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Updated: 07 मई, 2019 10:56 AM
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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी काफी समय से प्रधानमंत्री मोदी के लिए एक नारा लगाते रहे हैं, जिसके लिए उन्हें सुप्रीम कोर्ट के आगे माफी तक मांगनी पड़ी थी. उन्होंने राफेल डील में कथित भ्रष्‍टाचार का आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री का नाम लिए बिना 'चौकीदार चोर है' का नारा गढ़ लिया. और चुनाव में इसे भुनाने की कोशिश कर रहे हैं. उधर, प्रधानमंत्री मोदी ने 'चौकीदार चोर है' कैंपेन का सामना करने के लिए देश में भाजपा समर्थक 'चौकीदारों' की फौज खड़ी कर दी. 'ईमानदार चौकीदार' और 'चोर चौकीदार' की बहस तब आक्रामक हो गई, जब पीएम मोदी ने यूपी की एक रैली में कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी से बिना उनका नाम लिए कहा कि- 'आपके पिताजी को आपके राग दरबारियों ने गाजे-बाजे के साथ मिस्टर क्लीन बना दिया था. लेकिन देखते ही देखते भ्रष्टाचारी नम्बर-1 के रूप में उनका जीवनकाल समाप्त हो गया.'

कांग्रेस पार्टी और उनके समर्थक सोशल मीडिया और टीवी डिबेट में दलील दे रहे हैं कि राजीव गांधी के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने भ्रष्टाचारी शब्द का इस्तेमाल करके गलती की है. हालांकि, इन आलोचकों को खुद देश के प्रधानमंत्री को चोर बोलने में कोई परेशानी नहीं हो रही है. राजनीति में क्रिया की प्रतिक्रिया तो हमेशा से ही देखने को मिलती रही है. और प्रधानमंत्री का ऐसा कहना पलटवार ही था.

लेकिन तब से कांग्रेस की प्रतिक्रिया काफी तीखी हो गई हैं. राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री की इस बात का जवाब देते हुए कहा है कि- 'मोदीजी, लड़ाई खत्म हो चुकी है. आपके कर्म आपका इंतजार कर रहे हैं. खुद के बारे में अपनी आंतरिक सोच को मेरे पिता पर थोपना भी आपको नहीं बचा पाएगा. सप्रेम और एक बड़ी सी झप्पी.'

प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी तीखी तीखी सुना दी.

लेकिन राजनीति के दंगल में अगर 'चौकीदार चोर है' ट्रेंड हो रहा है, तो भारतीय राजनीतिक इतिहास की समझ रखने वाले जानते हैं कि 80 के दशक के आखिर में 'राजीव गांधी चोर है' भी ट्रेंड हो रहा था. ये बात और है कि आज 'चौकीदार चोर है' स्‍लोगन पर जुबानी जंग चल रही है, लेकिन राजीव गांधी के शासनकाल में 'राजीव गांधी चोर है' कहने वालों को बहुत बुरा भुगतना पड़ा था. क्‍योंकि तब कांग्रेस हाथ-पैर से काम ले रही थी.

जब 'राजीव गांधी चोर है' का गुस्सा एक प्रोफेसर पर निकला था

1988 में राजीव गांधी के खिलाफ ये नारा काफी प्रचलित था. क्योंकि तब बोफोर्स घोटाला उजागर हुआ था और राजीव गांधी की सरकार में ये नारा विरोधी पार्टियां इस्तेमाल किया करती थीं. 27 मई 1988 को पटना रेडियो स्टेशन से एक कार्यक्रम प्रसारित किया जा रहा था जिसमें एक लड़की से एक चुटकुला सुनाने के लिए कहा गया था. तो लड़की ने कहा- 'गली गली में शोर है, राजीव गांधी चोर है'. इस घटना को लेकर सागर विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग की प्रवेश परीक्षा में एक सवाल रखा गया था- 'ऑल इंडिया रेडियो के किस स्टेशन ने 'राजीव गांधी चोर है' वाक्य प्रसारित किया था?'

rajiv gandhiबोफोर्स घोटाले के बाद से 'राजीव गांधी चोर है' बोला जाने लगा था

इसी वाकिए पर किया गया ये सवाल पत्रकारिता विभाग के हेड ऑफ द डिपार्टमेंट प्रोफेसर प्रदीप कृष्णात्रेय को बहुत भारी पड़ा. इस सवाल पर कांग्रेस ने जो प्रतिक्रिया दी वो न सिर्फ हैरान करती है. बल्कि आज के दौर में सोचने पर मजबूर करती है. युवक कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने पत्रकारिता विभाग में जाकर प्रोफेसर के साथ जमकर मारपीट की. सिर्फ इतनी ही नहीं, उनके चेहरे पर कालिख पोतकर पूरे कैंपस में घुमाया गया.

इस अफसोसनाक घटना के बाद हद तो तब हुई है जब युनिवर्सिटी प्रशासन ने प्रोफेसर पर ही इंक्वायरी बैठा दी. उनसे जवाब मांगा गया. युनिवर्सिटी की प्रताड़ना का प्रोफेसर जवाब दे पाते, तब तक पुलिस प्रकट हो गई. अब प्रोफेसर को प्रताड़ित करने की बारी पुलिस की थी. पुलिस ने अभद्र व्यवहार और अपमान करने, शांति भंग करने के आरोप में IPC की धारा 294 और 504 के अंतर्गत प्रोफेसर कृष्णात्रेय को गिरफ्तार कर लिया. इसपर राज्य जन मोर्चा के महासचिव विनय दीक्षित ने कहा था- 'ये असहिष्णुता की हद थी.'

प्रोफेसर कृष्णात्रेय को दी जा रही प्रताड़नाओं की निंदा होनी शुरू हुई. सागर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रयाग दास हजेला ने गुस्से में पद छोड़ दिया. उनका कहना था- "यह एक व्यक्ति का सवाल नहीं है. इस देश में गैंगस्टरवाद का राजनीतिकरण करने की कोशिश की जा रही है." विश्वविद्यालय एकजुट हो गया और वहां के सभी शिक्षक हड़ताल पर चले गए और उन्होंने तब तक कक्षाओं का बहिष्कार किया, जब तक कि उनके सहयोगी के अपमान के लिए जिम्मेदार दोषियों को गिरफ्तार नहीं किया गया. प्रोफेसर के साथ बदसलूकी करने वाले 10 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार तो किया, लेकिन तुरंत ही जमानत भी दे दी.

विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के प्रमुख क्रांति कुमार सराफ का कहना था- "हमारी राजनीतिक संबद्धता के बावजूद, हम कृष्णात्रय के साथ खड़े हैं." राज्य के सबसे पुराने विश्वविद्यालय परिसर की इस घटना ने सत्ता और विपक्ष के बीच के राजनीतिक संघर्ष का एक नया अध्याय लिखा. जबकि कई पार्टियों के सांसद और विधायक कृष्णात्रेय के साथ आ गए. शिक्षा जगत के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए रैलियों और जनसभाओं का आयोजन किया गया.

6 अगस्त को परीक्षा के दिन उपद्रव के बाद, हजेला ने भी महसूस किया था कि यह सवाल अनुचित था और कृष्णात्रेय से इसपर जवाब देने के लिए कहा था. 8 अगस्त को प्रोफेसर कृष्णात्रेय ने जवाब दिया. खुद का बचाव करते हुए उन्होंने कहा कि ' मुझे इस प्रश्न के पीछे की परेशानियों का अहसास नहीं था. और इसके पूछे जाने के पीछे कोई दुर्भावना भी नहीं थी. मैंने सवाल इसलिए पूछा था क्योंकि यह एक बड़ी घटना थी और मैं उम्मीदवारों की सतर्कता और स्मृति का परीक्षण करना चाहता था.'

लेकिन 8 अगस्त की सुबह जिला युवक कांग्रेस के प्रमुख राकेश शर्मा के नेतृत्व में एक गुट कुलपति के कार्यालय पहुंचा. उन्होंने हजेला पर चिल्लाना शुरू कर दिया और प्रोफेसर कृष्णात्रेय को तुरंत हटाने के लिए कहा. हजेला ने ये करने से इनकार किया और कहा कि '17 अगस्त विश्वविद्यालय कार्यकारी परिषद के समक्ष जांच कराने और रिपोर्ट देने के बाद ही उनपर कोई कार्रवाई की जा सकती है. मैं उन्हें फांसी नहीं दे सकता सिर्फ इसलिए कि कुछ राजनेता ऐसा चाहते हैं.'

राकेश शर्मा का आरोप था कि "कृष्णात्रेय और हजेला दोनों कम्युनिस्ट हैं और उन्होंने इस मामले को बहुत हल्के में लिया". शर्मा ने तो इस बात से भी इनकार किया कि प्रोफेसर के चेहरे पर काला रंग पोता गया था. शर्मा का दावा था कि प्रोफेसर ने ऐसा खुद ही किया और फोटो भी खिंचवाई.

उपचार के बाद, कृष्णात्रेय अपने चेहरे से पेंट हटाए बिना घर वापस गए. वो शाम को शिक्षक संघ की एक बैठक में भी उसी स्थिति में पहुंचे. बैठक में, एक प्रोफेसर ने कृष्णात्रेय के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए अपने चेहरे को भी काले रंग से रंग दिया था. और अगले ही दिन से एक सप्ताह तक शिक्षकों ने कक्षाओं का बहिष्कार कर दिया था. जब तक कि अपराधियों को गिरफ्तार नहीं किया गया. इस बीच, राज्यपाल ने विश्वविद्यालय की कार्यकारी और अकादमिक परिषदों को भंग कर सभी शक्तियां नए कुलपति एम.एल. जैन को दे दीं. कुछ समय के लिए परिसर में एक अजीब सी शांति छा गई थी.

इस पूरे प्रकरण में सिर्फ प्रोफेसर का चेहरा काला नहीं हुआ था, बल्कि राज्य सरकार और तत्‍कालीन सत्‍ताधारी कांग्रेस पार्टी का काला चेहरा भी लोगों के सामने आ गया था. ऐसे में आज यदि देश में असहिष्‍णुता की दुहाई देकर कांग्रेस पार्टी प्रधानमंत्री मोदी को बेखौफ 'चौकीदार चोर है' कह रही है, तो उन्‍हें अपने अतीत में भी झांकना होगा. क्‍योंकि 30 साल पहले ऐसे ही माहौल में उन्‍हें कुछ भी बर्दाश्‍त नहीं हो रहा था.

(सागर युनिवर्सिटी में हुई इस घटना की पूरी रिपोर्ट विस्‍तार से इंडिया टुडे के 15 सितंबर 1988 के अंक में छपी थी)

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