जानिए कहानी मोदी के 'जय श्रीराम' का नारा देने के पीछे की
Pok में सेना के हमले को पार्टी भुनायेगी लेकिन सिर्फ उसके दम पर विरोधियों को मात नहीं दी सकती. इसलिए पार्टी ने अपना दशकों पुराना मुद्दा फिर छेड़ दिया है. संकेत देने की कोशिश है कि सरकार राम मंदिर पर हरकत में आ गई है.
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लखनऊ में ऐतिहासिक रामलीला के मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जय श्री राम का नारा यूं ही नहीं दिया था. उसके कुछ मायने थे और मकसद भी जो किसी से छिपे नहीं. उत्तर प्रदेश चुनाव में आखिर किस मुद्दे पर आगे बढ़ा जाए, ये पार्टी रणनीतिकारो के लिए सरदर्द बना हुआ है. Pok में सेना के हमले को पार्टी भुनायेगी लेकिन सिर्फ उसके दम पर विरोधियों को मात नहीं दी सकती. इसलिए पार्टी ने अपना दशकों पुराना मुद्दा फिर छेड़ दिया है.
ये हैं समान नागरिक संहिता और राम का नाम. राम का नाम लेकर मोदी ने ठन्डे पड़े मुद्दे को फिर गरमा दिया है. बहस शुरू हो गई है और संकेत देने की कोशिश है कि सरकार राम मंदिर पर हरकत में आ गई है. लेकिन जिस मुद्दे ने विवाद छेडा है वो है समान नागरिक संहिता. जिसे बीजेपी यूपी चुनाव में भुनाने की फिराक में है.
ऐसा पहली बार हुआ, जब सरकार ने लॉ कमीशन को समान नागरिक संहिता के बारे में पड़ताल करने को कहा और विवाद ऐसा छिड़ा जो सरकार चाहती थी.
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जय श्री राम के राजनीतिक मतलब कई हैं... |
पार्टी के मैनिफेस्टो में शामिल यूनिफार्म सिविल कोड पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के विरोध से बीजेपी उत्साहित है. सरकार ने चाल भी सोच समझकर चली. हवाला सुप्रीम कोर्ट के आदेश का दिया गया और खुद को पार्टी ठहराने से इंकार करते हुए सरकार ने गेंद उन मुस्लिम महिलाओं के पाले में डाल दी जो ट्रिपल तलाक के खिलाफ अदालत पहुचीं.
महिला अधिकारों और समानता की वकालत करते हुए मोदी सरकार ने ट्रिपल तलाक की आड़ में पिछले दरवाज़े से ही सही अपने एजेंडे यानी यूनिफार्म सिविल कोड पर न सिर्फ बहस शुरू करवा दी बल्कि अपने दाव से विपक्ष को भी ऐसे दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया जहा वो न विरोध कर पा रहा है ना बचाव.
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फिर चाहे मुलायम सिंह यादव हों या कांग्रेस, इस मुद्दे पर सभी खुलकर बोलने से बच रहे हैं. मुस्लिम संगठन जितना विरोध करेंगे बीजेपी को अपने लिए उतना ही फायदा होता दिख रहा है.
तभी तो पिछले एक हफ्ते में पार्टी के उत्तर प्रदेश से तमाम नेता अपने बयानों में ट्रिपल तलाक और समान नागरिक संहिता का जिक्र कर रहे हैं. क्योंकि इस बहाने अगड़ी जाति को साथ रखने की मुहिम तो कारगर होगी ही, वोटो के ध्रुवीकरण का फायदा भी मिलेगा. और दूसरा संघ का पारम्परिक एजेंडा भी ज़िंदा रहेगा. अब यूपी चुनाव से पहले देश में यूनिफार्म सिविल कोड पर जितनी बहस होगी बीजेपी को उतना ही लाभ होगा.
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