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Updated: 25 फरवरी, 2016 05:15 PM
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कभी संसद में बहस होती रही होगी! बाद में हंगामों के बीच बहस दब गई. अब बात शायद बहस और हंगामों से कहीं आगे बढ़ गई है - और ये ड्रामे में तब्दील होने लगी है.

जो अंदाज मॉनसून सत्र के आखिर में सुषमा स्वराज का दिखा, तकरीबन वही रवैया स्मृति ईरानी ने बजट सेशन की शुरुआत में अपनाया. आगाज अच्छा है.

दो सेशन, एक अंदाज

पूरे मॉनसून सत्र विपक्ष बीजेपी के तीन नेताओं - सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे सिंधिया और शिवराज सिंह चौहान के उनके पदों से इस्तीफे पर अड़ा रहा. खैर, एक दिन राजनाथ सिंह ने साफ भी कर दिया कि ये एनडीए सरकार है इसमें इस्तीफे नहीं होते.

सुषमा ने पहले तो अपने भाषण से पूरे सत्ता पक्ष को भाव विभोर कर दिया - फिर सारा ठीकरा ग्रहों के सिर फोड़ कर सारे आरोपों की आहुति दे डाली. निशाने पर ग्रह थे और जुबां पर गोस्वामी तुलसीदास, "हानि लाभ, जीवन मरण, यश अपयश, विधि हाथ... जरूर मेरा कोई अपयश का ग्रह चल रहा होगा, तभी मेरे वे साथी, जो मुझे स्नेह-सम्मान देते रहे हैं, आज मेरा इस्तीफा मांग रहे हैं."

तैयारी दोनों तरफ से थी. मायावती हमले के लिए तैयार थीं तो स्मृति ईरानी जवाबी हमले के लिए.

मायावती ने कहा, “मोदी सरकार में दलित छात्रों का उत्पीड़न हो रहा है, अंबेडकर को मानने वालों पर अत्याचार किया जा रहा है.” मायावती ने हैदराबाद यूनिवर्सिटी के मामले में दलित प्रोफेसर का मामला उठाया. रोहित वेमुला केस में मायावती ने वाइस चांसलर से लेकर मंत्रियों तक के इस्तीफे मांग डाले. ऐसा लगा जैसे स्मृति ईरानी पहले से इंतजार में बैठी हों, मौका मिलते ही टूट पड़ीं, "दलित प्रोफेसर का निर्णय आपने स्वीकार नहीं किया. मायावती जी आप यही कहना चाहती हैं कि कोई दलित तभी होगा जब मायावती जी सर्टिफिकेट देंगी."

बीएसपी सांसदों के हंगामे से बेफिक्र स्मृति बोलती जा रही थीं, "बच्चे का राजनीतिक टूल के तौर पर कौन इस्तेमाल करता है. राजनीतिक फायदे के लिए बच्चे का इस्तेमाल कौन करता है. न सिर्फ इस सदन में बल्कि पूरे देश में, आज सब ये जान लें."

इतने में स्मृति ईरानी का गुस्सा काफूर हुआ और वो पूरी तरह इमोशनल हो गईं.

स्मृति ने पैंतरा बदला, "मायावती जी, मैं आपसे प्रार्थना करती हूं, आप एक वरिष्ठ सदस्य होने के साथ और भी हैं. आप जवाब चाहती हैं, मैं देने के लिए तैयार हूं. अगर आप संतुष्ट नहीं हुईं तो मैं अपना सिर काट कर आपके पैरों में रख दूंगी."

मायावती ने चेहरे से कोई भाव जाहिर नहीं होने दिया. हां, ईरानी का गुस्सा जरूर दिखा.

जाति न पूछो...

जाति की बात करते हुए स्मृति ईरानी ने सबको चैलेंज किया, "मेरे ऊपर आरोप लगाया जा रहा है कि मैंने जाति के आधार पर भेदभाव करने की कोशिश की है. मेरा नाम स्मृति ईरानी है, मैं चुनौती देती हूँ, मेरी जाति क्या है कोई बता कर देखे."

ऐसा लगा इतने से काम नहीं चलने वाला. राजनीति में एक और हथियार कारगर माना जाता है. खुद को पीड़ित ठहराने की. ताजातरीन अरविंद केजरीवाल इसके बेहतरीन उदाहरण हैं. इन दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस हथियार का इस्तेमाल करने लगे हैं. वैसे ये हथियार इंदिरा गांधी भी अपने जमाने में इस्तेमाल करती रहीं, "मैं कहती हूं गरीबी हटाओ, वे कहते हैं इंदिरा हटाओ." इसके बाद वो फैसला जनता पर छोड़ देती थीं. फिर जनता ऐसे फैसले सुनाती कि वो अकेले ही सारे फैसले कर सकें. यहां तक कि इमरजेंसी जैसे फैसले भी.

स्मृति ईरानी ने भी विक्टिम-कार्ड खेला, "मैं अपने कर्तव्य का पालन कर रही थी और आज मुझे लोग सूली पर चढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. अमेठी का चुनाव लड़ने की आप सज़ा दे रहे हैं?"

लगे हाथ इंदिरा के बहाने राहुल गांधी को भी घेरा, "सत्ता तो इंदिरा गांधी ने भी खोई थी, लेकिन उनके बेटे ने भारत की बर्बादी के नारों का समर्थन नहीं किया था. किसी घटना स्थल पर राहुल गांधी दोबारा नहीं जाते, लेकिन इस मामले में राजनीतिक अवसरवादिता के चलते दो बार गए." वो इतने पर नहीं रुकीं, "राहुल अमेठी जाकर कहते हैं कि सभी वीसी आरएसएस के हैं. मैं कहना चाहती हूं कि किसी भी सेंट्रल यूनिवर्सिटी का वाइस चांसलर आकर यह कह दे कि मैंने भगवाकरण किया है, तो मैं राजनीति छोड़ दूंगी."

मॉनसून सत्र को याद कीजिए. सुषमा स्वराज ने कहा था, "यदि एक कैंसर पीडि़त महिला की मदद करना अपराध है तो मैं देश के समक्ष अपना गुनाह कबूल करती हूं, इसके लिए सदन मुझे जो सजा देना चाहे, मुझे स्वीकार है."

स्मृति ईरानी भी उसी राह पर चलती नजर आईं, "मुझसे जवाब मांगने वाले मुझसे दाखिला कराने को कहते हैं, मैंने कई बार सिफारिश पर दाखिले करवाए हैं."

मायावती को जवाब मिला हो या नहीं, ये तो वो ही जानें. हां, प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर स्मृति ईरानी के भाषण की तारीफ में लिखा, "सत्यमेव जयते!"

ठीक वैसे ही जैसे सुषमा स्वराज के भाषण के बाद लालकृष्ण आडवाणी ने उनकी पीठ थपथपाई थी.

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