आतंक में अ'धर्म' का इस्तेमाल होता है तो भुगतना धर्म को ही पड़ता है
श्रीलंका के आतंकवाद विरोधी कुछ कदम पूरी दुनिया को साफ-साफ समझा भी रहे हैं कि जब धर्म के नाम पर आतंकवादी हमला होता है तो उससे उबरने के लिए सरकार को क्या कुछ नहीं करना पड़ता.
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21 अप्रैल को श्रीलंका में तीन चर्च और चार होटलों में हुए आठ आत्मघाती हमलों ने पूरी दुनिया को हिला डाला था. इन हमलों में करीब 253 लोग मारे गए थे. और इसके बाद श्रीलंका में जो अफरातफरी मची उससे ये देश अभी तक सामान्य नहीं हो पाया है.
श्रीलंका की सरकार देश को आतंकवाद मुक्त करने के लिए तमाम प्रयास कर रही है, कई कड़े फैसले ले रही है जिसके लिए उसे न सिर्फ श्रीलंका बल्कि दुनिया भर से आलोचनाएं झेलनी भी पड़ रही हैं. लेकिन श्रीलंका के आतंकवाद विरोधी कुछ कदम पूरी दुनिया को साफ-साफ समझा भी रहे हैं कि जब धर्म के नाम पर आतंकवादी हमला होता है तो उससे उबरने के लिए सरकार को क्या कुछ नहीं करना पड़ता.
सोशल मीडिया बैन
21 अप्रेल के हमलों के बाद श्रीलंका सरकार ने सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी थी. लेकिन हमले के 9 दिन बाद ही इस प्रतिबंध को पूर्ण रूप से हटा दिया था. लेकिन इन हमलों के बाद श्रीलंका के अल्पसंख्यक मुसलमानों और बहुसंख्यक सिंहली समुदाय के बीच तनाव बढ़ने लगा था. इसी बीच चिलाव शहर में एक मुसलमान दुकानदार के फेसबुक पोस्ट को लेकर विवाद हो गया जिसके बाद शहर में भीड़ ने एक मस्जिद और कुछ दुकानों पर हमला कर दिया. तनाब के बाद शहर में कर्फ्यू भी लगा दिया गया. तनाव बढ़ता देखकर श्रीलंका सरकार ने सोमवार को सोशल मीडिया पर दोबारा प्रतिबंध लगा दिया. यानी अब श्रीलंका में फेसबुक और वाट्सएप्प जैसे एप बंद कर दिए गए हैं.
chilaw mosque attacked #srilanka @AzzamAmeen @RW_UNP @RWijewardene @BBCBreaking @cnnbrk @AJENews pic.twitter.com/T5m1X5G3E3
— Rizmy (@MRizmy) May 13, 2019
पूरा मामला यहां देखा जा सकता है-
बुर्का बैन
ईस्टर संडे को हुए इस सीरियल ब्लास्ट के बाद श्रीलंका सरकार ने सार्वजनिक स्थानों में चेहरा छुपानेवाले परिधान पहनने पर बैन लगा दिया. चेहरे को ढकने वाले हर तरह के परिधान जैसे बुर्का, हिजाब या फिर नकाब इन सबपर पाबंदी लगा दी गई है. इस प्रतिबंध का मकसद किसी धर्म विशेष के खिलाफ खड़े होना नहीं है बल्कि नकाब की आड़ में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने वालों के लिए एक रास्ता बंद करना होता है. लेकिन मानवाधिकार से जुड़े कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने और इस्लामिक जानकारों ने श्रीलंका सरकार के इस कदम की आलोचना की.
श्रीलंका से लोगों का निष्कासन
हमलों के बाद हुई सुरक्षा जांच में ये पाया गया था कि वीजा खत्म होने के बावजूद भी विदेशी नागरिकों श्रीलंका में रह रहे थे. इसके लिये उन पर जुर्माना लगाकर उन्हें देश से निष्कासित कर दिया गया. ये करीब 800 लोग थे. देश में सुरक्षा की ताजा स्थिति को ध्यान में रखते हुए वीजा प्रणाली की समीक्षा की गई और धार्मिक शिक्षकों के लिए वीजा प्रतिबंध को कड़ा किया गया. श्रीलंका से निषकासित 800 लोगों में से 200 विदेशी इस्लामिक मौलवी हैं जो टूर्स्ट वीजा पर देशभर के मदरसों में पढ़ा रहे थे.
श्रीलंका के अबरार मस्जिद में तोड़फोड़ की गई
सामूहिक प्रार्थना पर रोक
हमलों के बाद श्रीलंका सरकार ने देश के सारे चर्च बंद करवा दिए. कहा गया कि जब तक सुरक्षा सुनिश्चित न हो, सामूहिक प्रार्थना नहीं की जाए. मस्जिदों में भी सामूहिक नमाज को बंद किया गया. ज्यादातर मस्जिदें बंद हो गईं. श्रीलंका में फैले इस्लामिक कट्टरपंथ को खत्म करने के मकसद से फिर श्रीलंका सरकार ने घोषणा की कि अब देश में मौजूद सभी मस्जिदों में जो उपदेश सुनाए जाते हैं उनकी एक कॉपी सरकार के पास जमा करवानी होगी. कहा गया कि मस्जिदों का इस्तेमाल कट्टरपंथ फैलाने के लिए नहीं होना चाहिए.
हथियार सरेंडर करने का आदेश
श्रीलंका के नेगोंबो में स्थानीय सिंहला समुदाय और मुस्लिमों के बीच भिड़ंत हुई. जिसके बाद श्रीलंकाई पुलिस ने मस्जिदों और घरों की तलाशी के दौरान बड़ी संख्या में हथियार व अन्य आपत्तिजनक सामग्री बरामद हुई. इसके बाद जनता से धारदार हथियार जैसे तलवार, कटार और सेना की वर्दी से मिलते जुलते कपड़े नजदीकी पुलिस थानों में जमा कराने के लिए कहा गया.
...और आखिर में मुसलमानों के प्रति नफरत बढ़ी
इन हमलों को अंजाम देने में स्थानीय जेहादी संगठन नेशनल तौहीद जमात का हाथ होने की बात सामने आने के बाद लोगों का गुस्सा मुस्लमानों को लेकर बढ़ा है. मुस्लिमों के प्रति लोगों का व्यवहार बदल गया है और इसीलिए देश में हिंसा की घटनाएं भी बढ़ रही हैं. और इसी वजह से वहां रहने वाले मुसलमान असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. गुनहगार भले ही इस समाज से हो लेकिन उसकी सजा पूरा समाज झेल रहा है, वो भी जो कुसूरवार नहीं हैं.
इन आतंकी हमले में अपने सौकड़ों लोगों की जाने गंवा चुका श्रीलंका हर प्रयास कर रहा है कि अपने देश को वापस सामान्य कर सके. और इसी दिशा में ऐसे कदम भी उठाने पड़ रहे हैं जिससे दोबारा कोई आतंकी घटना न हो सके. धर्मिक कट्टरता और धर्म के नाम पर आतंक फैलाने वाली हर जगह इस तरह के हादसे होते आए हैं. जान माल का नुक्सन तो बड़ा होता ही है लेकिन उसके बाद देश की सुरक्षा के लिए सरकार को भी कुछ कठोर कदम ना चाहते हुए भी उठाने पड़ते हैं.
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