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Updated: 07 मार्च, 2021 12:15 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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साल 2003 में प्रकाश झा के निर्देशन में एक फिल्म आई थी, 'गंगाजल'. उस वक्त बिहार राजनीति और अपराध के सियासी गठजोड़ पर आधारित इस फिल्म में एक सीन है, जिसमें एक अपराधी सुंदर यादव कोर्ट में सरेंडर करने वाला होता है. इस बात की जानकारी पुलिस को पहले हो जाती है. पुलिस टीम एसपी अमित कुमार (अजय देवगन) के नेतृत्व में कोर्ट कैंपस में मुस्तैद हो जाती है. पुलिसकर्मी अलग-अलग वेश में कोर्ट में मौजूद रहते हैं. कोई चायवाला बना, तो कई पानवाला, एसपी खुद मुंशी के वेश में होते हैं. तभी सुंदर यादव बुर्का पहने हुए कोर्ट में दाखिल होता है. इससे पहले की जज के सामने सरेंडर करता पुलिसवाले दबोच लेते हैं. ये तो फिल्मी सीन है, लेकिन शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के एक कोर्ट में इससे भी ज्यादा दिलचस्प घटना हुई है.

1_650_030621101316.jpgलखनऊ के चर्चित अजीत सिंह हत्याकांड में पुलिस को धनंजय सिंह की तलाश थी.

हुआ ये कि उत्तर प्रदेश के एक इनामी माफिया डॉन और पूर्व सांसद धनंजय सिंह ने फिल्मी अंदाज में कोर्ट में सरेंडर कर दिया. लखनऊ पुलिस ने धनंजय पर दो दिन पहले ही 25000 रुपये का इनाम घोषित किया था. इसके बाद पुलिस लगातार उनकी तलाश कर रही थी. इसी बीच शुक्रवार को पूर्वांचल के बाहुबली धनंजय सिंह गुपचुप वकील के वेश में प्रयागराज कोर्ट पहुंचे और जज के सामने सरेंडर कर दिया. यूपी पुलिस हाथ मलती रह गई. ये वही यूपी पुलिस है, जिसकी एसयूवी गाड़ी सड़क पर बेवजह पलट जाती है; और एक निहत्थे अपराधी का एनकाउंटर हो जाता है. इस पुलिस के नाम एनकाउंटर के कई रिकॉर्ड दर्ज हैं. योगी सरकार आने के बाद 6 हजार से ज्यादा एनकाउंटर कर चुकी है, जिनमें 113 अपराधी मारे जा चुके हैं.

वैसे धनंजय सिंह अपने इलाके में रॉबिन हुड के रूप में जाने जाते हैं. उनका फिल्मी अंदाज पहली बार नहीं दिखा है. इससे पहले साल 1998 में भी फिल्मी अंदाज में पुलिस को धोखा दे चुके हैं. वो भी ऐसा धोखा, जिसके बाद भी पुलिस को समझने में कई महीने लग गए थे. बात 17 अक्टूबर 1998 की है. पुलिस को मुखबिरों से सूचना मिली कि '50 हज़ार के इनामी वांटेड क्रिमिनल' धनंजय सिंह भदोही-मिर्ज़ापुर रोड पर स्थित एक पेट्रोल पंप पर डकैती डालने वाले हैं. सूचना मिलने के बाद पुलिस ने पेट्रोल पंप पर छापा मारा. इसके बाद एनकाउंटर में मारे गए 4 लोगों में एक को धनंजय सिंह बताकर उन्हें मृत घोषित कर दिया. लेकिन सच ये था कि धनंजय सिंह ज़िंदा थे. वहां से फरार हो चुके थे. कई महीनों तक अपनी मौत की ख़बर पर चुप बैठे रहे.

इस घटना के कुछ महीनों बाद साल 1999 में धनंजय सिंह जब पुलिस के सामने पेश हुए, तब जाकर भदोही फेक एनकाउंटर का राज खुला. उनके जिंदा सामने आने के तुरंत बाद इस मामले में मानवाधिकार आयोग की जांच बैठ गई. फेक एनकाउंटर में शामिल 34 पुलिसकर्मियों पर केस दर्ज किए गए. इस केस की सुनवाई भदोही की स्थानीय अदालत में अभी भी जारी है. पूर्वांचल से दो बार विधायक और एक बार सांसद चुने गए बाहुबली नेता धनंजय सिंह की जिंदगी किसी फिल्म की पटकथा की तरह है, जिसमें रोमांच, सस्पेंस, थ्रिलर और क्राइम, हर मसाला मौजूद है. धनंजय की तरफ से दाखिल एक हलफनामे में बताया गया था कि उनके खिलाफ कुल 38 केस दर्ज हैं. इसमें से 24 में बरी हो चुके हैं. उनके खिलाफ सिर्फ पांच मामले ही बचे हुए हैं.

अजीत सिंह हत्याकांड में क्यों थी तलाश?

वर्तमान में लखनऊ के चर्चित अजीत सिंह हत्याकांड में पुलिस को धनंजय सिंह की तलाश थी. 6 जनवरी को लखनऊ के विभूतिखंड क्षेत्र के कठौता चौराहे के पास अजीत सिंह की हत्या हो गई थी. इसमें बाहुबली पूर्व सांसद धनंजय सिंह का नाम सामने आया था. यह राजफाश हत्याकांड के मुख्य शूटर गिरधारी से पूछताछ के दौरान हुआ था. शूटर ने बताया कि कुंटू सिंह के कहने पर उसने हत्या की थी. शूटरों की व्यवस्था कराने में धनंजय सिंह ने मदद की थी. अजीत सिंह विधायक सीपू सिंह की हत्या में गवाही देने पर अड़े थे. इस केस के मुख्य गवाह थे. यही बात उनकी हत्या की वजह बनी. साल 2013 में आजमगढ़ जिले के जीयनपुर थाना क्षेत्र में पूर्व विधायक और बीएसपी नेता सर्वेश कुमार सिंह उर्फ सीपू की हत्या कर दी गई थी.

कौन है बाहुबली पूर्व सांसद धनंजय सिंह?

धनंजय सिंह उत्तर प्रदेश के जौनपुर के रहने वाले हैं. उनका जन्म बंसफा गांव में 20 अक्टूबर 1972 में हुआ था. छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय धनंजय ने साल 2002 में पहली बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में रारी विधानसभा से चुनाव जीता था. साल 2007 में जनता दल यूनाइटेड से फिर सपा के लाल बहादुर यादव को हराकर जीत दर्ज की थी. इसके बाद साल 2009 में बहुजन समाज पार्टी ने जौनपुर सदर से लोकसभा का उम्मीदवार बनाया. इस दौरान भी धनंजय सिंह ने भारी मतों से जीत हासिल की थी. साल 2009 में ही उन्होंने बसपा के बलबूते अपने पिता राजदेव सिंह को भी सदन पहुंचाया था. लेकिन मायावती से मनमुटाव के बाद उनको बसपा से बाहर कर दिया गया. इसके बाद जेल भेज दिया गया. जेल में रहते हुए उन्होंने अपनी पत्नी जागृति सिंह को मल्हनी विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड़ाया, लेकिन वो हार गईं. साल 2017 में खुद चुनाव लड़े. मोदी लहर में हार का सामना करना पड़ा.

सियासी जमीन पर बाहुबलियों की 'फसल'

बहुत पहले से ही राजनीति और अपराध एक-दूसरे के पर्याय बन चुके हैं. तभी तो चुनाव में बाहुबलियों और दबंगों की ओट में नेता वोट से अपनी झोली भरने की कोशिश करते हैं. जिसके पास जितना बड़ा बाहुबल होता, वो चुनाव में उतना ही सफल माना जाता है. वैसे यूपी और बिहार में तो बाहुबलियों का शुरू से ही बोलबाला रहा है. चाहे बिहार के शहाबुद्दीन और अनंत कुमार सिंह या फिर यूपी के मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह, इनके जुर्म की कहानियां पूरे देश में कुख्यात हैं. पूर्वांचल के गोरखपुर में बाहुबली हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही के गैंगवार की कहानी तो 80 के दशक में बीबीसी रेडियो पर प्रसारित की जाती थी. पूर्वांचल में चली गोलियों की आवाज ब्रिटेन तक सुनाई देती थी. हालांकि, नए दौर में राजनीति का अपराधीकरण थोड़ा कम हुआ है.

#धनंजय सिंह, #बाहुबली, #माफिया डॉन, Dhananjay Singh, BSP MP Surrenders, Wanted Criminal

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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