श्रीलंका में LTTE को खत्म करने वाले राजपक्षे-ब्रदर्स का अगला टारगेट क्या है? जानिए...
पहले गोटबाया राजपक्षे (Gotabaya Rajapaksa) श्रीलंका (Sri Lanka) के राष्ट्रपति बने और अब उन्होंने अपने बड़े भाई महिंदा राजपक्षे (Mahinda Rajapaksa) को प्रधानमंत्री बना दिया. इसी जोड़ी ने एक समय में LTTE को खत्म किया था.
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हाल ही में श्रीलंका (Srilanka) में चुनाव (Election) हुए थे. 17 नवंबर को ये खबर सामने आई कि गोटबाया राजपक्षे (Gotabaya Rajapaksa) को राष्ट्रपति चुन लिया गया है. पीएम मोदी ने भी देर ना करते हुए उन्हें जीत का हार्दिक बधाई दी. गोटबाया को दुनिया बहुत पहले से जानती है. तब से, जब उन्होंने श्रीलंका में लिट्टे का सफाया किया था. जी हां, गोटबाया ही हैं, जिन्होंने रक्षा सचिव की हैसियत से लिट्टे के सफाए की रणनीति बनाई थी. उन्होंने श्रीलंका का एक वर्ग 'टर्मिनेटर' के नाम से भी पुकारता है. गोटबाया को इतनी ताकत देने में उनके बड़े भाई महिंदा राजपक्षे की भी अहम भूमिका थी, जो उस समय श्रीलंका के राष्ट्रपति हुआ करते थे. भाई-भाई होने के चलते दोनों के एक दूसरे का पूरा साथ मिला और उन्होंने श्रीलंका से LTTE (The Liberation Tigers of Tamil Eelam) यानी लिट्टे का सफाया कर दिया. अब ये खबर भी सामने आ गई है कि गोटबाया राजपक्षे ने अपने बड़े भाई महिंदा राजपक्षे (Mahinda Rajapaksa) को पीएम बना दिया है. महिंदा राजपक्षे ने तो प्रधानमंत्री पद की शपथ भी ले ली है. यानी, एक बार फिर, दो भाई एक साथ आ गए हैं. 2015 में जब ये साथ थे, तो श्रीलंका की तस्वीर बदल दी थी, इस बार देखना दिलचस्प होगा कि उनका ये साथ क्या कमाल करता है.
Congratulations @GotabayaR on your victory in the Presidential elections.I look forward to working closely with you for deepening the close and fraternal ties between our two countries and citizens, and for peace, prosperity as well as security in our region.
— Narendra Modi (@narendramodi) November 17, 2019
तब लिट्टे को धूल चटा दी थी, और अब...
नवंबर 2005 से लेकर जनवरी 2015 तक महिंदा राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति थे. उसी दौरान उनके छोटे भाई गोटबाया राजपक्षे रक्षा सचिव थे. बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में गोटबाया राजपक्षे ने बताया था कि उन्होंने कैसे लिट्टे जैसे उस समय के दुनिया के सबसे खतरनाक संगठन को हराया था. गोटबाया बताते हैं कि उनके भाई महिंदा राजपक्षे राष्ट्रपति थे, जिन्होंने लिट्टे के खात्मे के लिए कहा था. तब मंहिदा राजपक्षे ने कहा था कि तुम्हें जो भी मदद या हथियार चाहिए, वो लो, लेकिन लिट्टे को खत्म करो. इसके बाद गोटबाया राजपक्षे ने पहले भारत से हथियार की बात की, लेकिन भारत हथियार नहीं दे सका, जिसके बाद कुछ हथियार चीन से और कुछ पाकिस्तान से लेकर गोटबाया राजपक्षे ने लिट्टे जैसे आतंकी संगठन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. तब दोनों भाई पावर में थे तो लिट्टे को धूल चटाई थी, अब देखना दिलचस्प होगा कि इस बार किसकी बारी होगी.
पहले गोटबाया राजपक्षे राष्ट्रपति बने और अब उन्होंने अपने भाई महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री भी बनवा दिया है.
चीन का दोस्त और भारत का...
जब महिंदा राजपक्षे राष्ट्रपति थे तो उन्होंने कहा था कि भारत हमारा भाई है और चीन हमारा दोस्त. ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि श्रीलंका और भारत के बीच अच्छे संबंध रहेंगे. वैसे भी, पीएम मोदी गोटबाया राजपक्षे को राट्रपति बनने की बधाई के साथ-साथ विदेश मंत्री एस जयशंकर को श्रीलंका भेज चुके हैं. मोदी ने तो गोटबाया को भारत दौरे का न्योता तक दे दिया, जो उन्होंने स्वीकार कर लिया है और 29 नवंबर को वह भारत आएंगे. पीएम मोदी ने गोटबाया के राष्ट्रपति बनते ही तनिक भी देर ना करते हुए श्रीलंका से संबंधों को मजबूत करना शुरू कर दिया है, ताकि चीन उसका भारत के खिलाफ इस्तेमाल ना कर सके. गोटबाया तो अपने घोषणापत्र में भी कह चुके हैं कि वह भारत-चीन समेत सभी पड़ोसियों से अच्छे संबंध स्थापित करना चाहते हैं. दरअसल, श्रीलंका का झुकाव चीन की तरफ इसलिए है, क्योंकि उसने श्रीलंका को 8 अरब डॉलर का कर्ज दिया था. यानी ये कहना गलत नहीं होगा कि गोटबाया चीन समर्थक हैं, लेकिन ये कहना बिल्कुल गलत होगा कि वह भारत विरोधी हैं.
A warm meeting with Sri Lanka President @GotabayaR. Conveyed PM @narendramodi’s message of a partnership for shared peace, progress, prosperity & security. Confident that under his leadership, #IndiaSriLanka relations would reach greater heights. pic.twitter.com/pDxZf0ZM3A
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) November 19, 2019
ईस्टर रविवार के दिन हुए आतंकी हमला भूले नहीं हैं
21 अप्रैल 2019. ये वो तारीख है, जिस दिन नेशनल तौहीद जमात नाम के एक इस्लामिक संगठन ने सिलसिलेवार तरीके से आत्मघाती बम धमाके किए थे. इसमें 259 लोग मारे गए थे, जिनमें करीब 45 विदेशी नागरिक थे. 3 पुलिस अधिकारियों समेत 500 से भी अधिक लोग घायल थे. चुनाव से पहले गोटबाया ने खुद को ऐसे नेता के रूप में पेश किया, जिसने लिट्टे जैसे खतरनाक संगठन का खात्मा किया. यानी अगर इस्लामिक फंडामेंटलिज्म से भी कोई खतरा पैदा होने की आशंका होती है, तो वह उसे भी खत्म कर देंगे. और अभी ईस्टर के दिन हुए आतंकी हमले को श्रीलंका भूला नहीं है, जो एक इस्लामिक संगठन ने किया था. ऐसे में वहां की जनता को एक ऐसा नेता चाहिए था, जो इन आतंकियों से निपट सके. जिसने लिट्टे को धूल चटाई हो, उससे बेहतर विकल्प इस समय और क्या होगा?
तमिल और मुस्लिम समुदाय की चिंता बढ़ी
गोटबाया के राष्ट्रपति बन जाने से तमिल और मुस्लिम बिल्कुल खुश नहीं थे और अब उनके बड़े भाई महिंदा राजपक्षे प्रधानमंत्री बन गए हैं, जो उन्हें और भी दुखी करने वाली बात है. श्रीलंका में गृहयुद्ध के दौरान बहुत से तमिल मूल के लोग मारे गए थे और कई लापता हो गए थे. उन लोगों के परिजन आज भी गोटबाया पर युद्ध अपराध का आरोप लगाते हैं. दरअसल, एलटीटीई के खिलाफ जो लड़ाई हुई थी, उसे पूरा तमिल समुदाय अपने खिलाफ हुई लड़ाई मानता है. तमिल और मुस्लिम चाहते थे कि गोटबाया के प्रतिद्वंद्वी सजित प्रेमदासा जीतें, लेकिन ईस्टर रविवार को हुए बम धमाकों से डरे सिंघला समुदाय के लोगों ने एकजुट होकर गोटबाया को वोट दे दिया, क्योंकि वह ये समझते हैं कि राष्ट्रवाद की विचारधारा पर चलने वाले गोटबाया ही हैं जो देश को आतंकी हमलों से बचा सकते हैं और देश में पल रहे आतंकवाद की कमर तोड़ सकते हैं.
महिंदा राजपक्षे ने क्यों नहीं लड़ा राष्ट्रपति का चुनाव?
एक सवाल बहुत से लोगों के मन में होगा कि जब 2005-2015 तक महिंदा राजपक्षे राष्ट्रपति थे, तो इस बार भी उन्होंने ही चुनाव क्यों नहीं लड़ा? छोटे भाई को क्यों लड़ाया? पहली बात ये समझिए कि महिंदा राजपक्षे चाहकर भी चुनाव नहीं लड़ सकते थे क्योंकि श्रीलंका के संविधान के मुताबित कोई भी शख्स सिर्फ 2 बार ही राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ सकता है. संविधान में ये बदलाव मैत्रिपाला सिरीसेना ने किया था. हालांकि, जब महिंदा राजपक्षे ने एलटीटीई को हराया तो उन्होंने प्रावधान में फिर बदलाव कर के किसी भी व्यक्ति के कई बार चुनाव लड़ने का रास्ता साफ कर दिया, लेकिन जैसे ही सिरीसेना वापस सत्ता में आए, उन्होंने संविधान का ये प्रावधान फिर बदल दिया. यही वजह है कि महिंदा राजपक्षे ने अपने छोटे भाई गोटबाया राजपक्षे को चुनाव मैदान में उतारा. एक बार फिर दोनों भाई साथ-साथ सत्ता में हैं और पिछली बार से अधिक ताकत के साथ. देखना दिलचस्प होगा कि ये जोड़ी आतंकवाद से निपटने के लिए कौन-कौन से सख्त कदम उठाती है.
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