ये है अरविंद केजरीवाल की अथ-श्री-महाभारत कथा
इसे केजरीवाल की गंभीर रणनीति माने या उथली राजनीति, वे सिर्फ मोदी को निशाने पर इसलिए लेते हैं ताकि राष्ट्रीय राजनीति में दिखाई देते रहें.
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आप नेता अरविंद केजरीवाल अपने महाभारत में जुट गये हैं. महाभारत यानी आम आदमी पार्टी के अखिल भारतीय विस्तार के सफर पर निकल पड़े हैं. केजरीवाल के निशाने पर मोदी जरूर रहते हैं लेकिन उनकी हर चाल में कांग्रेस को शह देने की मंशा छिपी होती है.
केजरीवाल की ये महाभारत कथा है मोदी पर निशाना साधे हुए तेजी से आगे बढ़ने की, कांग्रेस को कठघरे में खड़ा कर मंजिल तक पहुंचने की - और फिर इतना ताकतवर बनने की कि खुद के बूते जनलोकपाल लागू किया जा सके.
निशाने पर मोदी
बड़ा टारगेट बड़े फायदे दिलाता है. रामलीला आंदोलन के वक्त भी केजरीवाल के निशाने पर सीधे सोनिया गांधी हुआ करती थीं - अब हर बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होते हैं.
जैसे मोदी लोगों को समझाते रहे कि ब्लैक मनी आ जाए तो हर भारतीय के खाते में 15-15 लाख रुपये आ जाएंगे, वैसे ही नियमों के विरुद्ध 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति कर केजरीवाल भी लोगों को समझा रहे हैं कि इस मामले में सहयोग न कर मोदी दिल्ली में कामकाज होने ही नहीं दे रहे. मोदी के इस असहयोगी रुख के चलते दिल्ली का विकास रुक गया है. है कि नहीं?
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मोदी पर हमले का एक फायदा ये भी होता है कि लगे हाथ केजरीवाल उस स्टेटस को भी मेंटेन कर लेते हैं जहां राहुल गांधी और नीतीश कुमार जैसे नेता खड़े पाये जाते हैं - जिन्हें पीएम मैटीरियल समझा जाता है.
केजरीवाल की नजर फिलहाल उन्हीं राज्यों पर है जहां बीजेपी सत्ता में हिस्सेदार है या बीजेपी की सत्ता है और कांग्रेस उसे सीधी चुनौती देने की कोशिश कर रही है. पंजाब, गोवा और गुजरात में चुनाव लड़ने के पीछे एक खास स्ट्रैटेजी है और इसी पैमाने में यूपी और उत्तराखंड छंट जाते हैं.
हर चाल में कांग्रेस
केजरीवाल के महाभारत में यूपी और उत्तराखंड को भले न जगह मिलती हो लेकिन कांग्रेस को डैमेज करने का कोई मौका वो नहीं चूकते. 1984 के सिख विरोधी दंगों को भी वो 2002 के गुजरात दंगों से लेकर दादरी तक से जोड़ देते हैं. कमलनाथ को पंजाब का प्रभारी बनाए जाने के बाद शिरोमणि अकाली से भी कहीं ज्यादा आम आदमी पार्टी ने शोर मचाया. कांग्रेस ने भी बगैर वक्त गंवाए कमलनाथ को वापस ले लिया.
मंजिल तो लोकपाल है... |
शीला दीक्षित उनकी पसंदीदा और काफी पुरानी टारगेट रही हैं. दिल्ली में शीला दीक्षित को हराने के बाद भी अब केजरीवाल की उन पर सीधी दृष्टि बनी रहती है. टैंकर घोटाले की फाइल खोलकर वो शीला दीक्षित को घेरने में लगे ही हैं, ताकि अगर शीला को पंजाब का प्रभारी बनाया जाए तो उन्हें कठघरे में खड़ा कर सकें - और अगर यूपी में सीएम कैंडिडेट बनाया जाए तो कांग्रेस को घेर सकें.
महाभारत का सफर
दिल्ली की कुर्सी पर काबिज होने के बाद केजरीवाल पंजाब के दौरे पर हैं. इस बीच गोवा डायलॉग की भी तैयारियां जोर शोर से चल रही हैं. गुजरात की 182 सीटों पर चुनाव लड़ने का इरादा पहले ही जाहिर कर चुके हैं.
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साफ है कि केजरीवाल भी अपने मिशन 2019 पर तेजी से काम कर रहे हैं. तैयारी ये है कि अगर 2019 में मोदी के खिलाफ मोर्चेबंदी हो और कहीं माकूल माहौल बने तो थर्ड फ्रंट की ओर से खुद की दावेदारी मजबूती से रख सकें. उधर, नीतीश कुमार के बाद ममता बनर्जी भी त्रिपुरा की ओर उसी मकसद से कदम बढ़ा रही हैं.
केजरीवाल के महाभारत के इस पहले चरण के नतीजे ही आगे का रास्ता दिखाएंगे. उसके बाद ही तय होगा कि केजरीवाल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान का रास्ता अख्तियार करते हैं या फिर हिमाचल प्रदेश जैसे कांग्रेस शासित राज्यों का.
मंजिल तो है लोकपाल
ऐसा लगता है कि अपने इस मिशन में भी केजरीवाल मोदी को ही अपना प्रेरणास्रोत मानते हैं. जो अमेरिका मोदी को वीजा नहीं देना चाहता था उसी के सांसद मोदी के भाषण पर ऊठक बैठक करते रहे. अगर मोदी प्रधानमंत्री नहीं बने होते तो ऐसा मुमकिन था क्या?
ठीक वैसे ही केजरीवाल को लोकपाल के लिए कदम कदम पर जूझना पड़ा है. पहली दफा तो 49 दिन में ही सरकार की ही कुर्बानी देनी पड़ी. अब तो लोकपाल की बातें भी केजरीवाल को मजाक जैसी लगती होंगी - लगे भी क्यों ना जिस काम के लिए इतना आंदोलन किया, भूखे प्यासे कई दिनों तक अनशन तक किया मुख्यमंत्री बन जाने के बाद भी कम से कम अपने राज्य में भी लागू नहीं कर पाए तो ऐसी कुर्सी का क्या मतलब. अब तो लोकपाल को हकीकत की शक्ल देना भी तभी संभव है जब उसके लायक राजनीतिक ताकत हो. ताकत इतनी कि हर विरोधी अपने हर गलती के लिए केजरीवाल को दोषी ठहराता फिरे. मजा तो तभी आएगा. है कि नहीं?
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