कैसे आप बन गई जीत और विश्वासघात की कहानी
पार्टी में मौजूदा तूफान के केंद्र दो आप नेता हैं. योगेंद्र यादव जो 51 के हैं और प्रशांत भूषण जो 58 वर्ष के हैं.
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"अरविंद केजरीवाल वैचारिक बातों को लेकर आगे बढ़ने की रीत से मुक्त हैं. विचार वास्तव में मेरे जैसे कमजोर लोगों के लिए हैं. सिद्धांतों के साथ दिक्कत यह है कि वे अक्सर आपको रोकते हैं. यह दिल्ली में लंदन के मानचित्र के साथ चलने की तरह है. मैं वैकल्पिक राजनीति में अन्य प्रयोगों का हिस्सा रही हूं, जो असफल हो गई. आप इसलिए सफल हो गई क्योंकि अरविंद को आगे जाने वाले रास्ते के बारे में एक मजबूत समझ है, उनके पास असाधारण आत्मविश्वास, सिद्धांत और चीजों को बदलने का हुनर है."
यह बात योगेंद्र यादव ने दिल्ली में आप को मिली अविश्वसनीय जीत के फौरन बाद मुझसे कही थी, पार्टी में सर्वोच्च निर्णय लेने वाली राजनीतिक मामलों की समिति में चुने जाने से पहले. मैं उनसे मध्य दिल्ली में एक कॉफी शॉप पर मिली थी. और उसके कुछ दिनों बाद ही पार्टी पर पहाड़ टूट पड़ा, तब मुझे केजरीवाल के बारे में यादव की रोचक और विश्लेषणात्मक टिप्पणी याद आ रही थी.
राजनीतिक तूफानपार्टी में मौजूदा तूफान के केंद्र दो आप नेता हैं. योगेंद्र यादव जो 51 के हैं और प्रशांत भूषण जो 58 वर्ष के हैं. ये दोनों ही ऐसा नेता थे जिन्होंने युवाओं को साथ लेकर दिल्ली की जीत को संभव बनाया. लेकिन वे किसी भी मायने में कमतर नहीं थे. लोक हित के मामलों में प्रशांत भूषण देश के जाने-माने वकील हैं, जिन्होंने भ्रष्टाचार के कुछ ऐसे मामलों उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जिन्हें बाद में इंडिया अगेंस्ट करप्शन (IAC) और आप ने भी अपनाया. यादव, भूषण के कुछ समय बाद ही केजरीवाल के साथ शामिल हुए थे. लेकिन वह एक जाने-माने राजनीतिक वैज्ञानिक और शैक्षिक व्यक्ति हैं, और संभवतः देश में सबसे ज्यादा मान्यता प्राप्त चुनाव विश्लेषक भी.
राष्ट्रीय परिषद की बैठक में केजरीवाल ने कहा कि लोकसभा चुनाव में हार के बाद उनकी इमारत का सुरक्षा गार्ड मजाक उड़ा रहा था. "वो एक दौर था जब लग रहा था सब खत्म हो गया." फिर उन्होंने बताया कि कैसे योगेंद्र यादव, शांति भूषण और प्रशांत भूषण ने उन्हें धोखा दिया है. पीठ में छुरा घोंपा, उन्होंने कहा था कि "हमने देश को दिखा दिया कि भाजपा के रथ को रोका जा सकता है. भाजपा और कांग्रेस चिंतित थे. लेकिन उन्होंने केवल अपने लिए काम किए थे. साथियों ने धोखा दिया. इससे किसे फायदा हुआ? मोदी, भाजपा और अंबानी को. मैं यहां भ्रष्टाचार और सांप्रदायिक ताकतों से लड़ने के लिए आया हूं. प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव से लड़ने के लिए नहीं."
हटाए जाने और बाद मेंदो संस्थापक सदस्यों को हटाए जाने में क्या निहितार्थ है? जब मैने इस किताब के लिए भूषण का इंटरव्यू किया तो उन्होंने कहा कि "मैं राजनीति में बसपा जैसी आलाकमान संस्कृति की तरह वाली एक और पार्टी की स्थापना के लिए नहीं आया था." मैं यहां राजनीति की प्रकृति को बदलने के लिए आया था. भूषण यह भी कहते हैं कि अगर वे आप से बाहर निकाल दिए जाते हैं, तो कुछ लोग, जो नागरिक आंदोलन से जुड़े हैं वो भी पार्टी को छोड़ देंगे.
इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि बुद्धिजीवियों का एक वर्ग जो पार्टी को अपने विचारों की संवाहक के रूप में देखता था, वो इन दो दिग्गजों की विदाई से बहुत निराश हैं...मुख्य भूकंप के बाद अभी ऑफ्टरशॉक के तौर पर कुछ झटके और आते रहेंगे.
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