केजरीवाल मूर्ख बनाते हैं, दिल्लीवाले बनते भी हैं
अरविंद केजरीवाल के पास लोगों की असली समस्याओं को कोई समाधान नहीं है, ऑड-ईवन का विरोध होता देख कुछ नया हथकंडा या तिकड़म शुरू करेंगे. वह ये सोचकर एक के बाद दूसरे स्टंट करेंगे कि ऐसा करके लोगों को हमेशा के लिए धोखा दिया जा सकता है.
-
Total Shares
जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि, अरविंद केजरीवाल के पास लोगों की असली समस्याओं को कोई समाधान नहीं है... भयंकर गरीबी, बेरोजगारी, कुपोषण, बढ़ती कीमतें, स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव इत्यादि. लेकिन फिर भी वह खुद को ऐसा कुछ करते हुए दिखाना चाहते हैं जिससे वह सुर्खियां में छाए रहें और उनकी लोकप्रियता बरकरार रहे. (जोकि शुरुआती उत्साह के बाद तेजी से घटी है)
इसलिए उन्होंने जो तरीका अपनाया वह हैः वह एक योजना शुरू करते हैं, जोकि वास्तव में एक स्टंट है, और दिल्ली के लोग (जो कि ज्यादातर भोले-भाले, भावानात्मक रूप से मूर्ख लोग हैं), शुरू में उनके लिए जोर से तालियां बजाएंगे और उनका अनुसरण करेंगे, जैसे कि बच्चे किसी तमाशबीन के पीछे भागते हैं. इसके उदाहरण हैं-कार फ्री डे, साइकिल से जाना, लोकपाल (जिसे कुछ लोग जोकपाल कहते हैं), आदि. लेकिन बाद में जब ये योजनाएं फीकी पड़ने लगीं, और लोगों को सच्चाई समझ में आ गई और इन योजनाओं के कारण उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ा, और इसका विरोध शुरू हो गया तो उन्होंने इन्हें छोड़कर एक नई योजना (नया स्टंट) शुरू की और एक बार फिर से वही नाटक और बकवास शुरू हो गई.
अब हाल का ही उदाहरण लीजिए. दिल्लीवालों ने शुरू में जिस मूर्खतापूर्ण ऑड-ईवन योजना का यह सोचते हुए समर्थन किया था कि यह उनकी प्रदूषण से जुड़ी समस्याओं के लिए रामबाण साबित होगी, उन्हें अब इसके कारण ढेरों परेशानियां का सामना करना पड़ रहा है, जबकि प्रदूषण के स्तर में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है. इसलिए दिन-प्रतिदिन इस योजना का विरोध बढ़ता जा रहा है.
इस बात का अहसास होते ही हमारे सपनों के सौदागर ने इस योजना को छोड़कर एक और सुर्खियां बटोरने वाला स्टंट शुरू किया. उन्होंने प्राइवेट नर्सरी स्कूलों के ऐडमिशन में मैनेजमेंट कोटा खत्म किए जाने की घोषणा की है.
दिल्ली के लोग फिर से तालियां बजाएंगे और अपने सुपरहीरो की तारीफ करते हुए चिल्लाएंगे. जाहिर सी बात है कि टीआरपी के चक्कर में मीडिया द्वारा भी इसे खूब कवरेज दी जाएगी. लेकिन कुछ समय बाद सच सामने आएगा, जो कि ये हैः
प्राइवेट इंस्टीट्यूट्स चैरिटी के लिए नहीं बल्कि प्रॉफिट के लिए काम करते हैं. इसलिए हो सकता है कि शुरू में नर्सरीज इस नियम का पालन करें लेकिन निश्चित तौर पर लंबे समय तक वे ऐसा नहीं करेंगी.
साथ ही अगर कोई मंत्री, जज, नौकरशाह, पुलिस ऑफिसर, इनकम टैक्स अधिकारी, म्युनिसिपल अधिकारी आदि एडमिशन करने के लिए कहेंगे तो क्या स्कूल मना कर सकता है? अगर स्कूल ऐसा करता है तो उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.
इसलिए बहुत ही जल्द मैनेजमेंट इस योजना से बचने का तरीका निकाल लेगा, और ये योजना सिर्फ कागजों में सीमित होकर रह जाएगी.
इसके बाद मिस्टर केजरीवाल इसे भूल जाएंगे और फिर कुछ नया हथकंडा या तिकड़म शुरू करेंगे. वह ये सोचकर एक के बाद दूसरे स्टंट करेंगे कि ऐसा करके लोगों को हमेशा के लिए धोखा दिया जा सकता है.
(सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने ये विचार अपने ब्लॉग सत्यमब्रूयात में व्यक्त किए हैं.)
आपकी राय