एक विश्वविद्यालय का RSS की कार्यशाला हो जाना...
क्या महामना की बगिया कहे जाने वाले विश्वविद्यालय में उल्टी गंगा बह रही है? संवाद और विचारों के आदान-प्रदान की बजाए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला सरेआम घोंटा जा रहा है! किसी खास विचारधारा को खुलेआम प्रचारित-प्रसारित करने की कोशिश की जा रही है?
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भारत में सियासी नजरिए से देखे जाने वाले सबसे अहम् राज्यों में से अव्वल है उत्तर प्रदेश और उसी राज्य के पूर्वी भूभाग में स्थित है काशी हिन्दू विश्वविद्यालय. विश्वविद्यालय जहां दुनिया भर के सर्वश्रेष्ठ दिमागों का जमावड़ा होता है.
विश्वविद्यालय जिनके निर्माण के पीछे हमारे पुरखों का मकसद था कि छात्रों और नौजवानों के बीच बहस-मुबाहिसे हों, छात्र बिना किसी डर के खुद को अभिव्यक्त कर सकें, संवाद हो, विचारों का आदान-प्रदान हो और इन तमाम संवादों के हासिल का फायदा समाज को मिले. उस समाज को जिसे हम-आप मिल कर बनाते हैं. समाज जिसमें बदलाव लाने की जिम्मेदारी हमेशा युवा पीढ़ी के कंधों पर होती है. वैसे युवा जो आज विश्वविद्यालय और कॉलेजों में छात्र-छात्रा हैं. वे ही कल कहीं शिक्षक, नौकरशाह, सेना के अफसर और राजनेता होंगे, लेकिन महामना की बगिया कहे जाने वाले विश्वविद्यालय में तो उल्टी ही गंगा बह रही है. वहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला सरेआम घोंटा जा रहा है. वहां एक तरह की वैचारिकी को खुलेआम प्रचारित-प्रसारित करने की कोशिश की जा रही है और दुखद तो यह है कि इसके लिए विश्वविद्यालय और राज्य मशीनरी की मदद ली जा रही है.
ऐसा भी नहीं है कि इस विश्वविद्यालय में ऐसा हाल ही में शुरू हुआ है. ऐसा होना यहां की परम्परा का हिस्सा रहा है. खुले आम चलने वाला जात-पांत का वितंडा. धार्मिक स्तर पर होने वाला भेदभाव को बेहद गुपचुप तरीके से हवा देना हालांकि यहां विरोधी विचारों को हमेशा से सुना जाता रहा है. यहां शास्त्रार्थ की परम्परा का बोलबाला रहा है, लेकिन बीते दिनों या फिर कहें कि पिछले दो वर्षों से इसमें बेतहाशा वृद्धि हुई है.
बीएचयू में RSS! |
हिन्दुस्तान में नए निजाम के आने के बाद तो मानो विश्वविद्यालय के भीतर और बाहर रहने वाले दक्षिणपंथियों और ब्राम्हणवादियों के पांव ही जमीन पर नहीं हैं. वे अब खुल कर सामने आ गए हैं. इस पूरे घटनाक्रम को सिलसिलेवार ढंग से देखने के लिए कुछ उदाहरण...
विश्वविद्यालय प्रांगण के भीतर मौजूद एक कलात्मक नग्न मूर्ति को कपड़े पहना देना: विश्वविद्यालय प्रांगण के भीतर एक मधुवन नाम की जगह है. इस जगह पर दशहरा के दौरान दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है और सालों भर यहां विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं का जमावड़ा लगा रहता है. इसी मधुवन के बीचोबीच एक बीसेक फीट की महिला की कलात्मक मूर्ति लगी है. यह प्रतिमा विश्वविद्यालय के फाइन आर्ट्स के विद्यार्थियों ने कोई चार दशक पहले बनाई थी. इस मूर्ति में विश्वविद्यालय को अचानक से अश्लीलता नजर आने लगी और मूर्ति को स्कर्ट और टॉप पहना दिया गया. इसका विरोध विश्वविद्यालय के भीतर-बाहर रहने वाले मनीषियों ने और पूर्व छात्रों ने किया. उन्हें उस मूर्ति को फिर से जस का तस छोड़ना पड़ा.
शोध छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति पर वाइस चांसलर की अनावश्यक टिप्पणी: ऐसे समय में जब देश भर के विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं दिल्ली में यूजीसी कार्यालय के बाहर ठंड में कंपकपा रहे हों. सरकार और पुलिस की लाठियां और पानी की बौछारें सह रहे हों. ठीक उसी समय में इस विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर कहते हैं कि शोध छात्र को छात्रवृत्ति का क्या काम. वे तो इन पैसों से मोटरसाइकिलें खरीदते हैं. अब ऐसे लोगों को क्या ही कहा जाए.
वाइस चांसलर का विद्यार्थी परिषद् के कार्यक्रमों में मंचासीन होना: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर गिरीश चन्द्र त्रिपाठी इससे पहले पूरब के ऑक्सफोर्ड कहे जाने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर रह चुके हैं. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में वाइस चांसलर का पदभार ग्रहण करने के बाद भी विद्यार्थी परिषद् के कार्यक्रमों में शिरकत करते देखा गया है. इतना ही नहीं वे इन कार्यक्रमों में बकायदा मंचासीन भी होते हैं और वक्तव्य भी देते हैं.
चौथा विश्वविद्यालय में फ्री स्पीच, छात्र संघ पर रोक और भ्रष्टाचार की खुली छूट: ये सारी बातें पढ़ने-सुनने में चाहे कितनी ही विरोधाभाषी क्यों न लग रही हों लेकिन इन सारी बातों के तार एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. अभी हाल ही की एक घटना का जिक्र करें तो शायद इसे समझना बेहतर होगा. विश्वविद्यालय प्रांगण में स्थित है सर सुंदर लाल अस्पताल. इस अस्पताल को पूर्वांचल का एम्स कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. इस विश्वविद्यालय में एक सीटी स्कैन सेंटर हैं. इस सीटी स्कैन सेंटर में मरीजों से मनमानी फीस वसूली जाती है. जब विश्वविद्यालय के छात्रों ने इस धांधली और भ्रष्टाचार के मामले का भंडाफोड़ करने की कोशिश की तो विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्रों का सहयोग करने के बजाय उन छात्रों को ही विश्वविद्यालय से निष्काषित कर दिया.
संघ की सोच व विचार को बढ़ावा देने के लिए स्टेट मशीनरी का दुरुपयोग: इस मुद्दे को समझने के लिए आपको थोड़ा संघ की वैचारिक पत्रिका ऑर्गनाइजर व मुखपत्र पांचजन्य को देखना होगा. इन पत्रिकाओं में इस सप्ताह आदि पत्रकार देवर्षि नारद को दुनिया का पहला पत्रकार लिख कर महिमामंडित करने का काम किया जा रहा है. ऐसे कार्यक्रमों को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रांगण में विश्व संवाद केन्द्र के बैनर तले आयोजित किया जा रहा है. और विरोधाभाष देखिए ऐसे सारे कार्यक्रम विश्वविद्यालय में साइंस फैकल्टी के सभागार में आयोजित किए जाएंगे. इन कार्यक्रमों में संघ के विचारक राकेश सिन्हा वाइसचांसलर के साथ मौजूद होंगे.
विश्वविद्यालय में 24X7 लाइब्रेरी पर रोक: अब इससे बड़ी विडम्बना शायद ही कहीं देखने को मिले. एक तरफ देश के अलग-अलग शहरों में प्रधानमंत्री का करोड़ो रुपये लगाकर भारत को डिजिटली आगे बढ़ाने का शोर और वहीं दूसरी तरफ उनके ही संसदीय क्षेत्र और उसके भीतर मौजूद विश्वविद्यालय की ई-लाइब्रेरी के 24X7 घंटे न चलने देना क्या दर्शाता है. छात्र लाइब्रेरी को 24x7 खुलवाने के लिए अनशन पर हैं और विश्वविद्यालय प्रशासन और वाइस चांसलर उनकी मांगों को न मानने पर अड़े हैं.
यह सब-कुछ यहीं थम जाता तो गनीमत थी. सुना जा रहा है कि अब खुद वाइस चांसलर ही मॉरल पुलिसिंग करने पर उतारू हो गए हैं. वे अब अपने अमले-जमलों के साथ विश्वविद्यालय के प्रांगण में घूम रहे हैं, और एक साथ घूमने वाले लड़के-लड़कियों को मर्यादा-संस्कृति और परम्परा का हवाला देकर अलग-अलग रहने की सलाह दे रहे हैं. अब ऐसी समझ और सलाहियत रखने वाले विश्वविद्यालय और प्रशासन से लड़ने के अलावा हमारे-आपके पास कोई विकल्प नहीं रह जाता. लड़िए कि लड़ना जरूरी है नहीं तो आने वाली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी और इतिहास भी तो सिर्फ लड़ने वालों का ही होता है.
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