ये शुभ है कि फारूक के बयान पर कोई हंगामा नहीं हुआ...
PoK को लेकर फारूक अब्दुल्ला का विवादास्पद बयान प्रमुख अखबारों के चौथे-पांचवे पेज की खबर बनी. किसी ने गंभीरता से नहीं लिया. लेकिन फिर भी ये तो तय है कि 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के दायरे से बाहर चले गए फारूक...
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सोशल मीडिया और चौबीसो घंटे घूम रहे कैमरों के बीच कहीं कोई 'असहिष्णु' बयान बिना स्कैन हुए बच कर निकल जाए तो इसे शुभ ही समझना चाहिए. मीडिया से बात करते हुए फारूक ने कश्मीर को लेकर विवादास्पद बयान दिया लेकिन कहीं कोई बड़ी प्रतिक्रिया नजर नहीं आई. यह संकेत अच्छा तो है लेकिन फारूक अपनी बात कहते-कहते कहीं न कहीं 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के दायरे से बाहर भी चले गए. किसी मुद्दे पर भारत के स्टैंड के लिहाज से यह बिल्कुल शुभ नहीं.
अभी कुछ दिनों पहले एक कार्यक्रम में आमिर खान ने जब कहा कि पिछले कुछ महीनों में भारत में माहौल बदला है और एक समय उनकी पत्नी किरण राव डरी हुई महसूस कर रही थी, तो जबर्दस्त हंगामा मचा. सोशल मीडिया से लेकर चौक-चौराहों पर लोग आमिर खान को कोसते नजर आए. लेकिन जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्लाह इस मामले में भाग्यशाली निकले.
क्या कहा फारूक अब्दुल्ला ने
नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ फारूक अब्दुल्ला ने कहा है कि PoK हमेशा पाकिस्तान का हिस्सा रहेगा जबकि जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा है. साथ ही फारूक ने यह भी कहा कि हम न जाने कितने वर्षों से यह कहते आ रहे हैं कि कश्मीर भारत का हिस्सा है लेकिन इसके अलावा हमने क्या किया. क्या हम पीओके को भारत में मिलाने में कामयाब रहे? यह लेख लिखे जाने के बीच फारूक का नया बयान मीडिया में आ चुका है जिसमें वह कहते हैं पूरी भारतीय सेना मिलकर भी आतंकियों और उग्रवादियों से लोगों को बचा नहीं सकती. इस नए बयान पर कैसी प्रतिक्रिया आती है, यह देखने वाली बात है. लेकिन फिलहाल बात PoK को पाकिस्तान का हिस्सा बताने वाले बयान की.
फारूक का बयान 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के दायरे से बाहर क्यों
भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर विवाद पुराना है. हालांकि यह भी सच है कि भारत ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) पर कभी बहुत एग्रेसिव स्टैंड नहीं लिया. लेकिन इसके बावजूद लगातार इस बात को दोहराया जाता रहा है कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है. यहां तक की देश की दोनों सदनों ने भी 22 फरवरी, 1994 को ध्वनिमत से पारित एक प्रस्ताव में पीओके पर अपना हक जताते हुए कहा था कि ये भारत का अटूट अंग है. पाकिस्तान को कश्मीर के उस भाग को छोड़ना होगा.
भारत का यह 20 साल पुराना संकल्प अब भी अधूरा है. कई सरकारें आईं और गईं लेकिन पीओके को लेकर क्या कोशिश हुई, इसे लेकर तस्वीर साफ नहीं है. फिर भी, फारूक को भारत की संसद की ओर से पारित प्रस्ताव का ख्याल तो रखना ही चाहिए था.
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