CBI ने साबित कर दिया UP Police आदतन झूठी है - योगी आदित्यनाथ चुप क्यों हैं?
हाथरस गैंग रेप में सीबीआई ने चार्जशीट (CBI Chargesheet in Hathras Gang Rape) फाइल कर दी और यूपी पुलिस (UP Police) का दावा धरा का धरा रह गया - 'बलात्कार हुआ ही नहीं?' झूठ कौन बोल रहा है - मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) कुछ प्रकाश डालेंगे क्या?
-
Total Shares
उत्तर प्रदेश पुलिस (UP Police) को लेकर पहले शक-शुबहे रहे होंगे, लेकिन अब तो पूरी तरह साफ हो चुका है - यूपी पुलिस आदतन झूठी है. सबसे बड़ी बात ये है कि ये किसी ऐसे वैसे तरीके से नहीं, बल्कि सीबीआई जांच में मालूम हुआ है कि हैबिचुअल क्रिमिनल्स के पीछे भागते भागते यूपी पुलिस को भी झूठ बोलने की आदत पड़ चुकी है.
उन्नाव गैंगरेप जैसे हाई प्रोफाइल केस के बाद हाथरस गैंगरेप दूसरा बड़ा मामला है जिसमें यूपी पुलिस के दावे और सीबीआई की पड़ताल एक जैसी रही है - दोनों ही मामलों में यूपी पुलिस ने सफेद झूठ बोला ये कोई और नहीं सीबीआई जांच बता रहा है. पुलिस का दावा था हाथरस में बलात्कार हुआ ही नहीं और सीबीआई की जांच (CBI Chargesheet in Hathras Gang Rape) में गैंग रेप के सबूत मिल गये.
दिलचस्प तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) का हाथरस केस में नया बयान होगा - जिसका हर किसी को इंतजार होगा. मुमकिन है जैसे यूपी पुलिस ने केंद्र सरकार को हाथरस में बलात्कार न होने के दावे के साथ पत्र लिखा है, नये सिरे से शिकायती पत्र लिख डाले कि सीबीआई की जांच सही दिशा में नहीं जा रही है - और जानबूझ कर जाति के आधार पर बेकसूर नौजवानों के खिलाफ चार्जशीट फाइल की गयी है!
हाथरस केस की चार्जशीट में क्या है?
एक ही घटना को लेकर यूपी पुलिस का फाइनल जवाब रहा - "बलात्कार नहीं हुआ है," और सीबीआई ने अपनी जांच पड़ताल के बाद उन चारों आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट फाइल की है जिसे पीड़ित के बयान के आधार पर स्थानीय पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था.
सीबीआई ने सभी चारों आरोपियों संदीप, रवि, रामू और लव-कुश के खिलाफ आरोप पत्र तैयार किया था जिसमें इनके खिलाफ हत्या, रेप, गैंगरेप, एससी/एसटी एक्ट जैसी धाराओं में चार्जशीट दायर की है. सीबीआई ने भारतीय दंड विधान IPC की धारा 302 (हत्या), धारा 376 (रेप), धारा 376 डी (गैंगरेप) और धारा 376 ए (रेप के कारण मौत) के साथ साथ एससी-एसटी एक्ट के तहत मुकदमा कायम किया है - और जांच के बाद कोर्ट में चार्जशीट फाइल की है.
CBI files charge sheet in alleged gangrape and murder case of Dalit woman in Hathras: officials
— Press Trust of India (@PTI_News) December 18, 2020
चारों आरोपी फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं. सीबीआई के अफसरों के मुताबिक, चारों आरोपियों का गुजरात के गांधीनगर स्थित फोरेंसिक साइंस लैबोरेटरी में अलग-अलग टेस्ट भी कराया गया था.
गैंगरेप पीड़ित के 22 सितंबर के मौत से पहले बयान को आधार बनाकर सीबीआई ने दो हजार पेज की चार्जशीट तैयार की है. मौत पूर्व अपने बयान में पीड़िता ने बताया था कि उसके साथ रेप हुआ था - और हमलावरों के नाम भी बताये थे.
सीबीआई जांच के आदेश तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही दिये थे, लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी किया था कि सीबीआई जांच की निगरानी इलाहाबाद हाईकोर्ट करेगा.
क्या हाथरस गैंग रेप केस में झूठ बोलने वाले पुलिसवालों पर भी कोई कार्रवाई होगी?
इंडिया टुडे के साथ बातचीत में पीड़ित परिवार ने पहली बार थोड़ी राहत की सांस ली है. पीड़ित के भाई का कहना है, 'हम जानते हैं कि इससे हमारी बहन वापस नहीं आ जाएगी लेकिन ये ऐसा है जिससे हमें खुशी नहीं मिलेगी... इसे ऐसे देखें कि कम से कम हम जो बोल रहे थे वो सही था.'
बातचीत के दौरान पीड़ित की भाभी सिसकते हुए बोलीं, 'मेरी ननद का अंतिम बयान व्यर्थ नहीं गया.'
घटना एक ही है - 14 सितंबर को हाथरस के एक गांव में 19 साल की एक लड़की के साथ दिल दहला देने वाली दरिंदगी हुई. बलात्कार की शिकार और बुरी तरह जख्मी लड़की को सबसे पहले इलाके के थाने पर ले जाया गया था, लेकिन पुलिसवालों ने डांट कर भगा दिया. फिर नजदीक के अस्पताल और बाद में जिला अस्पताल - और आखिर में हालत बिगड़ने पर दिल्ली पहुंचाया गया जहां उसे बचाया न जा सका. दस दिन बाद अस्पताल में मौत के बाद 30 सितंबर की आधी रात को हाथरस ले जाया गया और भारी पुलिस बल की मौजूदगी में देर रात उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया.
लड़की के घरवाले बिलखत, तड़पते और चिल्लाते रहे - एक बार बेटी का चेहरा तो दिखा दो. किसी ने नहीं सुनी. जिलाधिकारी का दावा था कि 'परिवार की इच्छा के अनुसार' अंतिम संस्कार कर दिया गया.
बाद में जिलाधिकारी का एक वीडियो भी वायरल हुआ था जिसमें वो घरवालों को समझा रहे थे - 'आधे मीडिया वाले जा चुके हैं, जो बचे हैं वे भी चले जाएंगे. आप लोग अपनी विश्वसनीयता क्यों खत्म कर रहे हैं?'
जब प्रशासन को मालूम हुआ कि घर के अंदर से ही किसी ने वीडियो बनाकर वायरल कर दिया है, तो सभी के फोन ले लिये गये और सबका बाहर के किसी भी व्यक्ति से मिलना-जुलना बंद कर दिया गया.
पुलिस एनकाउंटर भी झूठे लगने लगे हैं
थोड़ी देर के लिए मान लेते हैं उन्नाव केस में उत्तर प्रदेश पुलिस के अफसरों से एरर ऑफ जजमेंट हो गया हो - लेकिन हाथरस केस में तो एडीजी (कानून और व्यवस्था) प्रशांत कुमार मीडिया के सामने आकर कई बार बयान दिये कि बलात्कार हुआ ही नहीं है. बड़ी मजबूत दलील भी अपनी तरफ से रख रहे थे - फोरेंसिक रिपोर्ट में पीड़ित की बॉडी पर कोई स्पर्म नहीं मिला है, इसलिए रेप या गैंग रेप का तो सवाल ही नहीं पैदा होता.
सिपाहियों की बात और होती है. दारोगा या इंस्पेक्टर स्तर तक के अधिकारी को भी छोड़ देते हैं, लेकिन सीनियर पुलिस अफसर भी ऐसा दावा करे जिस पर किसी को विश्वास न हो - ऐसा कैसे हो सकता है. तब तो ऐसा ही हो रहा था, पुलिस की वर्दी और उस पर लगे आईपीएस और स्टार के लिहाज में मान लेना पड़ा कि इतने बड़े अधिकारी को तो झूठ नहीं ही बोलना चाहिये, लेकिन बिलकुल ऐसा ही रहा.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाथरस के एसपी सिटी सहित कुछ अफसरों और थाने के पुलिसवालों को सस्पेंड जरूर किया था, लेकिन वो भी एसआईटी की रिपोर्ट पर - ड्यूटी में लापरवाही बरतने के इल्जाम में. जिलाधिकारी तो हाथ झाड़ कर पाक साफ बने रहे, तब भी उन पर आंच नहीं आयी जबकि सूबे के आईपीएस अफसरों में शासन के एक्शन में भेदभाव बरतने को लेकर गुस्सा भी काफी था.
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, रामपुर के रहने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट दानिश खान ने प्रधानमंत्री कार्यालय में हाथरस गैंगरेप पर स्थानीय पुलिस और प्रशासन की कार्रवाई को लेकर शिकायत दर्ज करायी थी. बताते हैं कि हाथरस पुलिस ने अपने जवाब में केस से जुड़ी सभी कार्रवाई और रिपोर्ट भेजी है और रिपोर्ट लब्बोलुआब है - पीड़िता के साथ रेप नहीं हुआ था.
जरा याद कीजिये यूपी पुलिस के तत्कालीन डीजीपी की प्रेस कांफ्रेंस - उन्नाव गैंग रेप के मुख्य अभियुक्त कुलदीप सिंह सेंगर को पुलिस अफसर माननीय विधायक कह कर संबोधित कर रहे थे. तब भी वे कतई मानने को तैयार नहीं थे कि गैंग रेप तो दूर बलात्कार भी हुआ है. तब बड़े बड़े पुलिस अफसर यही बोल रहे थे कि माननीय विधायक जी पर सिर्फ आरोप लगा है और आरोप लगने भर से कोई अपराधी नहीं हो जाता.
बाद में जब इलाहाबाद हाईकोर्ट की फटकार पड़ी तो तत्कालीन बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को गिरफ्तार किया गया - और अदालत में ट्रायल के बाद उसे बलात्कार का दोषी पाया गया और उम्रकैद की सजा सुनायी गयी.
भला ये कैसे संभव है कि यूपी पुलिस की नजर में जो 'बेकसूर बलात्कार का आरोपी' भर है उसके खिलाफ अदालत में सबूत मिल जाते हैं और उसे सजा सुनायी जाती है वो भी उम्रकैद की.
अगर सीबीआई आरोपी के खिलाफ बलात्कार के सबूत खोज कर अदालत में पेश कर देती है, तो फिर यूपी पुलिस क्यों नहीं? मान लेते हैं कि यूपी पुलिस निकम्मी और नकारा है, लेकिन ऐसे कैसे वो सफेद झूठ बोल सकती है कि बलात्कार हुआ ही नहीं है, हाथरस केस में और उन्नाव केस में कुलदीप सेंगर पर सिर्प आरोपों की बात करके बचाव करती है.
स्वामी चिन्मयानंद के मामले में भी यूपी पुलिस का रवैया बिलकुल उन्नाव और हाथरस जैसा ही रहा, जबकि एसआईटी के अफसर का कहना रहा कि बीजेपी नेता ने अपना गुनाह कबूल कर लिया था - गलती हो गयी.
अपराधियों के एनकाउंटर के मामले में भी यूपी पुलिस की भूमिका हमेशा ही सवालों के घेरे में रही है - और जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का पीठ पर वरदहस्त हो तो कहना ही क्या - अब तो यूपी पुलिस का ये कह कर भी मजाक उड़ाया जाने लगा है कि 'गाड़ी का क्या कभी भी पलट सकती है?' बिलकुल वैसे ही जैसे फिल्म सरफरोश में अपराधियों के गैंग का एक आदमी अस्पताल में इलाज करा रहे एसीपी राठौर से कहता है - गोली का क्या वो तो कहीं भी लग सकती है. एसीपी राठौर का ये किरदार आमिर खान ने निभाया है.
गाड़ी पलटने का वाकया, कानपुर वाले विकास दुबे को मध्य प्रदेश के उज्जैन से उसके गांव बिकरू ले जाते वक्त रास्ते का है. पुलिस के काफिले के साथ पीछे पीछे मीडिया की गाड़ियां भी चल रही थी. अचानक मीडिया की गाड़ियों को एक जगह रोक दिया गया और फिर पुलिस ने बता दिया कि गाड़ी पलट गयी थी तो विकास दुबे पुलिस के हथियार छीन कर भागने लगा था और एनकाउंटर में मार दिया गया. विकास दुबे जैसी अनेक घटनाएं हैं जिसकी स्क्रिप्ट लगता है पुलिस पहले से ही लिख लेती है और बात में वो प्रेस रिलीज के तौर पर जारी कर दी जाती है. बेशक विकास दुबे या उसके जैसे एनकाउंटर में मारे जाने वाले खतरनाक अपराधी रहे होंगे, लेकिन जब कसाब जैसे दहशतगर्द को कानूनी बचाव की लड़ाई के लिए वकील देकर पूरा लंबा चौड़ा ट्रायल और सुप्रीम कोर्ट से लेकर राष्ट्रपति के पास अपील करने का मौका देश का संविधान देता है, तो अपराधियों के मामले पुलिस के झूठे दावे को कैसे मान लिया जाये?
अब तो लगने लगा है कि यूपी पुलिस बलात्कार को अपराथ तो कतई नहीं मानती! योगी आदित्यनाथ की पुलिस को लगता है कि बलात्कार के आरोप भी कुछ कुछ वैसे ही होते होंगे, जैसे खुद पुलिसवालों पर हर वक्त गाली देने के इल्जाम लगते रहते हैं.
डंके की चोट पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने पुलिसवालों की पीठ थपथपाते रहते हैं कि 'अपराधी' जहां मिलें - ठोक दो! मालूम नहीं सीबीआई जांच करे तो क्या कुछ निकल कर सामने आएगा? और सबसे बड़ी बात हाथरस गैंग रेप केस में पुलिस अफसरों के बयानो पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी कुछ कहने का मन है क्या?
इन्हें भी पढ़ें :
योगी आदित्यनाथ को हाथरस केस में गुमराह करने वाले अफसर कौन हैं?
Hathras Gangrape case: हाथरस में यूपी पुलिस ने बेशर्मी के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं!
आपकी राय