फारूक अब्दुल्ला सोच लीजिये आपको किस तरफ जाना है ?
'समस्या ये है कि आप मुसलमानों को ये लगता है कि देश का प्रधानमंत्री आपसे पूछकर अगर काम नहीं करेगा तो वो बेवकूफ है. कश्मीर जैसे मसले आपके दिमाग की उपज ही हैं'.
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कुछ कहावत ऐसी होती हैं जिन्हें कुछ लोग अपने व्यवहार से सही बना देते हैं. फारूक अब्दुल्ला जी के व्यवहार से मुझे ये विश्वास होता कि हां, बुढापे में व्यक्ति अपना आपा कभी-कभी खो देता है. हालांकि ये जवानी में भी ऐसे ही विचार और व्यवहार रखते थे. ऐसे व्यक्तियों को कहा ही जाता है ‘एवरग्रीन’ जो कल भी ऐसे ही थे और आज भी ऐसे ही है.
‘हम कश्मीरी पंडितों से भीख नहीं मांगेंगे कि वो यहां आएं’:फारूक अब्दुल्ला |
अभी कुछ ही दिन पहले मेरे पास ‘कश्मीर’ अपने दिल की पीड़ा लेकर आया था, कहने लगा- मुझे आजतक ये समझ नहीं आया कि मैं क्या हूं? कोई मुझे देश कहता है, कोई मुझे पाकिस्तान कहता है, कोई कहता है कि मैं भारत का हिस्सा नहीं हूं. पर आजतक किसी ने ये नहीं कहा कि ‘मैं कश्मीर से प्यार करता हूं और कश्मीर को अपना मानता हूं’. जो लोग अपना कहते हैं उनकी ज़बान पर मसले ज्यादा होते हैं अपनापन कम.
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मैंने कश्मीर के कंधे पर हाथ रखकर कहा- सब ठीक हो जायेगा. ये दर्द इसीलिए समझ आता है क्योंकि कश्मीरी पंडितों का हाल भी कश्मीर से कम नहीं है. हुर्रियत ने पूरा प्रयास किया है कि हमारा वजूद वहां से मिट जाये पर इसे भी वो पूरी तरह से नहीं कर पाए. उन्हें ये लगता है कि कश्मीर उनको दहेज में मिला है और उसका प्रयोग वे जैसा करना चाहेंगे, वैसा ही करेंगे पर वो इतने लायक नहीं हैं.
मुझे याद है अपने एक मुस्लिम मित्र के घर में हम 5 से 6 दोस्त बैठे हुए थे तो उनके मुसलमान भैया ने मुझ से पूछा कि 'कश्मीर का मसला क्या है? क्या लगता है आपको ये कभी सुलझेगा?' मैंने हंसकर कहा- 'कोई मसला नहीं है'. बोलने लगे- 'इतनी खबरें आती हैं, आप ऐसे कैसे कह सकते हो कि कोई मसला नहीं है.' मैंने हंसकर कहा कि यही मसला है कश्मीर का, कहने लगे मैं समझा नहीं. मैंने फिर कहा 'यही है कश्मीर का मसला', फिर कहने लगे 'मैं समझा नहीं'. मैंने कहा 'कश्मीर का मसला, मसला सिर्फ आपके लिए हैं क्योंकि अगर यही प्रश्न मैं आप से पूछूंगी तो आप इसका जवाब नहीं दे पाएंगे, आपने अभी थोड़ी देर पहले मुझे ‘भैंस का दिमाग खाने का ऑफर दिया’ लेकिन जब मैंने आपको ‘सुअर का मीट’ खाने का ऑफर दिया तो आप बुरा मान गए, यही समस्या है कि आप मुसलमानों को ये लगता है कि देश का प्रधानमंत्री आपसे पूछकर अगर कार्य नहीं करेगा तो वो बेवकूफ है. ये मसले आपके दिमाग की उपज हैं और उसे आप जैसे लोगों ने जगाकर रखा हुआ है.'
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जब हुर्रियत को फारूक अब्दुल्ला का एकता का नारा मिलेगा तो वो तो आतंक फैलाएगा ही. मुझे याद है फारूक अब्दुल्ला ने पहले एक बार कहा था कि ‘हम कश्मीरी पंडितों से भीख नहीं मांगेंगे कि वो यहां आएं’. फारूक जी आपको तो खुद के बचाव के लिए हुर्रियत का नारा लगाना पड़ता है, तो आपसे अच्छा तो कश्मीरी पंडित है. जो हुर्रियत आतंकवादियों का स्वागत करता था वही हुर्रियत कल पर्यटकों का स्वागत कर रहा था, कितना समझाते हैं आप हुर्रियत को फिर ये हुर्रियत कमबख्त आपकी भी नहीं सुनता. अभी भी समय है फारूक जी आप जिस तरफ हैं उस तरफ रहना ठीक है या नहीं, फैसला ले लीजिये, देर नहीं हुई है.
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