2019 से पहले अयोध्या में दिवाली, मथुरा में होली - तो फिर काशी में ?
गोरखपुर और फूलपुर अगर पड़ाव हैं तो अयोध्या, मथुरा और काशी ऐसे धार्मिक रास्ते हैं और सभी की मंजिल उस सियासी भगवान से साक्षात्कार है जिसका अवतार 2019 में होने वाला है.
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राम मंदिर आंदोलन के तहत जोर जोर से गूंजते नारों में तीन नाम जरूर शामिल रहते रहे - अयोध्या, मथुरा और काशी. यूपी की योगी सरकार की गतिविधियां एक बार फिर उसी ओर इशारा कर रही हैं जब ये तीनों नाम फिर से एक साथ जिक्र किये जाएंगे.
दरअसल, यूपी सरकार अब मथुरा में होली मनाने की तैयारी कर रही है. इससे पहले पिछले साल अयोध्या में दिवाली पर भव्य सरकारी आयोजन हुआ था. इस हिसाब से देखें तो बरबस काशी का नाम जुड़ जाता है.
देखा जाये तो काशी यानी वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के कारण अपनेआप ही अहम हो जाता है. एक खास बात और है कि काशी में शिवरात्रि की धूमधाम से ठीक एक दिन पहले अयोध्या से 'रामराज्य रथ यात्रा' भी रामेश्वरम रवाना हुई है.
दिवाली जैसी मथुरा में होली
अयोध्या में दिवाली और मथुरा की होली में बहुत सी बातें कॉमन हैं. दोनों सरकारी आयोजन हैं. अयोध्या में दीपोत्सव दिवाली से एक दिन पहले मनाया गया था, जबकि मथुरा और बरसाने में रंगोत्सव एक हफ्ते पहले मनाया जाएगा. अयोध्या का कार्यक्रम दिवाली से एक दिन पहले इसलिए रखा गया था क्योंकि उस दिन योगी आदित्यनाथ गोरखपुर मंदिर में विशेष पूजा करते हैं. होली को लेकर अभी जानकारी सामने नहीं आयी है.
अयोध्या के बाद मथुरा की बारी
अयोध्या में राम-लक्ष्मण और सीता के वेष में दिल्ली के तीन मॉडल हेलीकॉप्टर से अयोध्या उतरे थे. बरसाने में लाल गुलाब और गेंदे के फूल की 10 क्विंटल पंखुड़ियां भव्य पुष्पवर्षा कार्यक्रम में हिस्सेदार बनेंगीं.
यमुना में दो नावों पर राधा कृष्ण थीम को उतारने और उकेरने की भी कोशिश होगी. चूंकि बरसाना में होली का जश्न हफ्ते भर पहले ही शुरू हो जाता है इसलिए मथुरा और बरसाना के लिए ये सरकारी फंक्शन 23 और 24 फरवरी को आयोजित होने हैं. इस बार बरसाने की होली को खूबसूरत फूलों, गुब्बारों और रंगोली के साथ मनाये जाने की तैयारी है.
मौका कहने को होली का जरूर है लेकिन जिस तरह की लाइटिंग और सजावट की चर्चा है वो तो लगता है अयोध्या की दिवाली से भी कहीं बढ़ कर देखने को मिल सकता है. जहां जहां ये सजावट देखने को मिलेगी उनमें श्रीकृष्ण जन्मभूमि, द्वारकाधीश मंदिर और शहर के चौराहे सहित मथुरा, वृंदावन, बरसाना और नंदगांव के 35 मंदिर शामिल हैं.
एक और रथयात्रा, पर अयोध्या से!
मंदिर आंदोलन जब चरम पर था, सितंबर, 1990 में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी रथयात्रा पर अयोध्या के लिए निकले थे. अभी अयोध्या से एक रथ यात्रा निकली है. तब आडवाणी को बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया था.
13 फरवरी को अयोध्या से 'रामराज्य रथ यात्रा' निकली है जो 41 दिन का सफर पूरा कर राम नवमी के मौके पर रामेश्वर में खत्म होगी. रथ का डिजाइन प्रस्तावित राम मंदिर के ढांचे से मिलता जुलता है.
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं को आयोजन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते देखा गया, लेकिन वीएचपी का कहना रहा कि वो आयोजकों में शुमार नहीं है. वैसे आधिकारिक तौर पर इस यात्रा का आयोजन दक्षिण भारत के एक स्वयंसेवी संगठन रामदास मिशन यूनिवर्सल सोसायटी ने किया है. दिलचस्प बात ये रही कि आयोजन से पल्ला झाड़ने वाली वीएचपी के महामंत्री चंपत राय ने ही झंडी दिखाकर यात्रा की शुरुआत की. कार्यक्रम का संचालन भी वीएचपी के ही शरद शर्मा कर रहे थे.
एक रथयात्रा - अयोध्या से...
बीबीसी ने मंच पर मौजूद बीजेपी सांसद लल्लू सिंह से भी वही सवाल किया जो वीएचपी नेताओं से रहा. लल्लू सिंह भी सवालों का जवाब देने की बजाय ये बताने लगे कि राष्ट्रवाद को लेकर बीजेपी कैसे हर जगह खड़ा रहेगी.
बीबीसी की रिपोर्ट में बताया गया है कि पहले ये यात्रा यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ रवाना करने वाले थे, लेकिन उनके त्रिपुरा चुनाव प्रचार में व्यस्त होने के कारण ऐसा न हो सका.
अयोध्या के दिवाली कार्यक्रम के बाद जहां यूपी में नगर निकाय चुनाव होने थे, वहीं अब होली बाद गोरखपुर और फूलपुर की संसदीय सीटों के लिए उप चुनाव होने वाले हैं - वैसे देखा जाये तो ये दोनों उप चुनाव भी योगी आदित्यनाथ के लिए हद से ज्यादा अहम हैं. गोरखपुर तो योगी के ही मुख्यमंत्री बन जाने के बाद इस्तीफे से खाली हुआ है, फूलपुर में भी यूपी के डिप्टी सीएम केशव मौर्या के छोड़ने से उप चुनाव कराया जा रहा है.
वैसे गोरखुपर और फूलपुर तो रास्ते के पड़ाव हैं, मंजिल तो 2019 के आम चुनाव हैं - फिलहाल तो अयोध्या और मथुरा के बाद काशी के कार्यक्रम का इंतजार है.
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