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Updated: 01 मार्च, 2021 02:58 PM
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कांग्रेस पार्टी में इन दिनों आंतरिक हालात सही नही हैं. जी-23 में शामिल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता लगातार पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर सवाल खड़े रहे हैं. हाल ही में राज्यसभा का कार्यकाल पूरा कर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद जम्मू कश्मीर की तीन दिवसीय यात्रा पर हैं. इस दौरान जम्मू में इन जी-23 नेताओं की एक रैली हुई. जिसमें एक बार फिर से इन नेताओं में से एक कपिल सिब्बल ने कमजोर हो रही कांग्रेस पर चिंता जताई. वैसे ये नेता लंबे वक्त से ऐसी चिंता जता रहे हैं, लेकिन पार्टी नेतृत्व ने इनकी चिंता को कोई खास तवज्जो नहीं दी है. आगे भी शायद ही दे, क्योंकि कांग्रेस में नेतृत्व पर सवाल उठाना अप्रैल 1998 में सोनिया गांधी के अध्यक्ष पद संभालने के बाद से बंद हो चुका है.

जी-23 नेता पैदा कर सकते हैं परेशानी

सोनिया गांधी का पुत्र मोह किसी से छुपा नहीं है. राहुल गांधी को अध्यक्ष पद की कुर्सी पर बैठाने के लिए वह लगातार प्रयत्न कर रही हैं. 2017 में राहुल गांधी अध्यक्ष बना भी दिए गए थे. लेकिन, 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी तरह हुई पराजय की वजह से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद से ही राहुल गांधी को लगातार मनाने के प्रयास किए जा रहे थे, जो अब सफल होते दिख रहे हैं. लेकिन, जी-23 नेताओं की नाराजगी परेशानी खड़ी कर सकती है. अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद राहुल गांधी ने कहा था कि इस बार अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर का होना चाहिए. इसके बावजूद पार्टी नेताओं को कार्यकारी अध्यक्ष पद के लिए सोनिया गांधी से अच्छा विकल्प कोई नहीं मिल सका था. वहीं, अब कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव आगामी समय में होने वाले 5 राज्यों के चुनाव के बाद तय किया गया है.

आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए जी-23 नेताओं को लेकर फिलहाल कांग्रेस नरम रुख अपना रही है.आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए जी-23 नेताओं को लेकर फिलहाल कांग्रेस नरम रुख अपना रही है.

राजनीतिक हाशिये पर जाने की तैयारी रखे जी-23

आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए जी-23 नेताओं को लेकर फिलहाल कांग्रेस नरम रुख अपना रही है. ऐसा कब तक रहेगा, इस पर संशय बरकरार है. क्योंकि, राहुल गांधी के मामले में कोई भी कांग्रेसी किसी तरह का खतरा मोल नहीं ले सकता है. 2017 में ऐसी ही एक कोशिश राहुल गांधी के करीबी रिश्तेदार शहजाद पूनावाला ने भी की थी. राहुल गांधी की अध्यक्ष पद पर ताजपोशी से पहले कांग्रेस युवा नेता शहजाद पूनावाला ने खुद भी चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी. कहा जा सकता है कि कांग्रेस में शीर्ष नेतृत्व को लेकर इतने बड़े स्तर पर पहली बगावत का श्रेय शहजाद पूनावाला को ही जाता है. खैर, अपनी इस बगावत के बाद शहजाद राजनीतिक हाशिये पर पहुंच गए. यहां तक कि उनके भाई और रॉबर्ट वाड्रा के बहनोई तहसीन पूनावाला ने भी उनसे राजनीतिक दूरी बना ली. कांग्रेस में सोनिया शासन में यह पहली बगावत आसानी से दबा दी गई थी.

राहुल गांधी का विरोध क्यों है नामुमकिन?

इस बगावत के दबने की पूरी गणित ही जी-23 नेताओं की उछलकूद के बेकार होने की कहानी कह रही है. जी-23 नेता कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से लेकर निचले स्तर तक एक व्यापक बदलाव की मांग कर रहे हैं. लेकिन, यह कहां तक संभव है, इस पर भी चर्चा होनी चाहिए. कांग्रेस में अध्यक्ष पद के चुनाव में नामांकन के लिए प्रदेश कांग्रेस कमेटी के 10 प्रतिनिधियों द्वारा नाम प्रस्तावित किया जाना आवश्यक है. किसी भी प्रदेश में ऐसा कोई कांग्रेस नेता नहीं है, जो गांधी परिवार के खिलाफ जा सके. इस स्थिति में किसी राज्य इकाई के ऐसे 10 नेताओं को जुटाना नामुमकिन ही लगता है.

वैसे भी कांग्रेस की सभी राज्य इकाईयों के प्रमुख से लेकर अन्य सदस्यों का चुनाव सोनिया गांधी के द्वारा ही किया जाता है. गांधी परिवार की ओर से जिम्मेदारी मिलने के बाद शायद ही कोई नेता अपने इस भारी-भरकम एहसान रुपी कर्ज से मुक्त हो पाएगा. मान भी लिया जाए कि जी-23 नेता थोड़ा-बहुत माहौल बना भी लेंगे, तो भी उन्हें राहुल गांधी से जीतने के लिए इन्ही इकाई सदस्यों के वोट भी चाहिए होंगे. इस स्थिति में कहना आसान है कि जी-23 केवल दबाव बना सकता है, कर कुछ नहीं सकता है. छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, पंजाब और राजस्थान की कांग्रेस कमेटियों ने पहले ही राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने के लिए प्रस्ताव दे दिया है. इस स्थिति में कहना गलत नहीं होगा कि 'हुइहै वही जो सोनिया रचि राखा.'

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