पेरिस अटैक में कैसे सफल रहा ISIS, पश्चिम विफल...
एलन कुर्दी की तस्वीर सामने आने के बाद कई देशों ने रिफ्यूजी समस्या की ओर मानवता की दृष्टि से देखना शुरू कर दिया था. लेकिन अब यह नजर बदलेगी.
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पेरिस में हुए बर्बर आतंकी हमले की कहानी अब परत दर परत खुल रही है. कहा जा रहा है कि आतंकी वहां तीन टीमों में आए थे. जांच के बाद धीरे-धीरे तस्वीर और साफ होगी. लेकिन जो हमला हुआ उसका व्यापक असर दिखना अब तय है. दरअसल, यह हमला ताकतवर समझे जाने वाले देशों की नाकामी की कहानी भी बताता है और दिखा रहा है कि कैसे ISIS अपने मंसूबो में लगातार सफल हो रहा है.
शरणार्थियों पर होगा पेरिस हमले का असर
सीरिया में जब ISIS का आतंक बढ़ा तो बड़ी संख्या में लोग यूरोप का रूख करने लगे. ज्यादा दिन नहीं हुए जब तुर्की के समुद्री किनारे पर तीन साल के मासूम एलन कुर्दी की बहकर आई लाश की तस्वीरों ने समूची दुनिया को झकझोर दिया था.
उस उदास तस्वीर के सामने आने के बाद कई देशों ने सीरिया और दूसरे देशों से आ रहे रिफ्यूजी की ओर मानवता की दृष्टि से देखना शुरू कर दिया था. लेकिन अब यह नजर बदलेगी. उन्हें शक की निगाह से देखा जाएगा. वैसे भी, यह आशंका तो पहले भी जताई जा रही थी कि सीरियाई शरणार्थियों के साथ-साथ कई आतंकी भी यूरोपीय देशों में दाखिल हो रहे हैं. पेरिस हमला अब इस बात की ही तस्दीक कर रहा है. जाहिर है यूरोप उनके लिए अपने दरवाजे बंद कर सकता है. अगर ऐसा होता है तो यह ISIS की ही सफलता है. वह यही चाहता है और इसमें वह अब सफल भी होगा.
तालमेल की कमी का फायदा ISIS को
आतंकवाद को लेकर विश्व के तमाम देश कितने संजीदा है, यह बात इसी से साफ हो जाती है कि संयुक्त राष्ट्र में इसकी परिभाषा को लेकर अब भी एक राय नहीं बन सकी है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने तमाम दौरों में यह मुद्दा उठाते रहे हैं. लेकिन नतीजा अब भी सिफर है.
यह भी देखा जाना चाहिए ISIS को ही लेकर ताकतवर देशों का रूख क्या है. नैतिक तौर पर सब ISIS के खिलाफ है. लेकिन रूस अपने हिसाब से सीरिया में बम बरसाता है और अमेरिका अपना फायदा देखते हुए. एक बड़ा संकट सामने है लेकिन इसके बावजूद बड़े देश अपने हितों के अनुसार काम कर रहे हैं. अमेरिका बशर अल असद के खिलाफ है और उसकी रुचि केवल कुर्द समुदाय की बहुलता वाले इलाकों में है. जाहिर है, तालमेल की यही कमी अब दुनिया पर भारी पड़ रही है.
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