क्या संसद ने किशोर अपराधियों के लिए टाडा को मंजूरी दी है?
मुजरिम को सजा देने का आधार जुर्म होना चाहिए या उसकी उम्र? निर्भया के नाबालिग दुष्ककर्मी की रिहाई को लेकर ये बहस शुरू हुई.
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मुजरिम को सजा देने का आधार जुर्म होना चाहिए या उसकी उम्र? निर्भया के नाबालिग दुष्कर्मी की रिहाई को लेकर ये बहस शुरू हुई. जूवेनाइल जस्टिस बिल को लोक सभा के बाद अब राज्य सभा ने भी पास कर दिया है. इसके कानूनी शक्ल लेने में अब कुछ औपचारिकताओं ही बाकी हैं, लेकिन बहस अभी खत्म नहीं हुई है.
अपराध या उम्र?
आशा देवी का सवाल है, “अपराध के लिए उम्र नहीं, सजा के लिए उम्र देखते हैं.” आशा देवी 16 दिसंबर की घटना की पीड़ित ज्योति सिंह की मां हैं. अपने बेटी गंवाने के बाद अब दूसरी बच्चियों की सुरक्षा के लिए संघर्ष कर रहीं आशा देवी का कहना है कि सजा अपराधी की उम्र के हिसाब से नहीं बल्कि उसके अपराध के हिसाब से दी जानी चाहिए.
किशोर न्याय (देखभाल एवं संरक्षण) संशोधन विधेयक 2014 पर राज्य सभा में बहस के दौरान मेनका गांधी ने कहा कि बिल में बदलाव का ये मतलब नहीं कि 16 साल के किशोर ने अपराध किया तो उसे जेल भेज दिया जाए. मेनका ने कहा कि कोर्ट के पास अपराध की प्रवृति के आधार पर ये तय करने का अधिकार होगा कि किशोर अपराधियों को जूवेनाइल बोर्ड या सुधार गृह भेजा जाए या सजा दी जाए.
नेताओं के साथ ऐसा होता तो?
इंडिया टुडे के साथ बातचीत में आशा देवी ने कहा था कि जब तक नेताओं के साथ ऐसी घटनाएं नहीं होतीं कुछ भी होना संभव नहीं है.
बिल का समर्थन करते हुए टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ऐसे ही भावुक हो उठे. ब्रायन ने कहा, "भगवान न करे अगर वो मेरी बेटी होती तो क्या मैं सबसे अच्छे वकील खोजता या बंदूक लेकर दोषियों को मार देता... मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ कहता हूं कि मैंने एक बंदूक लेकर दोषियों को मार दिया होता."
उम्र की बात चली तो शिव सेना सांसद संजय राउत ने माफिया डॉन दाऊद इब्राहिम का उदाहरण दिया कि उसने पहला जुर्म नाबालिग रहते हुए किया था.
कानूनों के सख्त होने के साथ साथ उनके दुरुपयोग का भी खतरा बढ़ जाता है. दहेज विरोधी कानून से लेकर टाडा और पोटा तक सभी मामलों में ये देखा जा चुका है. किशोर न्याय (देखभाल एवं संरक्षण) संशोधन विधेयक 2014 को अब तो राज्य सभा की मंजूरी भी मिल चुकी है, लेकिन इसे लेकर भी वैसी आशंकाएं जताई जा रही हैं.
इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में सीपीएम नेता सीताराम येचुरी एक मिसाल देते हैं. येचुरी कहते हैं, "अगर आप किशोर की उम्र 18 से घटाकर 16 कर देते हैं... फर्ज कीजिए एक अन्य लड़का वैसा ही अपराध करता है और उसकी उम्र 15 साल 10 महीने है. फिर आप क्या करेंगे?" येचुरी की राय में ऐसे मामलों में उम्र नहीं अपराध की प्रवृत्ति के हिसाब से चलना जरूरी है.
इंडियन एक्सप्रेस में ही यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ, हैदराबाद के के वाइस चांसलर फैजान मुस्तफा का कहना है, "बड़े ही दुर्भाग्य की बात है, ऐसा लगता है हमने बच्चों के खिलाफ महिलाओं को खड़ा कर दिया है."
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