मोदी के गुजरात में जो कांग्रेस नहीं कर सकी, हार्दिक ने कर दिखाया
हार्दिक को समर्थन देकर अगर कांग्रेस को बहुत बड़ा फायदा नहीं होगा तो फिर सवाल है कि यह आंदोलन धीरे-धीरे विस्तार कैसे हासिल करता चला जा रहा है. क्या बीजेपी की कोई अंदरूनी कलह इस उभरते हुए आंदोलन की वजह है?
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राजनीति कैसे अपना स्वरूप बदलती है, इसका उदाहरण देखना है तो गुजरात का रूख कीजिए. माना, बिहार चुनाव नजदीक है, और हम सबकी नजरें उधर है. लेकिन गुजरात में जो हो रहा है, वह भी कम दिलचस्प नहीं.
कांग्रेस यहां करीब पिछले 15 सालों से अपनी खोई जमीन तलाशने में जुटी है. सरकार को घेरने में जुटी है लेकिन कभी सफल होती नजर नहीं आई. ऐसे में महज 22 साल के एक नौजवान हार्दिक पटेल ने जिस तरह से गुजरात की राजनीति की आबोहवा में एक नया रंग घोला है, वह गौर करने लायक है. पिछले साल लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत के बाद नरेंद्र मोदी गुजरात से दिल्ली आ गए. उसके बाद संभवत: यह पहला मौका है, जब राज्य में बीजेपी को किसी बड़ी चुनौती से दो-दो हाथ करना है.
हार्दिक ने राज्य में पटेलों को आरक्षण दिलाने की मुहिम छेड़ रखी है. वह किसी राजनीतिक पार्टी से नहीं जुड़े हैं. लेकिन इसके बावजूद कुछ ही महीनों में हार्दिक के इस आंदोलन को बड़ा समर्थन मिलने लगा है. वे गुजरात के मेहसाना, सूरत और अहमदाबाद जैसी जगहों में बड़ी रैलियां कर चुके हैं. अहमदाबाद में 25 अगस्त को एक बड़ी रैली होनी है और दावा किया जा रहा है कि इसमें लाखों पटेल युवा पहुंच सकते हैं.
गुजरात में क्यों चाहिए पटेलों को आरक्षण
पटेल समुदाय को हमेशा से समृद्ध और अभिजात्य वर्ग में गिना जाता रहा है. राज्य में करीब 14 से 15 फीसदी जनसंख्या पटेलों की है. गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल इस समुदाय से आती हैं. गुजरात कैबिनेट में सात मंत्री पटेल समाज से हैं. यहां तक की मोदी ने भी केशुभाई पटेल के स्थान पर ही गुजरात के मुख्यमंत्री का पद संभाला था. राज्य में पटेल समुदाय बीजेपी का बड़ा समर्थक माना जाता रहा है और कांग्रेस को वहां की राजनीति के केंद्र से बाहर करने में बड़ी भूमिक इसी समुदाय की रही है.
फिर सवाल उठता है कि इस समुदाय में आरक्षण की बात कहां से उभरी? हार्दिक जिस मांग की अगुवाई कर रहे हैं, उसके तहत पटेलों को ओबीसी क्लास में भी शामिल किया जाना चाहिए.
राज्य में ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण है और इसमें 147 जातियां शामिल हैं. इनमें 17 पिछड़ी मुस्लिम जातियां भी हैं. कई पटेल युवाओं का मत है कि उनके समाज में उच्च शिक्षा हासिल करने वाले युवाओं की संख्या पिछले कुछ सालों में काफी बढ़ी है. कई युवा अब पारिवारिक बिजनेस को संभालने की बजाए नौकरियों का रूख कर रहे हैं. पहले नौकरी को लेकर इतनी मारमारी इस समुदाय में नहीं थी, इसलिए वैसी मुश्किल खड़ी नहीं हुई. लेकिन अब परिस्थितियां बदल रही हैं.
हार्दिक के आंदोलन से कांग्रेस को नहीं होगा फायदा
हार्दिक ने भले ही वह काम कर दिया हो, जिसके लिए कांग्रेस तरसती रही हो. लेकिन क्या इसका फायदा उसे मिलेगा? इस बारे में कुछ भी कहना अभी मुश्किल है क्योंकि कांग्रेस कहीं से भी इस आंदोलन में खुल कर सामने नहीं आई है. कांग्रेस की अपनी मुश्किलें हैं. उसके सामने मुस्लिमों, दलितों और दूसरी अगड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व करने की भी चुनौती है. इसलिए वह एकदम से पटेलों की हां में हां नहीं मिला सकती. साथ ही, गुजरात कांग्रेस में कोई बड़ा पटेल नेता भी नहीं है, जिसके सहारे वह बीजेपी को घेरने की कोशिश कर सके.
पर्दे के पीछे से कौन दे रहा है हार्दिक को समर्थन?
हार्दिक को समर्थन देकर अगर कांग्रेस को बहुत बड़ा फायदा नहीं हो रहा तो फिर सवाल है कि यह आंदोलन धीरे-धीरे विस्तार कैसे हासिल करता चला जा रहा है. क्या बीजेपी की कोई अंदरूनी कलह इस उभरते हुए आंदोलन की वजह है? गुजरात की राजनीति के तीन बड़े चेहरे मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल, नरेंद्र मोदी और अमित शाह मेहसाना जिले से हैं. हार्दिक पटेल भी इसी जिले से आते हैं. तो क्या यह आंदोलन राजनीति के उस त्रिकोण के किसी दो कोण के बीच की खींचतान का नतीजा है. यह बस एक सवाल है, जिसका जवाब वक्त के साथ हार्दिक का आंदोलन ही देगा.
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