क्या वाकई गुरमेहर को नहीं पता था कि उसके पिता कैसे और कहां शहीद हुए ?
कारगिल युद्ध के नाम पर मेहर ने जो मुद्दा उठाया है वो खुद ही विवादित है. मेहर के पिता की मौत 6 अगस्त को आतंकी हमले में हुई थी, कारगिल युद्ध में नहीं. और ऐसे आतंकी कभी शांति के पक्षधर नहीं हो सकते.
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गुरमेहर कौर आज कोई अनजाना नाम नहीं हैं. सोशल मीडिया पर गुरमेहर की पोस्ट ने तहलका मचा दिया है. गुरमेहर ने लिखा था कि मेरे पापा को पाकिस्तान ने नहीं मारा, युद्ध ने मारा. मेहर का इतना कहना और लोग टूट पड़े. लोग कितने सही हैं या गलत ये तो नहीं पता पर कारगिल युद्ध के नाम पर मेहर ने जो मुद्दा उठाया है वो खुद ही विवादित है. मेहर के पिता की मौत कारगिल युद्ध खत्म होने के बाद 6 अगस्त को एक आतंकी हमले में हुई थी. और आतंकवादी कभी शांति के पक्षधर नहीं हो सकते.
गुरमेहर, युद्द मुद्दा है जवाब नहींमेहर के पापा कैप्टन मनदीप सिंह की मौत 1999 में जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रीय राइफल्स पर हुए आतंकवादी हमले में हुई थी. कैंप पर हुए इस हमले में 6 और सैनिकों ने अपनी जान गंवाई थी. कैप्टन मनदीप सिंह की रिपोर्ट के मुताबिक मेहर के पिता जम्मू-कश्मीर के आंतकवादी रोधी ऑपरेशन 'रक्षक' में पोस्टेड थे. कैप्टन सिंह 1991 में 49 आर्मी एयर डिफेंस रेजिमेंट में भर्ती हुए थे. 6 अगस्त 1999 को जब उनकी मौत हुई तो वो 4 राष्ट्रीय राइफल्स से जुड़े थे. उनकी बटालियन 7 सेक्टर राष्ट्रीय राइफल्स के अंतर्गत थी और इसे बाद में विक्टर फोर्स के कमांड में डाल दिया गया था.
गुरमेहर आपके पापा आतंकवाद का शिकार हुए थेकुपवाड़ा के चाक नुतनुसा गांव में आधी रात के वक्त आतंकी हमला हुआ था. हमले के समय कैप्टन मनदीप सिंह कंपनी के कमांडर थे. इस कंपनी पर 6 अगस्त 1999 की रात करीब 1.15 पर आतंकी हमला हुआ था. हमले में कैप्टन मनदीप सिंह बुरी तरह घायल हो गए थे. उनकी छाती आतंकियों के दागे गए छर्रों से छलनी हो गई थी जिससे मौके पर ही उनकी मौत हो गई थी. हमले में कैप्टन सिंह सहित 6 और सैनिकों ने अपनी जान गंवाई थी.
पाकिस्तान युद्ध है
अब गुरमेहर की बात पर वापस लौटते हैं. वे भारत और पाकिस्तान के बीच शांति की पक्षधर हैं. वे अपने पिता की मौत के लिए पाकिस्तान को नहीं, युद्ध को जिम्मेदार मानती हैं. जो पाकिस्तान की ओर से एकतरफा रूप से जारी है. परोक्ष और प्रत्यक्ष दोनों. गुरमेहर ने 28 अप्रैल 2016 को अपना वीडियो लाइव किया था. लेकिन उससे पहले पठानकोट हमला और उसके बाद हुआ उरी हमला दुनिया के सामने है. कैसे मोदी शांति और दोस्ती का पैगाम लेकर लाहौर पहुंचे थे. और उसी के एक हफ्ते बाद बंदूक और बम लेकर आतंकवादी पठानकोट आ गए थे. कश्मीर में खूनी होली खेल रहे पाकिस्तानी आतंकी गुलमेहर के पैगाम को बेमानी बनाते हैं. ये आतंकी शांति नहीं, सर्जिकल स्ट्राइक की भाषा समझते हैं.
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