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Updated: 24 अक्टूबर, 2019 01:37 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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हरियाणा और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव (Haryana-Maharashtra Election Result) की मतगणना (Vote Counting) ने जहां एक ओर भाजपा को झकझोरने का काम किया है तो वहीं राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को भी तगड़ा मैसेज दिया है. दोनों ही राज्यों की जनता ने ये साफ कर दिया है कि उन्हें न तो राहुल गांधी की जरूरत है, ना ही सोनिया गांधी की. वैसे भी, जो लोग चुनाव प्रचार के दौरान रैलियां करने महाराष्ट्र-हरियाणा में नहीं गए, उनसे कोई क्या मतलब रखे. वहीं दूसरी ओर भाजपा है, जिसने हरियाणा में भी करीब 20-25 रैलियां कीं और महाराष्ट्र में तो रैलियों की झड़ी लगा दी. बेशक भाजपा को मेहनत का फल उतना नहीं मिला, जितनी उसने मेहनत की, लेकिन कांग्रेस ने तो मेहनत भी नहीं की, फिर भी उसे अच्छा खासा फल मिल गया है.

हरियाणा विधानसभा चुनाव, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव, राहुल गांधी, सोनिया गांधीराहुल गांधी और सोनिया गांधी को जनता ने सिर्फ इशारा ही नहीं किया, बल्कि कड़ा संदेश दिया है.

राहुल-सोनिया को वोटों से मतलब नहीं !

चुनाव से पहले राहुल गांधी विदेश घूमने चले गए थे. वापस लौटकर चुनाव प्रचार करने पहुंचे तो भी हरियाणा में 2 रैली कीं और महाराष्ट्र में 5 रैलियां कीं. सोनिया गांधी की तो एक रैली महेंद्रगढ़ में होनी थी, वो भी कैंसिल कर दी गई. यानी राहुल गांधी ने खानापूर्ति करने के लिए कुछ रैलियां कर दीं और सोनिया गांधी ने तो जनता के बीच जाने की भी जहमत नहीं उठाई. राहुल और सोनिया दोनों को ही पूरी उम्मीद थी कि जनता उन्हें वोट नहीं देगी और इसीलिए वह जनता से वोट मांगने गए भी नहीं.

जनता को राहुल-सोनिया से मतलब नहीं !

हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के रूझानों को देखें तो एक बात साफ होती है कि राहुल-सोनिया की ना के बराबर कोशिश के बावजूद लोगों ने कांग्रेस को वोट दिए हैं. यानी जनता ने साफ कर दिया है उन्हें न तो राहुल गांधी से कोई मतलब है, ना ही सोनिया गांधी से. हां, कांग्रेस का स्थानीय नेता अगर काबिल है तो जनता उसे वोट देने के लिए तैयार दिख रही है. तभी तो भूपेंद्र सिंह हुडा को जनता ने वोट दिए. अब अगर हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बनती है तो इसका पूरा श्रेय भूपेंद्र सिंह हुडा को जाएगा, ना कि राहुल-सोनिया को.

राहुल गांधी और सोनिया गांधी से लोगों को मोह यूं ही नहीं भंग हुआ, बल्कि इसके लिए वो खुद ही जिम्मेदार हैं. लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी पार्टी के अध्यक्ष थे. पार्टी चुनाव क्या हारी, राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा सौंप दिया. बाकी नेताओं ने लाख मनाने की कोशिश की, लेकिन नहीं माने. थक-हार कर खुद सोनिया गांधी ने अंतरिम अध्यक्ष बनने की ठान ली, लेकिन किसी दूसरे नेता को पार्टी की कमान नहीं सौंपी. पार्टी के अंदर जिस तरह का कलह चल रहा है, वह जनता को दिख रहा है और जनता समझ भी रही है कि ये सब राहुल गांधी और सोनिया गांधी की नाकामी है.

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