सरकार बनाना नहीं, रूठी महबूबा को मनाने की मुश्किल
महबूबा के जख्म गहरे होते जा रहे हैं. उन्हें मोदी सरकार की ओर से मरहम का इंतजार है. लेकिन मरहम वो जो उन्हें मंजूर हो.
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जम्मू कश्मीर में सरकार बनने को लेकर सस्पेंस थम नहीं रहा. बल्कि, गहराता जा रहा है. दोनों पक्षों में से कोई भी किसी तरह की शर्त की बात नहीं कर रहा - न पीडीपी, न बीजेपी. फिर भी बात आगे नहीं बढ़ रही. ऐसा लगता है पीडीपी नया एजेंडा ऑफ अलाएंस तय करना चाहती है. अगर बात नहीं बनी तो क्या होगा? फिर से चुनाव?
न तो बीजेपी चाहती है न पीडीपी इस वक्त चाहेगी. हां, पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला जरूर ऐसी मांग कर चुके हैं. फिलहाल पीडीपी ने अपना रुख साफ करते हुए राज्यपाल से मोहलत मांग रखी है. इस बीच बीजेपी भी अपने प्लान-बी पर काम कर रही है.
रूठे रब को मनाना...
असल में, महबूबा मुफ्ती नाराज हैं. उनकी नाराजगी सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से है. ये नाराजगी किसी एक बात को लेकर नहीं बल्कि इसके पीछे सिलसिलेवार कई घटनाएं हैं.
पिछले साल नवंबर में प्रधानमंत्री मोदी श्रीनगर पहुंचे थे. मोदी ने जम्मू कश्मीर के लिए 80 हजार करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की - और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की मशहूर टिप्पणी ‘कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत’ को दोहराया. मोदी इसे कश्मीर के विकास का स्तम्भ बताते हुए इन तीन मंत्रों के अनुसरण की बात कही. लगे हाथ तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद पर भी कटाक्ष किया.
प्रधानमंत्री की यात्रा से पहले सईद ने कहा था कि वाजपेयी ने पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था और हमारे 10 साल शांति से बीते. अगर भारत को बढ़ना है तो बड़े भाई के रूप में उसे छोटे भाई (पाकिस्तान) की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाना होगा.
इस मामले में मोदी ने सख्ती दिखाई और साफ तौर पर कह दिया कि कश्मीर पर उन्हें दुनिया में किसी की सलाह या विश्लेषण की जरूरत नहीं है. ये बाद मुफ्ती को नागवार तो गुजरी लेकिन वो खामोश रहे. महबूबा मुफ्ती और पीडीपी नेताओं को ये बात बेहद नागवार गुजरी.
इस मसले पर पीडीपी के सीनियर लीडर तारिक हमीद कर्रा अपनी नाराजगी इस कदर बयां करते हैं, "मोदी सिकंदर की तरह काम कर रहे हैं और ताकत के जोर से दिल जीतना चाहते हैं."
एक अखबार से बातचीत में कर्रा इस बात को ऐसे पेश करते हैं, "वाजपेयी की नीति हाथ मिलाने की थी, लेकिन मोदी का रवैया हाथ मरोड़ने वाला है." महबूबा भी मोदी से खासी खफा हैं. उन्हें इस बात की तकलीफ है कि उनके पिता दिल्ली में ही एम्स में भर्ती थे और प्रधानमंत्री उन्हें देखने तक नहीं पहुंचे. मुफ्ती सईद के अंतिम संस्कार में भी किसी सीनियर नेता या मंत्री के पहुंचने की जगह सिर्फ रस्म अदायगी निभाई गई.
बीते दिनों आई खबरों में भी महबूबा या उनके साथियों की ओर से बताया गया कि किस तरह राहत पैकेज हासिल करने के लिए सईद को दर दर की ठोकरें खानी पड़ीं.
पीडीपी नेताओं से बातचीत में भी महबूबा ने एक वाकया सुनाया था. महबूबा ने कहा, "मेरे पिता जब आखिरी सांसे ले रहे थे और जब उन्होंने पूछा कि क्या रिलीफ पैकेज जारी किया गया, तो मैंने उनसे झूठ बोला और कहा कि हां, जारी हो गया है."
महबूबा के जख्म गहरे होते जा रहे हैं. उन्हें मोदी सरकार की ओर से मरहम का इंतजार है. लेकिन मरहम वो जो उन्हें मंजूर हो.
बीजेपी का प्लान 'बी'
वैसे तो बीजेपी नेता वेट एंड वॉच की पॉलिसी अपना रहे हैं. उनका कहना है कि बीजेपी की ओर से भी कोई शर्त नहीं है. पहले ये चर्चा हो रही थी कि बीजेपी बारी बारी दोनों पार्टियों के मुख्यमंत्री चाहती है, लेकिन अब ये बातें पीछे छूट चुकी हैं.
फिलहाल पीडीपी ने राज्यपाल के दो दिन के अल्टीमेटम पर औपचारिक रुख स्पष्ट करते हुए मोहलत मांग ली है. बैठकों और बातचीत के दौर जारी हैं. अगर मोहलत का पीरियड खत्म होने के बाद भी सरकार बनाने को लेकर राजी नहीं हुईं तो? ये सवाल भी गूंजने लगा है. सवाल के साथ साथ जवाब भी गूंजने लगा है.
अगर महबूबा नहीं मानीं तो बीजेपी अपने प्लान बी पर आगे बढ़ सकती है - ऐसी चर्चाओं का बाजार भी गर्म है.
87 सदस्यों वाली जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पीडीपी के खाते में 28 सीटें हैं जबकि बीजेपी के पास 25. साथ में बीजेपी को पीपल्स कांफ्रेंस के दो और एक निर्दलीय विधायक का समर्थन भी हासिल है.
बुधवार को बीबीसी से बात करते हुए
जम्मू-कश्मीर बीजेपी के प्रवक्ता अशोक कौल बीबीसी से कहते हैं कि उनकी पार्टी को पीडीपी के रुख का इंतजार है. कौल कहते हैं, अगर पीडीपी पीछे हटती है तो फिर बीजेपी दूसरे विकल्पों की तलाश करेगी.
कौल जिन विकल्पों की बात कर रहे हैं वे क्या हैं. कांग्रेस के साथ का तो सवाल ही नहीं पैदा होता. बचती है नैशनल कांफ्रेंस, तो एक बार इशारा कर फारूक अब्दुल्ला ऐसी संभावनाओं से इनकार भी कर चुके हैं.
फिर बहुमत के लिए संख्या कहां से जुटाई जाएगी. ऐसा लगता है कि बीजेपी इस मामले में भी बेफिक्र है, कौल बीबीसी से कहते हैं, "नंबर हासिल करना बड़ी बात नहीं है. जब सरकार बनाने की नौबत आएगी तो नंबरों का इंतजाम भी हो जाएगा."
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