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Updated: 05 मई, 2016 04:47 PM
सुजीत कुमार झा
सुजीत कुमार झा
  @suj.jha
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हाल तक एक दूसरे को कोसने वाले लालू प्रसाद यादव और बाबा रामदेव एक दूसरे के जबरा फैन कैसे बन गए. इसे समझने में थोडा टाईम लगेगा. फिर भी राजनीतिक गलियारों में अफवाहों का बाजार गर्म है. बाबा रामदेव योग दिवस का निमंत्रण देने लालू प्रसाद यादव के दिल्ली निवास पर गए थे. जब दोनों ने एक दूसरे की प्रशंसा की तो ऐसा लगा जैसे दो बिछडे दोस्त बड़े दिनों के बाद मिले हो. रिश्तों की इस गर्माहट के लिए महज आयुर्वेद प्रोडक्ट या योग आसन को जिम्मेदार ठहराया जाए तो यह नाकाफी होगा. बाबा और लालू की मुलाकात के राजनीतिक मायने भी हैं.

बिहार में गठबंधन की सरकार बनने के बाद लालू प्रसाद यादव ने जिस उत्साह के साथ सरकार के लिए काम करना शुरू किया था वो छह महीने पूरे होते-होते कम होने लगा हैं. इसके कारण कई हो सकते हैं. गठबंधन की सरकार बनी जहां आरजेडी सबसे बडी पार्टी है. विधानसभा में 80 सीट लेकर लालू प्रसाद यादव को उम्मीद थी कि वो जो चाहे वो फैसला सरकार से करा सकते है. शुरूआत में हुआ भी कुछ यूं ही. बेटे तेजस्वी को उप-मुख्यमंत्री पद के साथ निर्माण विभाग जैसा पोर्टफोलियो मिला और दूसरे बेटे को स्वास्थ्य और भवन निर्माण जैसे महत्वपूर्ण विभाग मिले. लालू प्रसाद यादव भी बड़े ठसक के साथ राजकाज में हिस्सा लेते रहें. लेकिन समय के साथ-साथ सरकारी कामकाज में लालू प्रसाद की अहमियत सिकुड़ती गई और इसकी उन्हें उम्मीद भी थी. खासकर बिहार में शराबबंदी लागू करने के फैसले ने साफ कर दिया कि राज्य में अब लालू के लोगों को नुकसान उठाना ही पडेगा.

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लालू और रामदेव की मुलाकात

वहीं 6 महीने पहले आए नतीजों के वक्त लालू का कद यकीनन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बड़ा था. इसीलिए लालू ने ऐलान भी कर दिया था कि वह बिहार के साथ-साथ अब राष्ट्रीय स्तर की राजनीति करेंगे. इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र से बिगुल बजाने का भी उन्होंने दावा किया था. बहरहाल, 6 महीना बीत जाने के बावजूद लालू प्रसाद यादव फिलहाल अपनी उस योजना को आगे नही बढा पाये. जिसका सबसे बडा कारण है चारा घोटाला. 6 मई को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई होनी है और लालू प्रसाद इस मुकदमें में पूरी तरह से बरी होना चाहते हैं.

ऐसे में बाबा रामदेव ही एकमात्र शख्स है जो लालू प्रसाद यादव की समस्याओं का निदान कर सकते है. बाबा के पास कई आसन और दवाईयां मौजूद है जो लालू प्रसाद के कष्ट पर रामबाण का काम कर सकता है. गौरतलब है कि शुरूआती जान पहचान में लालू प्रसाद बाबा के मुरीद थे. लेकिन जब बाबा ने कांग्रेस के खिलाफ बिगुल फूंका तो लालू प्रसाद को यह रास नहीं आया और उन्होंने हर मंच से बाबा की छीछालेदर करना शुरू कर दिया. फिर बाबा बीजेपी के बेहद करीबी हो गए और लालू को बाबा की कड़ी आलोचना करने की बड़ी वजह मिल गई. लालू प्रसाद अपनी हर सभा और प्रेस कंफ्रेंस में बाबा की आलोचना करते, खासकर कालेधन के मुद्दे पर. लेकिन अचानक नई दिल्ली में नई सुबह हुई और बाबा-लालू मिलाप ने पूरा समीकरण बदल दिया. नया समीकरण मौजूदा राजनीति पर भी बहुत कुछ कहता है.

बाबा की आलोचना करने वाले लालू प्रसाद यादव अब खुद कहते है कि वो बाबा रामदेव के ब्रांड ऐम्बेस्डर हैं. इससे ज्यादा और क्या हो सकता है. दोनो एक ही बिरादरी के है. दूध-दही की बात करते है. कई वर्षों तक खिंची कड़वाहट के बाद इस मुलाकात में अजीब सा अपनापन देखने को मिला. बाबा ने लालू के चेहरे पर क्रीम लगाई, तो लालू को होली याद आ गई. बाबा ने आयुर्वेदिक चाकलेट खिलाया को एनर्जी लालू को मसहसूस होने लगी. दरअसल बाबा की लालू से यह मुलाकात उन्हें ऐनर्जी देने के लिए ही हुई थी. अब ये एनर्जी शारिरिक और अध्यात्मिक होने के साथ-साथ राजनीतिक भी है.

राज्य में शराबबंदी का फरमान जारी करने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कद काफी उंचा हो गया है. जदयू के राष्ट्रीय स्तर की जिम्मेदारी भी उनके पास है. ऐसे में मौके की नजाकत को भांपते हुए नीतीश ने गैरसंघवाद का मुद्दा उछाल दिया है. अब लालू प्रसाद के लिए और क्या बचता है. हमेशा से बीजेपी और संघ के विरोध की राजनीति करने वाले लालू प्रसाद के पास नीतीश की हां में हां मिलाने के सिवाए कोई विकल्प नहीं था. बीते कुछ दिनों में बिहार सरकार ने कई महत्वपूर्ण फैसले लिए लेकिन उन फैसलों में लालू से राय नही ली गई. इसका भी मलाल लालू को है. वहीं शराबबंदी के मुद्दे पर भी लालू का मानना था कि राज्य में शराब पर धीरे-धीरे रोक लगाई जाए. लेकिन कैबिनेट ने उनके मत से उलट फैसला ले लिया और जनता के सामने लालू कुछ नहीं कह सके क्योंकि इस मुद्दे पर नीतीश कुमार को अपार जनसर्मथन मिल रहा है. और अब इसपर कुछ कहना राज्य में महिला वोटरों को नाराज कर सकता है.

लालू के दोनों बेटे बिहार में मंत्री है. संभवत पत्नी राबडी देवी और बेटी मीसा भारती इस बार राज्यसभा पहुंच जाएं. अब बाकी बचे खुद लालू. जब तक चारा घोटाले में वह पूरी तरह से बरी नहीं घोषित होते उन्हें उनकी राजनीतिक जमीन नही मिलेगी. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट से आने वाला फैसला लालू के राजनीतिक सफर के लिए बेहद अहम है. वहीं 2014 में मोदी को केन्द्र की सत्ता दिलाने में जिस तरह बिहार बीजेपी ने अहम भूमिका निभाई है उसे देखते हुए बीजेपी कभी नहीं चाहेगी कि वहां गैर-बीजेपी मुख्यमंत्री इतना ताकतवर बने. बीजेपी की चुनौती नीतीश को कमजोर करने की है जिससे वह आसानी से 2019 में मोदी के लिए दोबारा अपनी लहर चला सके. अब देखना यह है कि आयुर्वेद और योग के गुरु बाबा रामदेव के पास लालू प्रसाद की राजनीति के लिए क्या है. क्या वाकई बाबा की क्रीम का असर बिहार में लालू पर होगा?

लेखक

सुजीत कुमार झा सुजीत कुमार झा @suj.jha

लेखक आजतक में पत्रकार हैं

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