उद्धव ठाकरे सरकार गिरने के जितने जिम्मेदार राज्यपाल हैं, उतने ही सुप्रीम कोर्ट के जज भी!
उद्धव एकनाथ शिंदे विवाद में भले ही सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने सारा ठीकरा तत्कालीन गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी पर फोड़ दिया हो. लेकिन इसी सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने 29 जून 2022 को राज्यपाल के फ्लोर टेस्ट के आदेश को जायज ठहराते हुए स्टे देने से मना कर दिया था.
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महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे सरकार और उद्धव ठाकरे गुट के बीच चल रहे पॉलिटिकल क्राइसिस में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने बड़ा फैसला सुनाया है और ऐसी तमाम बातें की हैं जो भले ही सरकार न बन पाई हो लेकिन उद्धव को राहत देती हुईं नजर आ रही हैं. पांच जजों की संविधान पीठ ने सारा ठीकरा तत्कालीन गवर्नर भगत सिंह कोशियारी के सिर फोड़ा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्यपाल का फ्लोर टेस्ट का फ़ैसला गलत था, और अगर उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया होता, तो उन्हें राहत दी जा सकती थी. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि उद्धव सरकार को बहाल नहीं किया जा सकता, क्योंकि उन्होंने स्वेच्छा से इस्तीफा दिया था, और फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं किया था, इसलिए उनके इस्तीफे को रद्द नहीं कर सकते.
सवाल ये है कि तब अगर उद्धव की सरकार गिरी तो क्या इसके एकमात्र जिम्मेदार राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ही थे? जवाब है नहीं. मामले में दोषी सुप्रीम कोर्ट के जज भी हैं.
महाराष्ट्र पॉलिटिकल क्राइसिस में जो हुआ उसमें गवर्नर से ज्यादा जिम्मेदारी खुद सुप्रीम कोर्ट के जजों की रही
दरअसल जून 2022 को सुप्रीम कोर्ट के दो जजों जस्टिस सूर्यकांत और जेबी पारदीवाला ने उद्धव ठाकरे सरकार को बड़ा झटका दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी द्वारा 31 महीने पुरानी महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार को विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए फ्लोर टेस्ट लेने के निर्देश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसके बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अपना पद छोड़ दिया था.
जस्टिस सूर्यकांत और जेबी पारदीवाला की अवकाश पीठ ने मामले की सुनवाई में कहा था कि इस तरह के 'लोकतंत्र के मुद्दों' को हल करने के लिए सदन का पटल ही एकमात्र तरीका है. जजों ने कहा था कि शिवसेना विभिन्न आधारों पर फ्लोर टेस्ट टालेगी जिसपर ठाकरे खेमे ने अपने तर्क दिए थे और अपना बचाव करने की कोशिश की थी.
बताते चले कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने 30 जून को ही फ्लोर टेस्ट कराने का निर्देश तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को दिया था, जिसके बाद शिवसेना की तरफ से सुनील प्रभु ने कोश्यारी के इस निर्देश को चुनौती देने के लिए शीर्ष अदालत का रुख किया था.बता दें कि गवर्नर ने उद्धव सरकार को सदन में बहुमत साबित करने को कहा था.
सवाल ये है कि तब अगर दो जजों की पीठ ने मामला सुलझा दिया था तो आज कैसे पांच जजों की संविधान पीठ को सारी गलती तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी में लगी. तब कोशियारी खुद यही चाह रहे थे कि फ्लोर टेस्ट हो लेकिन अड़ंगा जस्टिस सूर्यकांत और जेबी पारदीवाला की पीठ ने लगाया. अगर तब सही रहता और बात मान ली गयी होती तो उद्धव की वैसी दुर्गति बिलकुल नहीं होती जैसी हुई.
विवाद पर आज 5 जजों की पीठ ने जो फैसला सुनाया है उसमें इस बात का भी जिक्र है कि पार्टी कलह में पड़ना गवर्नर का काम नहीं है. गवर्नर की जिम्मेदारी संविधान की सुरक्षा की भी होती है. मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि राज्यपाल के पास विधानसभा में फ्लोर टेस्ट बुलाने के लिए कोई पुख्ता आधार नहीं था. फ्लोर टेस्ट को किसी पार्टी के आंतरिक विवाद को सुलझाने के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते.
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि राज्यपाल के पास ऐसा कोई संचार नहीं था, जिससे यह संकेत मिले कि असंतुष्ट विधायक सरकार से समर्थन वापस लेना चाहते हैं. राज्यपाल ने शिवसेना के विधायकों के एक गुट के प्रस्ताव पर भरोसा करके यह निष्कर्ष निकाला कि उद्धव ठाकरे अधिकांश विधायकों का समर्थन खो चुके है.
हम फिर इस बात को कहेंगे कि यदि तब जस्टिस सूर्यकांत और जेबी पारदीवाला की अवकाश पीठ ने कयासों को विराम देते हुए उद्धव ठाकरे का पक्ष सुन लिया होता और फ्लोर टेस्ट पर रोक लगाने से इंकार न किया होता. तो आज नौबत वैसी नहीं होती जो मौजूदा वक़्त में उद्धव ठाकरे और उनके समर्थकों की है.
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