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Updated: 28 मई, 2023 04:07 PM
अशोक भाटिया
अशोक भाटिया
 
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28 मई 2023 को देश के नए संसद भवन का उद्घाटन हो गया है. उद्घाटन से पहले ही ये नई इमारत विवादों में है. गोलबंदी हो रही है. 21 दल एक पाले में खड़े हैं और 25  दल दूसरे पाले में. दोनों तरफ से वार-पलटवार हो रहा है. जेडीयू के अध्यक्ष ललन सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि अगर उनकी सरकार आई तो नए संसद भवन में दूसरे काम होंगे. पुराने संसद भवन ही पहले के जैसे कामगाज के लिए उपयोग में लाया जाएगा. इन तमाम विवादों के बीच ये जानना बहुत जरूरी है कि आखिर नए संसद भवन की जरूरत क्यों पड़ी? 

लोकसभा सचिवालय द्वारा प्रकाशित 'पार्लियामेंट हाउस स्टेट' नाम का एक दस्तावेज बताता है कि आजादी के बाद जैसे-जैसे संसद की गतिविधियां बढ़ीं, अधिक जगह की जरूरत पड़ी.   इस जरूरत को पूरा करने के लिए संसद भवन एनेक्सी बनाया गया. 3 अगस्त, 1970 को तत्कालीन राष्ट्रपति वी वी गिरी ने इसकी आधारशिला रखी. और उद्घाटन हुआ 24 अक्टूबर 1975 को. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा. यानी शिलान्यास राष्ट्रपति ने किया और उद्घाटन प्रधानमंत्री ने.

इसी तरह पार्लियामेंट लाइब्रेरी की आधारशिला 15 अगस्त, 1987 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने रखी थी. भूमि पूजन तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष शिवराज वी पाटिल द्वारा 17 अप्रैल, 1994 को किया गया था. और इसका उद्घाटन मई 2002 में तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायणन ने किया था.

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अब बदलती ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 दिसंबर, 2020 को नए संसद भवन की आधारशिला रखी. जनवरी 2021 में बनना शुरू हुई और 28 महीने के रिकॉर्ड टाइम में नई इमारत बन कर तैयार है. ये तो एक कारण है, जो सरकार ने बताया. और भी कारण हैं, जो अधिकारियों के बकौल इधर-उधर छपी हैं.

राजनीति के जानकार इसे 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले की राजनीतिक गोलबंदी के तौर पर भी देख रहे हैं. विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की एक और कोशिश बता रहे हैं. कैसे?  दरअसल कांग्रेस समेत 21 विपक्षी दलों ने नई संसद भवन के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल न होने का फैसला किया है. पहले कांग्रेस पार्टी ने एक प्रेस रिलीज जारी कर कहा कि 19 दल इस कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे. इसमें कांग्रेस, डीएमके, आम आदमी पार्टी, शिवसेना (उद्धव गुट), समाजवादी पार्टी, भाकपा, झामुमो, जेडीयू, एनसीपी, राजद नेशनल कॉन्फ्रेंस समेत 19 दल शामिल थे.

इस प्रेस रिलीज में कहा गया था, ''नया संसद भवन महामारी के दौरान बड़े खर्चे पर बनाया गया है. जिसमें भारत के लोगों या सांसदों से कोई परामर्श नहीं किया गया. जिनके लिए स्पष्ट रूप से ये बनाया जा रहा है. राष्ट्रपति न केवल भारत में राज्य का प्रमुख होता है बल्कि संसद का अभिन्न अंग होता है. राष्ट्रपति के बिना संसद कार्य नहीं कर सकती. प्रधानमंत्री ने उनके बिना संसद भवन का उद्घाटन करने का निर्णय लिया है. यह अशोभनीय कृत्य राष्ट्रपति के उच्च पद का अपमान करता है और संविधान के पाठ और भावनाओं का उल्लंघन करता है. जब लोकतंत्र की आत्मा को संसद से निष्कासित कर दिया गया है तो हमें नई इमारत में कोई मूल्य नहीं दिखता. हम नए संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार करने के अपने सामूहिक निर्णय की घोषणा करते हैं.''

कांग्रेस के साथ आए 19 दलों के अलावा 2 और दलों एआईएमआईएम  और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट ने भी कार्यक्रम के बहिष्कार का फैसला किया है. यानी कुल 21 दलों ने कार्यक्रम के बहिष्कार का फैसला किया है. एक  खबर के मुताबिक जिन राजनीतिक दलों ने कार्यक्रम का बहिष्कार करने का फैसला किया है लोकसभा में उनकी कुल संख्या 147 है और राज्यसभा में 96. यानी लोकसभा में 26.97 प्रतिशत और राज्यसभा में 40.33 फीसद.

ये हो गए कार्यक्रम का बायकॉट करने वाले. अब चलते हैं लाइन के उस पार. जो जा रहे हैं उनकी संख्या क्या है और क्या तर्क है. पहले बात बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए की. बीजेपी ने प्रेस रिलीज जारी कर कहा था कि हम एन डी ए  से जुड़े दल, 19 विपक्षी दलों द्वारा नए संसद  भवन के उद्घाटन का विरोध करने के फैसले की घोर निंदा करते हैं. यह देश के लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक मान्यताओं पर हमला है. लोकतंत्र में संसद, एक पवित्र संस्था है. ऐसी महान संस्था के प्रति विपक्षी दलों का अनादर और अपमान, महज बौद्धिक दिवालियापन नहीं बल्कि लोकतंत्र की मूल आत्मा और मर्यादा पर कुठाराघात है.इसके अलावा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के प्रति इनका दिखाया गया अनादर राजनीतिक मर्यादा के निम्नतम स्तर पर पहुंच गया. उनकी उम्मीदवारी का विरोध न केवल उनका अपमान था बल्कि देश की अनुसूचित जातियों और जनजातियों का सीधा अपमान था."

बीजेपी की ओर से जारी इस प्रेस रिलीज में एन डी ए  के 14 दलों- बीजेपी, शिवसेना (शिंदे गुट), नेशनल पीपल्स पार्टी, नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी, सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा, जननायक जनता पार्टी, राषट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी, अपना दल सोनेलाल, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया, एआईएडीएमके, आईएमकेएम के, आजसू, मिजो नेशनल फ्रंट का नाम शामिल है.

एन डी ए दलों के अलावा  और कई  दलों ने कार्यक्रम में जाने का फैसला किया है. इसमें ओडिसा और आंध्र प्रदेश में सत्ताधारी बीजेडी और वाई एस आर  कांग्रेस शामिल हैं. यानी कुल 25  दलों ने कार्यक्रम में जाने का फैसला किया है. संसद में इनकी ताकत देखें तो लोकसभा में 366 और राज्यसभा में 120 सदस्य हैं. प्रतिशत के हिसाब से देखें तो इनकी संख्या लोकसभा में 67.15 प्रतिशत और राज्यसभा में 50. 42 प्रतिशत है.

लोकसभा चुनाव में अब एक साल से भी कम समय रह गया है. और इससे पहले विपक्ष की ये गोलबंदी क्या असर डालेगी यह तो बाद में मालूम पड़ेगा . हाल फ़िलहाल यह  मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है. एक जनहित याचिका दायर कर भारत के राष्ट्रपति द्वारा नई संसद के उद्घाटन कराने के लिए लोकसभा सचिवालय और भारत सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है. सुप्रीम कोर्ट के वकील सीआर जया सुकिन ने याचिका में कहा है कि उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति को शामिल न करके भारतीय संविधान का उल्लंघन किया गया है.

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लेखक

अशोक भाटिया अशोक भाटिया

अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक एवं टिप्पणीकार पत्रकारिता में वसई गौरव अवार्ड – 2023 से सम्मानित, वसई पूर्व - 401208 ( मुंबई ) फोन/ wats app 9221232130 E mail – vasairoad.yatrisangh@gmail।com

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