ऑक्सीजन की कमी से मौतें: आंकड़ों से खेलने में सरकारों को महारत हासिल है
असल में सवाल ये उठना चाहिए कि देश और राज्य की सरकारें इतनी संवेदनहीन कैसे हैं? यह सरकारों की संवेदनहीनता ही है कि ऑक्सीजन से हुई मौतों का आंकड़ा देते वक्त ये नहीं कहा गया कि सरकार के पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, जिससे ये स्पष्ट तौर पर पता लगाया जा सके कि अब तक इस वजह से कितनी मौतें हुई हैं.
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भारत में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन सिलेंडर लिए दर-दर भटकते लोगों की तस्वीरें शायद ही किसी की नजर में नही आई होगी. उस दौरान न्यूज चैनल हों या अखबार या सोशल मीडिया जैसे तमाम माध्यमों पर सांसों के लिए तड़प भरी गुहार लगाते लोग और उनके परिजनों के क्रंदन को भूलना किसी के लिए आसान नहीं होगा. अस्पतालों और घरों में कोरोना के मरीज एक-एक सांस के लिए तड़पते दिखे थे. ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहे हमारे देश की मदद के लिए दुनियाभर के देशों ने अपने हाथ बढ़ाए थे. ऑक्सीजन कंसंट्रेटर्स से लेकर सीधे ऑक्सीजन तक की सप्लाई के दृश्य टीवी चैनलों पर आम हो गए थे. ऑक्सीजन की कमी से मचे त्राहिमाम ने ऐसा भयानक मंजर बना दिया था, जिसे आने वाली नस्लें शायद ही नजरअंदाज कर पाएंगी. लेकिन, ऑक्सीजन की कमी से देश में कोई मौत नहीं हुई है. राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों द्वारा दिए गए आंकड़ों के आधार पर केंद्र सरकार ने ये बात कही है.
दरअसल, राज्यसभा में स्वास्थ्य राज्य मंत्री डॉ. भारती प्रवीण पवार ने कहा था कि राज्य और केंद्र शासित प्रदेश कोरोना के मामले और मौतों की जानकारी सरकार को नियमित तौर पर देते रहते हैं. लेकिन, किसी ने भी ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों को लेकर जानकारी नहीं दी है. वहीं, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडविया ने इस जवाब को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की रिपोर्ट के आधार पर बताते हुए कहा था कि सरकार को ऐसी कोई सूचना नहीं मिली कि कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत हुई है.
कोरोना की दूसरी लहर के दौरान श्मशान घाट से लेकर कब्रिस्तान तक में सैकड़ों की संख्या में रोजाना शवों की आमद हो रही थी.
ये एक ऐसा जवाब है, जिसकी उम्मीद हमेशा से ही इस देश का आम नागरिक सरकारों (केंद्र और राज्य सरकारें) से करता रहा है. वैसे तकनीकी आधार पर देखा जाए, तो केंद्र सरकार के जवाब में लेशमात्र भी असत्यता नजर नहीं आती है. केंद्र सरकार ने ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों को लेकर जो 'शून्य' आंकड़ा दिया है, वो आया तो राज्य सरकारों की ओर से ही है. अब तक जो भी मौते हुई हैं, उनमें से कितनों को राज्य सरकारों ने ऑक्सीजन की कमी से हुई मौत दर्शाया है. तो, इस पर अवाक होने की आवश्यकता नजर नहीं आती है. असल में सवाल ये उठना चाहिए कि देश और राज्य की सरकारें इतनी संवेदनहीन कैसे हैं? यह सरकारों की संवेदनहीनता ही है कि ऑक्सीजन से हुई मौतों का आंकड़ा देते वक्त ये नहीं कहा गया कि सरकार के पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, जिससे ये स्पष्ट तौर पर पता लगाया जा सके कि अब तक इस वजह से कितनी मौतें हुई हैं.
खैर, जो सरकारें कोरोना संक्रमित मरीजों और उनकी मौतों पर आंकड़ों की बाजीगरी दिखाती रही हों. उनसे ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों की संख्या जानने की उम्मीद रखना बेमानी लगता है. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान श्मशान घाट से लेकर कब्रिस्तान तक में सैकड़ों की संख्या में रोजाना शवों की आमद हो रही थी. इन जगहों को संभालने वाले लोगों का भी कहना था कि इससे पहले कभी भी इतने ज्यादा शव रोज नहीं आए हैं. लेकिन, सरकारी आंकड़ों में कोरोना संक्रमित मरीजों की मौत का आंकड़ा जिला स्तर पर 10-15 से ऊपर गया ही नहीं. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान कानपुर के जिन घाटों में विद्य़ुत शव दाह गृह थे, वहां की चिमनियां पिघलने तक की तस्वीरें सामने आई थीं. लेकिन, जब लोगों की कोरोना से मौत नहीं हुई, तो ऑक्सीजन की कमी से मौत होना दूर की कौड़ी है. बड़ी बात ये है कि ये हाल केवल कानपुर का ही नहीं रहा यूपी की राजधानी लखनऊ से लेकर राज्य के हर जिले में तकरीबन ऐसे ही हालात रहे.
हाल ही में अमेरिका के सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट ने एक रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में भारत में कोरोना की वजह से 34 से 49 लाख मौतें होने का अनुमान लगाया है. इस रिपोर्ट में कोरोना से हुई मौतों को देश के बंटवारे के बाद से हुई अब तक की सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी बताया गया है. इस रिपोर्ट को पेश करने वालों में से एक अरविंद सुब्रमण्यम भारत सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे हैं. पिछली तमाम रिपोर्टों की तरह इसे भी झुठला दिया जाएगा. वैसे, कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन और बेडों की कमी होने पर एक टर्म 'सिस्टम' बहुधा इस्तेमाल किया जाने लगा था. और, भारत में इस सिस्टम यानी सरकारों को सभी प्रकार के आंकड़ों से खेलने में महारत हासिल है.
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