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Updated: 22 सितम्बर, 2017 04:22 PM
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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी अभी संविदा पर हैं. पनामा लीक्स केस में दोषी पाये जाने के बाद नवाज शरीफ ने अब्बासी को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाया था. आगे का तो नहीं मालूम लेकिन सियासी हालात ऐसे ही रहे तो अब्बासी की कुर्सी अगले चुनाव तक भी कायम जरूर रह सकती है. पाकिस्तान में अगले साल चुनाव होने हैं.

संयुक्त राष्ट्र में बतौर राष्ट्राध्यक्ष पहुंचना और भाषण देने का मौका मिलना अब्बासी के लिए लॉटरी लगने जैसा है. तारीफ करनी होगी अब्बासी की अपनी ओर से कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं.

मौका शानदार है

बरसों से पाकिस्तानी हुक्मरानों की रोजी रोटी कश्मीर के ही सहारे चलती रही है. अब्बासी भी वैसे ही बहती गंगा में हाथ धो रहे हैं. दरअसल, पाकिस्तानी फौज को भी कश्मीर विमर्श खूब पसंद आता है.

संयुक्त राष्ट्र में पिछली बार नवाज शरीफ ने भी कश्मीर का मुद्दा उठाया था. बुरहान वानी के एनकाउंटर में मारे जाने के वाकये को इंतिफादा से जोड़ कर पेश किया था. जब भारत ने शरीफ की बातों को तर्कों के साथ खारिज कर दिया तो पाकिस्तान में उन्हें बड़ी नाराजगी झेलनी पड़ी.

अब्बासी, नवाज शरीफ सरकार में मंत्री रह चुके हैं और अच्छी तरह जानते हैं कि फौज का कितना दखल रहता है. वो ये भी जानते हैं कि न्यायपालिका में भी फौज का दखल किस हद तक बढ़ चुका है. फौज की दखल का ही नतीजा रहा कि शरीफ के वकीलों को अपने मुवक्किल का पक्ष ठीक से रखने का मौका नहीं मिला. जब अब्बासी को मालूम है कि फौज की हां में हां नहीं मिलाने के चलते ही ये दिन देखने पड़ रहे हैं, फिर खुद पैर कुल्हाड़ी पर क्यों मारें - और क्यों न आगे बढ़ कर मौके का फायदा उठायें. अब्बासी फिलहाल यही कर रहे हैं.

shahid khaqan abbasiअब्बासी का कश्मीर संगीत

अब्बासी ने यूएन में कुछ नया नहीं कहा है लेकिन पाक फौज की नजर में पेशकश बेहतरीन है. अपने भाषण से पहले ही अमेरिकी थिंकटैंक के कार्यक्रम में अब्बासी ने टीजर छोड़ दिया - भारत के कोल्ड स्टार्ट से मुकाबले के लिए पाकिस्तान ने शॉर्ट रेंज वाले हथियार बना लिये हैं. दुनिया को आश्वस्त करने के लिए भी एक तर्क दिया - अगर 50 साल से न्युक्लियर हथियारों को कुछ नहीं हुआ तो आगे क्यों नहीं सुरक्षित रहेगा? हालांकि, अब्बासी भूल गये कि जब पूछा जाएगा कि हाफिज सईद चुनाव लड़ कर उस हैसियत में पहुंच गया तो क्या होगा? हाफिज भी उस हैसियत को हासिल कर सके, ये मौका भी उसे पाक फौज ही मुहैया करा रही है.

यूएन के अपने भाषण में अब्बासी ने कश्मीर पर पुरानी बातों के अलावा एक दूत भेजने की डिमांड की है. वैसे भारत की ओर से राइट टू रिप्लाई का इस्तेमाल करते हुए ईनम गंभीर ने एक एक कर अब्बासी की सारी बातें खारिज कर दी हैं. ऊपर से पाकिस्तान को एक नया नाम - टेररिस्तान भी दे दिया है. बाकी बातें तो बाद में लेकिन पाकिस्तान को सबसे बड़ा झटका दिया है उसके करीबी से भी करीबी दोस्त चीन ने. चीन ने कह दिया है कि कश्मीर का मसला द्विपक्षीय है, जो भारत का स्टैंड है.

अब्बासी के भाषण के बाद भारत और फिर चीन ने जिस तरह रिएक्ट किया वो तो होना ही था. लेकिन अब्बासी को इन बातों से बहुत फर्क नहीं पड़ता. अब्बासी ने इतना तो कर ही लिया है कि अपने अच्छे दिनों को थोड़ा और एक्सटेंशन दिला सकें. वैसे भी अब्बासी के पास इसके भरपूर मौके हैं.

मौके आगे भी हैं...

लाहौर उपचुनाव के नतीजे नवाज शरीफ के पक्ष में रहे. आंकड़े तो बताते हैं कि 2013 में नवाज शरीफ ने इसी सीट पर 61 फीसदी वोट पाये थे जबकि उनकी पत्नी बेगम कुलसुम नवाज को 53.5 फीसदी ही वोट मिले. गौर करने वाली बात ये है कि उपचुनाव में न तो नवाज शरीफ मौजूद थे और न ही कुलसुम शरीफ. सारी जिम्मेदारी नवाज की बेटी मरियम शरीफ ने संभाली और नतीजे को अपने पक्ष में अंजाम तक पहुंचाया. इस चुनाव कुछ और भी खासियत रही पहली कि कुलसुम ने इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ की उम्मीदवार यासमीन रशीद को 13 हजार वोटों से हराया. और दूसरी कि मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद की पार्टी मिल्ली मुस्लिम लीग के शेख याकूब को पांच हजार से भी कम वोट मिले. वैसे शेख याकूब निर्दलीय खड़ा हुआ था क्योंकि चुनाव आयोग ने हाफिज की पार्टी को उम्मीदवार उतारने की अनुमति नहीं दी.

लाहौर उप चुनाव और उसके नतीजे को देखें तो पता चलेगा कि नवाज शरीफ की मुश्किलें कितनी बढ़ चुकी हैं. एक, इमरान खान की पार्टी आगे भी कड़ी टक्कर देने वाली है. दो, 2018 में नवाज को हाफिज सईद की पार्टी से भी मुकाबला करना पड़ेगा. तीन, पनामा पेपर्स केस में बुरी तरह फंसे नवाज के ऊपर मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े एक ऐसे मामले का साया नजर आने लगा है जिससे शरीफ परिवार बरी हो चुका है. पता चला है कि नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो ने सुप्रीम कोर्ट से हुदेबिया पेपर मिल्स केस को दोबारा खोलने की गुजारिश की है. अगर हुदेबिया केस में भी फैसला पनामा जैसा ही रहा तो पूरे शरीफ परिवार का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है.

अब्बासी का ध्यान शरीफ भाइयों के रिश्ते पर भी गया ही होगा. लाहौर उपचुनाव में शरीफ भाइयों के बीच कैसा रिश्ता है ये भी सामने आ गया. अव्वल तो शहबाज शरीफ पाकिस्तान के पीएम की गद्दी पर बैठने वाले थे, लेकिन अब्बासी की तकदीर को तकनीकी पेंचों के जरिये कुर्सी मिल गयी. तब बताया गया था कि जब तक शहबाज नेशनल असेंबली के सदस्य नहीं बनते अब्बासी अंतरिम प्रधानमंत्री रहेंगे. फिर खबर आयी कि पंजाब प्रांत पर मजबूत पकड़ के चलते शहबाज सीएम की कुर्सी नहीं छोड़ना चाहते. चुनाव आते आते साफ हो गया कि जो बताया जा रहा है वो सिर्फ आधा सच है.

पूरा सच तो ये है कि नवाज भाई शहबाज को सत्ता सौंप कर किनारे नहीं लगना चाहते. शहबाज शुरू से ही फौजी हुक्मरानों से करीबी रिश्ते के पक्षधर रहे हैं. नवाज ऐसा नहीं चाहते. भारत के साथ जब बैकडोर बातचीत का मामला उछला तो नवाज ने आर्मी चीफ से मिल कर अपना पक्ष जरूर रखा, लेकिन वो चाहते हैं कि सत्ता की ताकत उन्हीं नुमाइंदों के पास रहे जो जम्मूरियत के जरिये चुन कर आये हैं. अगर शहबाज को सत्ता की चाबी मिल जाये तो कब वो फौज के हाथ लग जाये कहना मुश्किल होगा.

shahid khaqan abbasiपाक फौज को कश्मीर विमर्श पसंद है...

अब्बासी समझ चुके हैं कि नवाज शरीफ अब भाई शहबाज को अपना उत्तराधिकारी नहीं बनाने वाले बल्कि अब भी वो इसे बेटी मरियम को ही सौंपना चाहते हैं. वो ऐसा नहीं कर सकते इसलिए चुनाव जिता कर कुलसुम को बीच में लाया गया है. मुमकिन है कुलसुम को ही पाकिस्तानी मुस्लिम लीग (नवाज) की चीफ बना दिया जाये.

पाकिस्तान की सियासत को हालात ने ऐसे मोड़ पर पहुंचा दिया है कि अब्बासी बड़े आराम से चुनाव तक प्रधानमंत्री बने रह सकते हैं. यूएन में जिस तरह उन्होंने पाकिस्तान का पक्ष रखा है उससे फौज को एक संदेश ये भी गया है कि शहबाज ही नहीं वो खुद भी अच्छे प्रवक्ता और प्यादा साबित हो सकते हैं. ऐसे में अब्बासी का भाषण यूएन में पाकिस्तान का पक्ष कम और कुर्सी पर बने रहने का उपाय ज्यादा लग रहा है.

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