गुलाम अली जी..आप व्यर्थ ही दुखी हैं
गुलाम अली साहब, इससे पहले कि हम आपसे 'हंगामा क्यों है बरपा' की दास्तान सुनते, आपका कार्यक्रम हंगामे की भेंट चढ गया. अफसोस की बात है. विरोधियों को समझना होगा. कुछ चीजें राजनीति, डिप्लोमेसी और तू-तू...मैं-मैं से ऊपर रहें तो ही अच्छा है.
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गुलाम अली साहब, इससे पहले कि हम आपसे 'हंगामा क्यों है बरपा' की दास्तान सुनते, आपका कार्यक्रम हंगामे की भेंट चढ गया. अफसोस की बात है. इससे पहले पिच खोदने की घटना, पाकिस्तान के क्रिकेट खिलाड़ियों का बहिष्कार, पाकिस्तान के दूसरे फिल्म अभिनेता या अभिनेत्रियों का विरोध, दूसरे पाकिस्तानी गायकों का बहिष्कार सबकुछ हुआ. लेकिन कभी गुलाम अली के नाम पर इस कदर बवाल मचा हो...याद नहीं आता.
लगता था यह ऐसा शख्स है जिसे सुकून के पल में उद्धव ठाकरे भी सुनते होंगे और क्या पता शायद मोहन भागवत भी. शायद, यही कारण भी होगा कि उनके वाराणसी के संकट मोचन मंदिर के कार्यक्रम का विरोध नहीं होता. पांच-छह महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुलाम अली से दिल्ली में मिले..तो उन्होंने भी ट्वीट कर जाहिर किया कि वे भी उनके प्रशंसक हैं. लेकिन अब गूढ़ ज्ञान की बात पता चली है. जब राजनीति करो तो सब कुछ ताक पर रखना जरूरी होता है.
गुलाम अली, आप ने ठीक जवाब दिया उन विरोध करने वालों को कि आपको ठेस तो पहुंची है लेकिन आप गुस्से में नहीं हैं. आप भी जानते हैं कि केवल कुछ लोग हैं जो विरोध के बीच अपनी राजनीति चमका रहे हैं. सच्चाई यह है कि गुलाम अली को पूरा हिंदुस्तान सुनता है. जब रेडियो पर 'चुपके-चुपके रात दिन' बजता है वे विरोध करने वाले भी अपना कान रेडियो सेट के नजदीक सटा लेते हैं. यह सिलसिला पुराना है.
गुलाम अली ही क्यों... पाकिस्तान से आने वाले संगीत और गायकों की एक लंबी फेहरिस्त है जिसने हिंदुस्तानी दिलों पर राज किया है. बात केवल सूफी गीत या गजल तक सीमित नहीं है. हिंदुस्तान ने हसन जहांगीर का 'हवा-हवा' भी सुना है जिसकी डेढ़ करोड़ कॉपी भारत में बिकी. और हमने अली हैदर के 'पुरानी जींस' को भी प्यार किया है. राहत फतेह अली खां से लेकर अदनान सामी और आबिदा परवीन भी उतने ही लोकप्रिय हुए.
किसी खास विचारधारा को मानने वाले लोगों के इतना भर कह देने से कि पाकिस्तान के साथ हर प्रकार के सांस्कृतिक आदान-प्रदान को भी बंद होना चाहिए, स्वीकार नहीं किया जा सकता. संगीत, फिल्में, खेल यह टैलेंट और व्यवसाय से जुड़ी बातें हैं. इसमें राजनीतिक हस्ताक्षेप अगर आप करने की कोशिश करते भी हैं... तो कहीं न कहीं से यह अपना रास्ता खोज लेगा. बहते हुए पानी की तरह. विरोधियों को भी यह समझना होगा. कुछ चीजें राजनीति, डिप्लोमेसी और तू-तू...मैं-मैं की प्रक्रिया से ऊपर रहें तो ही अच्छा है.
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