मोदी-केजरीवाल के रास्ते नीतीश को कामयाबी मिलने की गारंटी नहीं
बिहार में भी शराबबंदी लागू होगी, बशर्ते नीतीश कुमार दोबारा मुख्यमंत्री बने. लेकिन नीतीश कुमार का ये बयान बहुतों को हैरान करनेवाला है.
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बिहार में भी शराबबंदी लागू होगी, बशर्ते नीतीश कुमार दोबारा मुख्यमंत्री बने. लेकिन नीतीश कुमार का ये बयान बहुतों को हैरान करनेवाला है. क्योंकि अब तक नीतीश कुमार शराब कारोबार को बढ़ावा ही देते रहे हैं.
ऐसे तो न थे
शराब की बिक्री के मामले में नीतीश कुमार सबसे बड़े हिमायती माने जाते हैं. सूबे में शराब की बिक्री में उन्हें फायदा ही फायदा नजर आता रहा है.
साल 2012 की बात है. बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन की सभा में तो उन्होंने खुलेआम शराब का सपोर्ट किया था. तब नीतीश कुमार ने कहा था, "अगर आप पीना चाहते हैं तो पीजिए और टैक्स पे कीजिए. मुझे क्या? इससे फंड इकट्ठा होगा और उससे छात्राओं के लिए मुफ्त साइकल की स्कीम जारी रहेगी." उस वक्त नीतीश के इस बयान पर खासा विवाद हुआ था.
खास बात ये रही कि जब नीतीश ने ये बात कही उस वक्त ब्रिटेन के बियर कारोबारी करण बिलमोरिया भी वहां मौजूद रहे.
गांधी को भी नहीं बख्शा
पटना में आयोजित ग्लोबल मीट में नीतीश कुमार ने बिलमोरिया की तारीफ में खूब कसीदे पढ़े. बिलमोरिया ने भी नीतीश कुमार की तुलना पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्ग्रेट थैचर से की. लोगों को ताज्जुब तो तब हुआ जब बिलमोरिया ने महात्मा गांधी को लेकर अपमानजनक टिप्पणी की - और उसके बाद सत्तापक्ष कई दिनों तक लीपापोती करता रहा.
ग्लोबल मीट में बिल्मोरिया ने कहा था, "अगर महात्मा गांधी जिंदा होते तो मैं उन्हें भी रिफ्रेशमेंट के तौर पर कोबरा नॉन-अल्कोहलिक बियर पेश करता."
लोगों की हैरानी इस बात को लेकर भी थी कि बिल्मोरिया ने ये बयान मुख्यमंत्री की मौजूदगी में दी.
जब विपक्ष ने इसे महात्मा गांधी का अपमान बताया तो नीतीश के एक मंत्री श्याम रजक ने कहा, "विपक्ष को इस सम्मेलन में कोई अच्छाई नहीं, केवल बुराई ही नजर आ रही है. नीतीश के बचाव में रजक ने कहा कि बिलमोरिया के कहने का मतलब बियर में कम अल्कोहल की मात्रा बताने से था.
शराब माफिया की करतूत
बक्सर से बीजेपी सांसद अश्विनी चौबे जब नीतीश सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे तो एक बार उन्होंने कहा कि शराब पर पाबंदी तो वो भी चाहते हैं लेकिन खुद को इस मामले में असमर्थ पाते हैं.
जहरीली शराब से होने वाली मौतों की तो बात ही अलग है. अक्टूबर 2012 में मुजफ्फरपुर कलेक्ट्रेट के बाहर पूर्व मंत्री हिंद केसरी यादव अपने समर्थकों के साथ शराबबंदी लागू करने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. अचानक शराब माफिया के गुंडों ने उन पर हमला कर यादव की बुरी तरह पिटाई कर दी जिससे वो बेहोश हो गए.
विपक्ष और सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप रहा है कि नीतीश के समर्थकों में से कई ऐसे हैं जिनका शराब का कारोबार है. सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि ऐसे ही शराब कारोबारी अवैध शराब का भी धंधा करते हैं. जहरीली शराब से होने वाली मौतों के पीछे इन्हीं शराब कारोबारियों की मिलीभगत बताई जाती है.
अचानक यू टर्न क्यों?
नीतीश सरकार में शराब की बिक्री को बढ़ावा दिए जाने से सबसे ज्यादा नाराज राज्य की महिलाएं रही हैं. बुधवार को नीतीश कुमार एक कार्यशाला में हिस्सा ले रहे थे जहां कई महिलाएं शराब पर पाबंदी की मांग करने लगीं. इन महिलाओं का कहना रहा कि शराब की वजह से लोगों की मौत हो रही हैं.
ये सुनकर मुख्यमंत्री अपनी सीट से उठे और माइक पर जाकर एलान कर दिया कि अगली बार सत्ता में आने पर शराब पर पूरी तरह से रोक लगा दूंगा.
अब सवाल ये उठता है कि सत्ता में दोबारा वापसी पर ही क्यों? अभी क्यों नहीं? अभी न तो विधानसभा चुनाव की घोषणा हुई है, न ही आचार संहिता लागू है. फिर इंतजार किस बात का? वैसे इसके पीछे की मजबूरी तो नीतीश कुमार को भी ठीक से पता होगी.
सवाल ये भी है कि क्या ये मुख्यमंत्री की स्वत: स्फूर्त प्रतिक्रिया थी? या किसी खास रणनीति के तहत ऐसे मौके का इंतजार था?
कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव अभियान का हिस्सा रहे प्रशांत किशोर फिलहाल नीतीश कुमार के चुनाव कैंपेन की कमान संभाले हुए हैं. तो क्या सर्वे में पता चला कि शराब को लेकर महिलाओं की नाराजगी नीतीश को इस चुनाव में भारी पड़ सकती है?
या फिर ऐसा लगा कि प्रधानमंत्री मोदी कहीं गुजरात की तर्ज पर महात्मा गांधी की कर्मभूमि बिहार में भी शराबबंदी की घोषणा न कर दें? क्योंकि जो सरकार टैक्स के पैसे से बेटियों को साइकल देना जारी रखना चाहती है और वही टैक्स कमाने के लिए उनके घरवाले शराब पिलाती है, उसका अचानक हृदय परिवर्तन कैसे हो गया?
चुनाव प्रचार के हालिया तौर तरीकों पर नजर रखने वालों का मानना है कि नीतीश के चुनाव अभियान में मोदी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की कदम कदम पर छाप नजर आती है.
अपने '49 दिन के कार्यकाल' को लेकर 'भगोड़े' के ठप्पे से निजात पाने के लिए केजरीवाल ने दिल्ली के लोगों से सैकड़ों बार माफी मांगी थी - और चुनावों में उन्हें इसका फायदा भी मिला.
तो क्या नीतीश कुमार भी बिहार में शराब की बिक्री को बढ़ावा देने के लिए माफी मांगने जा रहे हैं? वैसे एक बात तो साफ है मोदी और केजरीवाल की राह नीतीश के लिए कामयाबी की गारंटी तो नहीं ही हो सकती है. ये बात नीतीश कुमार से बेहतर कौन समझ सकता है. आखिर, बिहार की राजनीति में नीतीश को चाणक्य यूं ही थोड़े कहा जाता है!
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