Farooq Abdullah: रिहाई जम्मू-कश्मीर में कितना फर्क लाएगी?
फारूक अब्दुल्ला (Farooq Abdullah) की 7 महीने बाद हुई रिहाई जम्मू-कश्मीर के जमीनी हालात में हुए सुधार का संकेत है. सूबे में पंचायत चुनाव की तैयारी और परिसीमन (Jammu-Kashmir Delimitation Process) के काम भी चल रहे हैं - ये रिहाई वैसी ही कोशिशों की कड़ी में से एक लगती है.
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फारूक अब्दुल्ला (Farooq Abdullah) की रिहाई जम्मू-कश्मीर के हालात के हिसाब से बड़ी महत्वपूर्ण घटना है. सूबे के सियासी हालात में सुधार की दिशा में ये रिहाई एक अहम कड़ी साबित होने जा रही है, ऐसा लगता है. हालांकि, फारूक अब्दुल्ला इसे अधूरा मानते हैं जब तक कि नजरबंद किये गये बाकी नेताओं को भी खुली हवा में सांस लेने का मौका नहीं मिल जाता.
जम्मू-कश्मीर में 5 मार्च से 8 चरणों में पंचायत चुनाव होने थे - और इसकी घोषणा जम्मू कश्मीर के मुख्य निर्वाचन अधिकारी शैलेंद्र कुमार ने ही की थी, लेकिन बाद सुरक्षा वजहों का हवाला देते हुए टाल दिये जाने की भी जानकारी दी. राज्य में सरपंचों के ही एक हजार से ज्यादा पद खाली हैं.
5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से जुड़ी धारा 370 खत्म किये जाने के बाद, हाल ही में परिसीमन आयोग (Poll Preparations and Delimitation Process) का भी गठन किया गया - और एक साल के भीतर इसे पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है.
नेशनल कांफ्रेंस नेता फारूक अब्दुल्ला ने कहा है कि वो अब दिल्ली पहुंच कर संसद की कार्यवाही में हिस्सा लेंगे - पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला श्रीनगर लोक सभा का प्रतिनिधित्व करते हैं.
फारूक की रिहाई कैसे और क्यों?
सिर्फ फारूक अब्दुल्ला ही नहीं, बल्कि उनके बेटे और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की भी रिहाई मांग लगातार हो रही थी. सुप्रीम कोर्ट में अपील के साथ साथ संसद में भी ये मामला उठा. गृह मंत्री अमित शाह ने लोक सभा में कहा था - मैं ये कहना चाहता हूं कि हम किसी को एक दिन भी जेल में रखना नहीं चाहते. नेताओं को नजरबंद किये जाने और उन पर PSA लगाये जाने का पूरा मामला राज्य प्रशासन पर डालते हुए, अमित शाह ने कहा था कि जब जम्मू-कश्मीर प्रशासन निर्णय करेगा नेताओं को रिहा कर दिया जाएगा.
बहरहाल, अब जबकि फारुक अब्दुल्ला को रिहा कर दिया गया है, देर-सबेर बाकी नेताओं की भी बारी आनी ही है. अनुच्छेद-370 हटते ही 5 अगस्त, 2019 को फारूक अब्दुल्ला को हाउस अरेस्ट किया गया था - और 15 सितंबर राज्य सरकार ने उन पर PSA पब्लिक सेफ्टी एक्ट लगा दिया था. तीन महीने के लिए लगे PSA की अवधि 15 दिसंबर को खत्म होती उससे दो दिन पहले ही 13 दिसंबर को फिर से तीन महीने के लिए बढ़ा दिया गया. 13 मार्च उसे फिर से नहीं बढ़ाने का फैसला हुआ और वो रिहा हो गये.
गृह मंत्री शाह के बयान आने के आस पास ही पूर्व रॉ प्रमुख एएस दुल्लत के फारूक अब्दुल्ला से मुलाकात की खबर भी आयी थी, लेकिन तब उसे शिष्टाचार मुलाकात बताया गया था. माना जा रहा है कि दुल्लत की 12 फरवरी को हुई मुलाकात के बाद ही फारूक अब्दुल्ला की रिहाई का रास्ता खुल सका. दुल्लत और अब्दुल्ला एक दूसरे को अरसे से जानते रहे हैं.
अपनी रिहाई को फारूक अब्दुल्ला ने अभी अधूरा बताया है क्योंकि इसे पूरा वो तब मानेंगे जब बाकी नजरबंद नेताओं की रिहाई हो जाये. नजरबंद नेताओं में पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के अलावा IAS अफसर रहे शाह फैसल भी शामिल हैं जिन पर PSA लगाया गया है. हाल ही में गृह राज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी ने बताया था कि जम्मू-कश्मीर में 451 लोगों को हिरासत में लिया गया है और उनमें 396 पर PSA के तहत केस दर्ज है.
फारूक अब्दुल्ला की रिहाई कैसे हुई ये तो मालूम हो गया - अब सवाल है कि ऐसा कैसे संभव हो पाया?
PSA हटाये जाने के बाद अपने घर की छत से मीडिया से मुखातिब फारूक अब्दुल्ला अपनी पत्नी और बेटी के साथ
ऐसा लगता है केंद्र सरकार भी कई मुद्दों को लेकर तरह तरह के दबाव से गुजर रही है. जम्मू-कश्मीर से धारा 377 खत्म किये जाने के बाद जिस तरीके से हड़बड़ी में लोगों के विरोध के बीच नागरिकता कानून (CAA) को लागू किया गया - और फिर देखते देखते ही दिल्ली में हालात बेकाबू हो गये - दंगों में 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो गयी. छह महीने से ऊपर हो जाने के बावजूद जम्मू कश्मीर में सामान्य जनजीवन सुनिश्चित नहीं हो पा रहे थे - फारूक अब्दुल्ला की रिहाई देश के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को मैसेज देने की कोशिश लगती है.
फारूक अब्दुल्ला की रिहाई का विपक्षी दलों के कई नेताओं ने स्वागत किया है और अब जम्मू-कश्मीर में हालात सुधरने की उम्मीद जतायी है. ऐसे नेताओं में कांग्रेस नेता शशि थरूर और CPM नेता सीताराम येचुरी शामिल हैं. पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी को उम्मीद है उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती भी जल्द ही रिहा होंगे. डीएमके नेता एमके स्टालिन ने भी रिहाई पर खुशी जतायी है.
I pray for the good health and long life of J&K’s former CM & veteran leader Farooq Abdullah Ji. Let the other two former CMs @OmarAbdullah & @MehboobaMufti be freed as well from the unjust PSA and be allowed to join the democratic process immediately.
— Mamata Banerjee (@MamataOfficial) March 13, 2020
The release of Dr Farooq Abdullah from detention is a welcome step.
Dr Abdullah's victory over this ordeal vindicates our belief in democracy & Constitution!
I urge the Govt to revoke detentions against other leaders including @OmarAbdullah & @MehboobaMufti immediately.
— M.K.Stalin (@mkstalin) March 14, 2020
हालांकि, कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम का पुराना सवाल अब भी बरकरार है - फारूक अब्दुल्ला को बगैर आरोप के सात महीने हिरासत में रखने का क्या औचित्य था? अगर औचित्य था तो रिहाई की क्या वजह है?
फारूक की रिहाई से क्या बदलेगा
फारुक अब्दुल्ला की रिहाई से पहले ऐसे कई वाकये देखने को मिले हैं जो आने वाले अच्छे दिनों की ओर साफ साफ इशारा कर रहे हैं - जम्मू-कश्मीर में मोबाइल सेवा बहाल किये जाने के साथ ही पंचायत चुनाव की तैयारी और हाल ही में शुरू हुआ परिसीमन का काम भी ऐसे ही संकेत दे रहे हैं.
1. अपनी पार्टी: जम्मू-कश्मीर में धारा 370 खत्म किये जाने के बाद एक नया राजनीति दल अस्तित्व में आया है - अपनी पार्टी. महबूबा मुफ्ती के सहयोगी रहे अल्ताफ बुखारी ने PDP और नेशनल कांफ्रेंस के असंतुष्ट नेताओं को लेकर ये नयी पार्टी बनायी है.
वैसे तो फारूक अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कांफ्रेंस और महबूबा की पीडीपी दोनों ही ने अपनी पार्टी को ही सिरे से खारिज कर दिया है. उनका कहना है कि ये राज्य के असली नुमाइंदों को हाशिये पर पहुंचाने के लिए केंद्र में सत्ताधारी दल की कवायद का हिस्सा है.
अपनी पार्टी नेता अल्ताफ बुखारी का एक बयान भी नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के बयान के पक्ष में जाता है. अल्ताफ बुखारी का कहना है कि वो लोगों को जनमत सर्वेक्षण और स्वायत्तता के नाम पर झूठे वादे नहीं करेंगे. अल्ताफ बुखारी के इस बयान से नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के इत्तेफाक रखने का सवाल ही पैदा नहीं होता क्योंकि उन दोनों की राजनीति की लाइन ही अलग है.
2. जम्मू-कश्मीर में परिसीमन: जम्मू-कश्मीर में नये सिरे से परिसीमन की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है और इससे विधानसभा में जम्मू क्षेत्र की सीटें बढ़ने के आसार हैं. केंद्र सरकार ने परिसीमन की प्रक्रिया को एक साल के भीतर पूरा करने की डेडलाइन तय की है. सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज जस्टिस रंजना देसाई को परिसीमन आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है.
सूत्रों के हवाले से आयी कुछ मीडिया रिपोर्ट में केंद्र की ओर से फारूक को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के लिए बने परिसीमन आयोग में सदस्य भी बनाया जा सकता है. ये भी ऐसी कोशिश लगती है कि लोगों में फारूक अब्दुल्ला के मुख्यधारा का नेता होने का संदेश जाये.
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनावी क्षेत्रों के पुनर्गठन की मांग बरसों पुरानी है. लोगों की शिकायत रही है कि राज्य की विधानसभा में जम्मू क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कश्मीर घाटी की तुलना में काफी कम है.
3. घाटी में मोबाइल सेवा: जम्मू-कश्मीर में धारा 370 खत्म किये जाने की संसद से मंजूरी मिलते ही प्रशासन ने एहतियातन मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को बंद कर दिया था - और अभी जनवरी में ही 2G सेवाएं बहाल की गयी हैं.
4G को लेकर भी 13 मार्च को कुछ मीडिया रिपोर्ट में बहाल किये जाने का दावा किया गया था. बताया गया कि कोरोना वायरस को लेकर पैदा हुए हालात के मद्देनजर ऐसा किया गया है, लेकिन सरकारी प्रवक्ता रोहित कंसल ने ट्वीट कर ऐसी खबरों को गलत बताया. बात दरअसल ये थी कि ये खबर भी रोहित कंसल के हवाले से ही परोसी जा रही थी.
Have seen certain reports in social media about internet being attributed to me. This is to clarify that No statement on this issue has been made. REPEAT : I have NOT spoken to ANYONE on this issue.
— Rohit Kansal (@kansalrohit69) March 13, 2020
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