किसान आंदोलन से कांग्रेस को फायदा होगा, लेकिन मोदी सरकार को नुकसान नहीं
किसान आंदोलन (Farmer Protest ) लगातार बड़ा होता जा रहा है. पंजाब (Punjab), हरियाणा (Haryana) के बाद अब उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के किसान भी सड़कों पर हैं. कांग्रेस (Congress) सियासी फायदा चाहती है तो भाजपा (BJP) इस आंदोलन को जल्द से जल्द खत्म कर देना चाहती है.
-
Total Shares
संसद से पास होकर कानून का रूप लेने वाले नए कृषि सुधार विधेयक (Farm Bill 2020) को लेकर अबतक विरोध का सामना करना पड़ रहा है. पंजाब और हरियाणा (Punjab and Haryana) में इसके खिलाफ पुरजोर तरीके से किसान आंदोलन (Farmer Protest) कर रहे हैं. महीनों से रेलवे ट्रैक और सड़क जाम किए किसान अब दिल्ली को कूच कर गए हैं. यह आंदोलन इतना गहरा और बड़ा है कि पुलिस उन्हें किसी भी कीमत पर नहीं रोक पा रही है. सरकार और किसानों के बीच एक ज़बरदस्त टकराव की स्थिति पैदा हो गई है. केंद्र सरकार ने इसी साल 5 जून को तीन अध्यादेश जारी किए थे और किसानों की किस्मत बदल डालने का दावा किया.सबसे पहले इसी तीनों विधेयक के बारे में समझ लेते हैं. यह तीन विधेयक हैं
कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020
कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020
आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक-2020
कुछ यूं पुलिस का सामना कर रहे हैं पंजाब हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान
ये तीन बिल हैं जो संसद की दोनों सदनों से पास हुए हैं. इसी को लेकर किसानों के मन डर है. सरकार किसानों के मन के भय को खत्म नहीं कर पा रही है. किसानों का मानना है कि इस कानून के तहत मंडियां खत्म हो जाएंगी, फसल बोने से पहले ही कॅान्ट्रैक्ट करने से किसानों को नुकसान होगा फसल की अच्छी कीमत नहीं लग पाएगी, छोटे किसानों की हालत खस्ताहाल हो जाएगी, विवाद की स्थिति में बडे़ बड़े ठेकेदारों को फायदा होगा, बड़े बड़े व्यापारी फसल को स्टोरेज कर लेंगें जिससे बाजारों में कालाबाजारी बढ़ेगी और अनाज को तब मंहगें दामों पर बेचा जाएगा. ये सारे दावे हैं किसानों के जिनको लगता है इस नए कृषि कानून के तहत उन्हें नुकसान होगा.
सरकार का दावा है कि यह कानून किसानों के हित में सबसे बढ़िया कानून है. इससे किसानों को बड़ा फायदा होगा, न तो मंडिया खत्म होंगी न ही सरकारी प्लेटफार्म खत्म होंगें, इसमें किसान मंडी में भी अनाज बेच सकेगा और बाहर भी, फसल बोने से पहले कॅान्ट्रैक्ट करना है या नहीं किसान इसके लिए आजाद होंगें. किसान अपनी इच्छा के अनुसार फसल बेच सकेगा और 3 दिन में ही अपने फसल की कीमत भी पा जाएगा.
किसानों को व्यापारियों का चक्कर नहीं काटना पड़ेगा, किसानों की फसल में किसी का दखल नहीं होगा न ही बहुत ज़्यादा नियम और कानून का सामना करना पड़ेगा, किसान हर तरीके से अपने फसल का मालिक होगा.सरकार ने इस बिल को जब संसद में पेश किया तो इसका मुखर विरोध किया कांग्रेस पार्टी और अकाली दल ने. अकाली दल तो खुद सरकार का हिस्सा थी. कैबिनेट में अकाली दल की हिस्सेदारी थी. जैसे ही बिल पास हुआ तो अकाली दल की हरसिमरत कौर ने सरकार में इस्तिफा दे डाला और अकाली दल एनडीए के गठबंधन से अलग हो गया.
कांग्रेस पार्टी ने इस बिल को गलत तरीके से पास करने का आरोप सरकार पर लगाया लेकिन कांग्रेस पार्टी इस बिल के खिलाफ मुखर नहीं हो सकी. किसान आंदोलन को समर्थन देने वाली कांग्रेस पार्टी तो खुद अजीबोगरीब परिस्थिति में है. कांग्रेस पार्टी ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त अपने घोषणापत्र में ही ऐलान किया था कि वह सरकार में आए तो सरकारी मंडी में फसल बेचने की अनिवार्यता को खत्म कर देंगें.
अब कांग्रेस पार्टी मुखर होकर सामने नहीं आ पा रही है क्योंकि वर्ष 2011 में कांग्रेस पार्टी खुद ये कानून लाना चाहती थी. भारत में किसानों के आंदोलन का एक लंबा इतिहास रहा है. ब्रिटिश राज से ही यूनियन बने हुए हैं और तबसे ही मौके मौके पर बड़े बड़े आंदोलन भी होते आए हैं. किसानों के आंदोलन से कारोबार पर भी गहरा असर होता है. सड़क मार्ग से लेकर रेलवे ट्रैक तक जाम है इससे आयात निर्यात का काम भी बुरी तरह से प्रभावित है.
केंद्र सरकार का आरोप है कि किसानों को राज्य की कांग्रेस सरकार भड़का रही है, कांग्रेस पार्टी न सिर्फ बंद का समर्थन कर रही है बल्कि किसानों के आदोंलन को बड़ा बनाने का भरपूर प्रयास भी कर रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इस आंदोलन से निकलकर क्या आने वाला है.भारत के तमाम किसान आंदोलन पर अगर निगाह डाली जाए तो अधिकतर आंदोलनों में ऐसा ही हुआ है कि किसान संघर्ष तो करते हैं लेकिन चुनाव के वक्त उनका विरोध आंदोलन को भुला देता है.
हाल ही के वर्षों में आप मध्य प्रदेश के मंदसौर में हुए किसान आंदोलन का उदाहरण ले सकते हैं. बेहद उग्र आंदोलन हुआ, पुलिस की गोलीबारी में पांच किसानों की मौत हो गई हजारों ज़ख्मी हुए, लेकिन चुनाव में फिर सत्ता पक्ष के ही उम्मीदवार जीत कर आए जिनपर किसानों की अनदेखी का आरोप था. यानी किसान आंदोलन को सहारा बनाकर अगर विपक्ष अपनी चुनावी रोटी सेंकना चाहता है तो वह काफी हद तक मुमकिन नहीं है.
अब सवाल उठता है कि आखिर सरकार इतना बेरूखी क्यों दिखा रही है उसे क्या फायदा है और आंदोलन के बड़ा हो जाने से उसे क्या नुकसान हो सकता है, इसका जवाब लोग अपने अपने नज़रिए से सोच और समझ सकते हैं. सरकार किसी भी कीमत पर इस आंदोलन को बड़ा और उग्र नहीं होने देना चाहेगी क्योंकि 2014 के अन्ना हजारे आंदोलन के बाद ये पहला आंदोलन है जिसे देशभर से समर्थन मिल रहा है.
सरकार का पक्ष रखने वाले लोग भी किसान आंदोलन को गलत नहीं ठहरा पा रहे हैं. किसानों की तैयारी बड़ी है और सरकार इससे बखूबी वाकिफ भी है. किसानों को समझाने का भरसक प्रयास सरकार की ओर से लगातार किया जा रहा है. सरकार कानून को वापस लेने के मूड में तो कतई नहीं दिखाई दे रही है लेकिन किसानों का गुस्सा भी कम नहीं है. न किसान पीछे हटने को तैयार हैं न ही सरकार, यह आंदोलन अगर लंबा खिंचा तो सरकार को सीधे चुनौती भी दे सकता है.
पंजाब-हरियाणा के बाद अब उत्तर प्रदेश के किसान भी दिल्ली की राह में निकल पड़े हैं. सरकार इस आंदोलन को रोकने में अगर नाकाम हुई तो ये आंदोलन उसके लिए कांटे का काम करेगा जिसका पूरा फायदा विपक्ष सरकार को किसान विरोधी साबित करके उठाने की कोशिश करेगी.
ये भी पढ़ें -
दहेज किसका हुआ? वो कल रात मरी, एक घंटे बाद फिर मारी जाएगी!
Ozone परत को लेकर आई अच्छी खबर में सुराख हो गया है !
उद्धव ठाकरे के मोदी-शाह के खिलाफ अचानक तेज हुए तेवर किस बात का इशारा हैं?
आपकी राय