ हैं, तो सुप्रीम कोर्ट की ओर से सीधे सिन्हो कमीशन की रिपोर्ट क्यों तलब नहीं की जा रही है?
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