तो अब क्या चर्चित पेगासस मुद्दे की वायर टूट जाएगी?
वायर टूटे ना टूटे परंतु एकबारगी लगा झटका तो लग ही गया है. सर्वोच्च न्यायालय का फिलहाल जो निर्णय आया है वह एक बार फिर पूर्णता लिए न होकर संतुलन भर है पक्षकारों के लिए. वन लाइनर ड्रॉ करें तो ' संदेह को बरकरार रखते हुए संदेह का लाभ सरकार को मिल गया है.
-
Total Shares
वायर टूटे ना टूटे परंतु एकबारगी लगा झटका तो लग ही गया है. सर्वोच्च न्यायालय का फिलहाल जो निर्णय आया है वह एक बार फिर पूर्णता लिए न होकर संतुलन भर है पक्षकारों के लिए. वन लाइनर ड्रॉ करें तो 'संदेह को बरकरार रखते हुए संदेह का लाभ सरकार को मिल गया है.' कहना सटीक है. दरअसल इजरायली सॉफ्टवेयर पेगासस के जरिए देश में करीब 1400 लोगों की जासूसी कराने का आरोप था इसमें ये दावा किया गया था कि 2019 में मोबाइल फोन या सिस्टम और लैपटॉप के माध्यम से सरकार ने करीब 1400 लोगों की जासूसी कराई थी. जिन लोगों की सरकार की ओर से जासूसी कराई गई थी, उनमें 40 बड़े पत्रकार, विपक्षी नेता, केंद्रीय मंत्री, सुरक्षा एजेंसियों के कई अधिकारी, उद्योगपति शामिल बताये गए थे. शुरू से ही केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए पेगासस के इस्तेमाल पर कोई भी ख़ुलासा करने से इंकार कर दिया था और यही लाइन सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित पूर्व जज जस्टिस आर रवींद्रन की अध्यक्षता वाली गणमान्य सदस्यों की कमेटी के समक्ष भी ली. अन्य गणमान्य सदस्य हैं आलोक जोशी (पूर्व आईपीएस अधिकारी) और डॉ. संदीप ओबेरॉय, अध्यक्ष, उप समिति जिसमें शामिल हैं डॉक्टर नवीन चौधरी( डीन ऑफ़ नेशनल फोरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी, गांधीनगर), डॉक्टर प्रभाहरण पी(प्रोफेसर अमरता विश्व विद्यापीठम, केरल) और आईआईटी, मुंबई के डॉक्टर अनिल गुमास्ते!
पेगासस मामले में कहा यही जा रहा है कि केंद्र सरकार सहयोग नहीं कर रही है
अदालत को सरकार का राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ लेना नहीं भाया था. परंतु शीर्ष न्यायालय केंद्र सरकार को बाध्य भी नहीं कर सकती थी सो माननीय पीठ ने सरकार के किसी स्वतंत्र कमेटी के गठन पर एतराज के बावजूद कमेटी का गठन कर दिया. निःसंदेह तकनीकी दृष्टिकोण से कमेटी में विशेषज्ञों का समावेश था और उसने शीर्ष अदालत को दी गई रिपोर्ट में तकनीकी रूप से कहा कि भारत सरकार ने इसमें मदद नहीं की है. अपेक्षा भी नहीं थी चूंकि सरकार स्टैंड ले चुकी थी. तकनीकी रूप से शायद सरकार का स्टैंड सही भी हो. फिर कैसे कोई विशेषाधिकार का हनन कर सकता है, कुछ केंद्र सरकार के हैं ठीक वैसे ही जैसे कुछ शीर्ष न्यायालय के होते हैं.
उनपर बात करेंगे तो फिर वही बात होगी कि 'बात निकलेगी तो दूर तलाक जायेगी. जो हुआ सो हुआ परंतु सवाल कई बड़े थे मसलन नागरिकों की सुरक्षा, भविष्य की कार्रवाई, जवाबदेही, निजता, सुरक्षा में सुधार आदि. और तदनुसार जैसा सर्वोच्च न्यायालय ने बताया है कि कमेटी की विस्तृत रिपोर्ट का एक भाग इन्हें बखूबी एड्रेस करता है अनुशंसाओं के साथ. वस्तुतः केंद्र सरकार की फांस पेगासस थी, दीगर मालवेयर नहीं ; जिनका होना तो आम हैं हर किसी के स्मार्ट फोन में , गैजेट में. और वो फाँस फिलहाल तो कमेटी ने निकाल दी है.
"We are concerned about technical committee 29 phones were given... in 5 phones some malware was found but the technical committee says it cannot be said to be Pegasus. They say it cannot be said to be Pegasus,' the bench remarked. सो एक स्वतंत्र और सक्षम समिति ने मोहर लगा दी कि "पेगासस" तो नहीं था ! जहां तक कहा जा रहा है केंद्र सरकार ने सहयोग नहीं किया तो यही कह सकते हैं विशेषाधिकार कब किसी का पसंद आया है! चुनौती सिर्फ टिप्पणी तक ही हो सकती है, उदाहरणों की कमी नहीं हैं सर्वोच्च न्यायालय के भी अनेकों मिल जाएंगे.
एक बात और, कमेटी ने भी आगाह किया है अपने प्रिंसिपल को कि रिपोर्ट गोपनीय है, पब्लिक डोमेन में ना रखी जाए! चूंकि कमेटी सुप्रीम कोर्ट के अधीनस्थ है, रिपोर्ट सार्वजनिक करे या ना करे विशेषाधिकार सुप्रीम कोर्ट का है ! मांग तो की जा रही है जिस पर अदालत ने कहा है कि वह विचार करेगी कि किस हद तक संशोधित रिपोर्ट पब्लिक डोमेन में डाली जा सकती है ! कहने का मतलब टेक्निकल पार्ट नाजुक है, इंकार नहीं हैं. और उसी टेक्निकल पार्ट में केंद्र सरकार से पेगासस को लेकर बार बार पूछा जाने वाला सवाल भी तो था !
हां, किस हद तक तब सूचना दी जानी चाहिए थी और किस हद तक अब रिपोर्ट सार्वजनिक की जानी चाहिए, स्पष्टता शीर्ष अदालत को देनी है और इसीलिए शायद अंतिम निर्णय के लिए समय लिया जा रहा है ! फिर लौट चलें वायर पर ! जिस अंदाज में न्यूज़ दी गई है, स्पष्ट है फ्यूज बन गया है सो वायर पर बिजली पुनः दौड़ने लगी है, 'पेगासस स्पायवेयर के ज़रिये देश के नेताओं, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं की जासूसी के आरोपों के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तकनीकी समिति ने कहा है कि वे निर्णायक तौर पर नहीं कह सकते कि डिवाइस में मिला मैलवेयर पेगासस है या नहीं.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट में जासूसी के आरोपों पर सुनवाई जारी रहेगी. दरअसल अंग्रेजी की समस्या यही है, अपनी अपनी सहूलियत से भाव निकाले जा सकते हैं, व्याख्या की जा सकती है ! फैक्ट ऑफ़ द मैटर तो यही है कि 29 फोनों में से पांच में मालवेयर पाया गया लेकिन वो पेगासस नहीं है जबकि एक अन्य हेड लाइन की बानगी देखिये, 'सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी ने 29 फोन में से 5 में मैलवेयर पाया, हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि यह पेगासस है या नहीं, कोर्ट ने कहा- केंद्र ने सहयोग नहीं किया."
दूसरी तरफ बार & बेंच से अंग्रेजी उठायें तो the Bench remarked "We are concerned about technical committee 29 phones were given... in 5 phones some malware was found but the technical committee says it cannot be said to be Pegasus. They say it cannot be said to be Pegasus.' और हिंदी की हेड लाइन यूं वायर हो गई, "पेगासस : समिति को पांच फोन में मिला मैलवेयर, सरकार ने जांच में सहयोग नहीं किया - सीजेआई रमना.' महाभारत का प्रसंग याद आ गया - 'अश्वत्थामा हतः इति नरो वा कुंजरो वा!'
आपकी राय