किसानों के चक्का जाम से पहले नेताओं के इन शर्तों पर हस्ताक्षर कराए जाने चाहिए!
अगर चक्का जाम (Kisan chakka jaam) में किसी की जान चली गई तो क्या उसकी जिम्मेदारी किसान नेता लेंगे. कहीं एंबुलेंस फंस गई या झड़प हो गई तो?
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किसानों को प्रदर्शन (Kisan Andolan) देखते ही देखते एक अलग ही मोड़ पर आ पहुंचा है. 26 जनवरी के दिन ट्रैक्टर रैली में जो कुछ भी हुआ उसके बाद लोग दो विचारधाराओं में बंटे दिख रहे हैं. किसानों की मांग, सरकार का पक्ष और विपक्ष की राजनीति सब ठीक है, लेकिन आम लोगों का क्या?
प्रमुख किसान नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) के आह्वान के बाद अलग-अलग राज्यों से बड़ी संख्या में किसान जुटने लगे हैं. वहीं किसान संगठनों ने 6 फरवरी को देशभर में चक्का जाम करने का ऐलान किया है.
अब चक्काजाम (Chkka Jaam) करना शांतिपूर्ण प्रदर्शन तो नहीं है. भले ही किसान सरकार को अपनी ताकत दिखाना चाहते हों लेकिन इसका ख़ामियाज़ा तो पब्लिक को भुगतना पड़ेगा. चक्काजाम करने की बात करना मतलब पब्लिक लाइफ को रोकना.
दरअसल, भारतीय किसान यूनियन (दोआबा) के अध्यक्ष मंजीत सिंह राय ने कहा कि 'हमने 6 फरवरी को चक्का जाम का ऐलान किया है. जिसके तहत दोपहर 12 बजे से लेकर 3 बजे तक चक्का जाम रहेगा. हम यह दिखाना चाहते हैं कि देश के किसान एक हैं और पूरा देश हमारे साथ है. सरकार भी हमारी ताकत देखेगी.' लेकिन चक्का जाम करने से जो इफेक्ट पब्लिक लाइफ पर होगी, क्या उसकी ज़िम्मेदारी सरकार की है, आपकी नहीं?
जब से लोगों ने चक्काजाम की खबर सुनी है उनकी टेंशन शायद बढ़ गई है. अब 26 जनवरी को वो हुआ जो किसी ने सोचा नहीं था, इसके बाद लोगों को डर है कि कहीं चक्का जाम में हिंसा न भड़क जाए. लोग दो दलों में बंट गए हैं और अपना गुस्सा भी सोशल मीडिया पर जाहिर कर चुके हैं. अक्सर इस तरह के प्रदर्शन में हिंसा फैलाने वाले हुड़दंगी भी शामिल होकर मौके का फायदा उठाते हैं. ऐसे में कहीं एक बार फिर दिल्ली साजिश का शिकार न हो जाए.
भले ही किसान नेताओं की कोशिश 26 जनवरी के दिन धूमिल हुई छवि को दोबारा मजबूत करने की हो लेकिन इन सवालों पर हस्ताक्षर तो बनता है. क्योंकि एक तरफ लंबे अरसे के बाद स्कूल खुल रहे हैं. बच्चों की परीक्षाएं हो रही हैं. जहां बच्चों की पढ़ाई के लिए माहौल बनाना चाहिए वहीं हिंसा, बवाल और चक्काजाम की ख़बरें आ रही हैं. देखिए ऐसी कौन सी शर्तें हो सकती हैं!
1- 26 जनवरी को ट्रैक्टर जाम में एक किसान की जान चली गई थी. अगर चक्का जाम में किसी की जान चली गई तो क्या उसकी जिम्मेदारी किसान नेता लेंगे. कहीं एंबुलेंस फंस गई या झड़प हो गई तो?
2- पूरे देश में चक्का जाम की वजह से अगर किसी के कारोबार में कोई नुकसान होता है तो उसकी भरपाई कौन करेगा.
3- कहीं कोई हिंसा हुई, तोड़-फोड़, आगजनी, सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान या किसी के साथ मार-पीट हुई तो इसकी ज़िम्मेदारी भी लेनी पड़ सकती है. जैसे 26 जनवरी को कई पुलिसकर्मी घायल हुए थे. वहीं आईटीओ के चौराहे पर पुलिस ड्यूटी में तैनात कई डीटीसी बसें तोड़ दी गई थीं.
4- देश के गौरव का सम्मान सभी की ज़िम्मेदारी है. चाहे वह किसान हो, जवान हो या एक आम नागरिक. जिस तरह 26 जनवरी को लालकिले पर धार्मिक झंडा फहराया गया क्या सही था? वह झंडा तिरंगा भी तो हो सकता था. हमारे देश में सभी धर्म और जाति के लोग आपस में मिलकर रहते हैं और यही हमारी पहचान है. इसलिए ऐसी कोई घटना न हो इसका आश्वासन मिलना चाहिए.
चक्काजाम के लिए सरकार की कितनी है तैयारी
किसानों की बढ़ती संख्या देखते हुए बॉर्डर पर पुलिस ने पहरा बढ़ा दिया है. किसान एकता मोर्चा के अनुसार, चक्का जाम में 41 किसान यूनियन शामिल हो सकते हैं. वहीं दिल्ली पुलिस ने गाजीपुर बॉर्डर और टिकरी बॉर्डर पर बैरिकेड्स लगा दिए हैं. जिसमें कंटीली तारें, बड़ी कीलें, गड्ढे, कॉन्क्रीट बैरिकेड्स और सीमेंटेड वाल्स लगाए गए हैं. दूसरी तरफ दिल्ली बॉर्डर पर पुलिस की चौकसी भी बढ़ती जा रही है.
राकेश टिकैट की संपत्ति पर एक नजर
दो बार चुनाव लड़ चुके किसानों के प्रमुख नेता राकेश टिकैत ने साल 2014 के लोकसभा चुनाव में अपनी संपत्ति का ब्योरा दिया था. जिसके अनुसार, वे करोड़ों की संपत्ति के मालिक हैं. 2014 शपथ के अनुसार, उनकी संपत्ति की कीमत 4,25,18,038 रुपए थी. उस समय उनके पास 10 लाख रुपए कैश भी थे. राकेश टिकैत के दिवंगत पिता महेंद्र सिंह टिकैत भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष थे. जिनसे टिकैट को किसान राजनीति विरासत में मिली है.
कितने सजग हैं?
अगर कहीं हिंसा हो जाए या किसी की जान चली जाए तो आखिर में यह कहने से क्या होगा कि, जो कुछ हुआ वह दुर्भाग्य पूर्ण है, हम उसकी निंदा करते हैं. क्या जिसकी मौत हो गई हो उसे वापस ला सकते हैं? तो फिर निंदा करने से क्या होता है?
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