MCD Election जीतने से केजरीवाल ने जो कमाया, गुजरात-हिमाचल ने उसे धो दिया
मनीष सिसोदिया ने ऐलान किया था कि 2024 का लोकसभा चुनाव पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के बीच होगा. एमसीडी चुनाव के नतीजों ने AAP के इस दावे को मजबूती दी. लेकिन, गुजरात (Gujarat Election Result) और हिमाचल प्रदेश चुनाव नतीजों ने अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को उनका सही स्थान दिखा दिया.
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AAP election news: गुजरात में आम आदमी पार्टी को सिर्फ 19 सीटों पर 30 फीसदी से ज्यादा वोट मिल रहे हैं. 96 सीटों पर तो उन्हें 10 फीसदी वोट भी नहीं मिल रहे हैं. महज 5 सीटों पर वो आगे चल रहे हैं. हिमाचल में तो उनके हाथ कुछ नहीं लग रहा है.
खैर, पंजाब में मिली अप्रत्याशित जीत को बाद बहुत से राजनीतिक पंडितों ने आम आदमी पार्टी को भाजपा का सबसे बड़ा चैलेंजर घोषित कर दिया था. एमसीडी चुनाव के नतीजों में आम आदमी पार्टी ने कम अंतर से भाजपा को सत्ता से बेदखल किया. तो, इसे अरविंद केजरीवाल की 'बादशाहत' का नाम दिया गया. लेकिन, जैसे ही गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों के नतीजे आना शुरू हुए. आम आदमी पार्टी के सबसे बड़े चैलेंजर होने और पीएम नरेंद्र मोदी के सामने अरविंद केजरीवाल के विकल्प होने के तमाम दावे फुस्स हो गए. गुजरात विधानसभा चुनाव के शुरुआती रुझानों में केजरीवाल की AAP महज 5 सीटों पर आगे चल रही है. वहीं, हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी खाता खुलना तो दूर की बात है, प्रत्याशियों की जमानत तक जब्त होने के हालात बन गए हैं.
गुजरात में तो अरविंद केजरीवाल के पास खुला मैदान था. क्योंकि, कांग्रेस लड़ ही नहीं रही थी.
गुजरात में ये स्थिति तब बन रही है. जब अरविंद केजरीवाल ने गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर कई जगहों पर लिखित में दावा कर दिया था कि गुजरात में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने जा रही है. कई जगहों पर तो केजरीवाल ने सूत्रों के हवाले से आईबी की रिपोर्ट तक का हवाला देते हुए कहा था कि छोटे मार्जिन से ही सही लेकिन गुजरात में सरकार आम आदमी पार्टी की ही बनेगी. लेकिन, अरविंद केजरीवाल के लिखित में दिए गए वो तमाम दावे हवाहवाई साबित हुए. हिमाचल प्रदेश में तो पहले से ही कहा जाने लगा था कि आम आदमी पार्टी ने अपनी हार को महसूस कर लिया था. इसी वजह से अरविंद केजरीवाल ने वहां ज्यादा मेहनत नहीं की. और, पूरा जोर गुजरात विधानसभा चुनाव में झोंक दिया.
मान भी लिया जाए कि अरविंद केजरीवाल ने गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव जीतने के लिए ये सब पॉलिटिकल स्टंट किए थे. लेकिन, दिल्ली मॉडल के साथ फ्री बिजली-पानी, बेरोजगारों को भत्ता, महिलाओं को आर्थिक सहायता जैसी कई गारंटियों के बावजूद गुजरात और हिमाचल प्रदेश में आम आदमी पार्टी कोई चमत्कार करने में कामयाब क्यों नहीं हो पाई. जबकि, पंजाब के सीएम भगवंत मान ने एमसीडी चुनाव में जीत के बाद यही दावा किया था कि अब गुजरात और हिमाचल प्रदेश में भी चमत्कार होगा. चमत्कार की आस में बैठी आम आदमी पार्टी गुजरात में कांग्रेस के 'शांत' होने के बावजूद कोई कमाल नहीं कर सकी. जबकि, गुजरात में राहुल गांधी केवल एक दिन के दौरे पर गए थे. इसके बावजूद रुझानों में कांग्रेस आम आदमी पार्टी से कहीं आगे है.
गुजरात में अरविंद केजरीवाल के पास भाजपा के सामने खुला मैदान था. केजरीवाल ने गुजरात में हिंदू और हिंदुत्व की बात कर मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की. इतना ही नहीं, अरविंद केजरीवाल के साथ पंजाब के सीएम भगवंत मान समेत मनीष सिसोदिया, राघव चड्ढा जैसे नेताओं की फौज ने गुजरात विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. इशुदान गढ़वी को सीएम फेस बनाया गया. जो पत्रकार रहने के दौरान भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार को उजागर कर सुर्खियों में आए थे. वो भी भाजपा के सामने हारते नजर आ रहे हैं. लेकिन, इसके बावजूद गुजरात में चमत्कार छोड़िए, आम आदमी पार्टी दहाई के आंकड़े को भी छूने के लिए तरस गई. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर गुजरात और हिमाचल प्रदेश में AAP और केजरीवाल की भद्द क्यों पिटी?
इसका सीधा सा जवाब ये है कि अरविंद केजरीवाल गुजरात और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों को भी दिल्ली और पंजाब जैसा मान लेते हैं. आम आदमी पार्टी के संयोजक को लगता है कि दिल्ली में रेवड़ी कल्चर के जरिये और पंजाब में किसान आंदोलन का समर्थन कर सत्ता मिल सकती है. तो, गुजरात और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में हिंदुत्व के साथ दिल्ली मॉडल यानी फ्री बिजली-पानी के साथ अन्य रेवड़ियों की बात कर सत्ता मिल जाएगी. लेकिन, गुजरात और हिमाचल प्रदेश की जनता दिल्ली और पंजाब के जैसी नहीं कही जा सकती है. इन प्रदेशों की पारंपरिक सियासी लड़ाई में अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के लिए कोई जगह नहीं बनती है. क्योंकि, इन राज्यों के मतदाताओं को फ्री बिजली-पानी में कोई इंटरेस्ट नहीं है.
अगर अरविंद केजरीवाल का दिल्ली मॉडल और रेवड़ी कल्चर इतना ही शानदार होता. तो, इसी साल हुए उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों के चुनावों में भी आम आदमी पार्टी को जीत मिल जाती. लेकिन, ऐसा हुआ नहीं. क्योंकि, दिल्ली में झुग्गी-झोपड़ी और अवैध कॉलोनियों में रहने वालों के मजबूत वोट बेस के चलते केजरीवाल को चुनौती नहीं मिल पाती है. लेकिन, गुजरात और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में दिल्ली जैसी स्थितियां नहीं हैं. और, यहां पर अरविंद केजरीवाल का दिल्ली मॉडल और रेवड़ी कल्चर ढेर हो जाता है. आसान शब्दों में कहें, तो एमसीडी चुनाव जीत लेने या गुजरात में कांग्रेस के वोट काटकर खुद को राष्ट्रीय पार्टी घोषित कर लेने भर से अरविंद केजरीवाल को 'बादशाह' का खिताब नहीं मिल जाएगा. राहुल गांधी अभी भी उनसे कहीं ज्यादा आगे हैं. और, देश के हर राज्य में कांग्रेस की पकड़ अभी भी है. तो, पीएम नरेंद्र मोदी के सामने चैलेंजर बनने की सोच रहे केजरीवाल को अभी राहुल गांधी से ही पार पाने में बहुत समय लग जाएगा.
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